High Court ने पति के पक्ष में सुनाया फैसला, पत्नी हैसियत से ज्यादा सपने पूरे करने पर नहीं बना सकती मानसिक दबाव
दरअसल, पत्नी ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसके पति द्वारा क्रूरता के आधार पर उसे तलाक देने और इस मामले में डिक्री पारित होने के एक साल बाद तक वैवाहिक अधिकारों की बहाली नहीं होने के कारण उसे तलाक दे दिया गया था।
पीठ ने कहा, ‘स्वतंत्र रूप से विचार करने पर ये घटनाएं अहानिकर, महत्वहीन या मामूली लग सकती हैं, लेकिन जब ऐसा आचरण लंबे समय तक चलता है, तो इससे एक प्रकार का मानसिक तनाव पैदा होना तय है।
इससे पार्टियों के लिए अपने वैवाहिक संबंध के अस्तित्व में बने रहना असंभव हो जाता है। पीठ ने आगे कहा कि पति द्वारा समग्र आचरण और पत्नी के गैर-समायोजित रवैये के बारे में बताई गई अलग-अलग घटनाएं.
जिसमें उसके साथ मतभेदों को दूर करने के लिए परिपक्वता की कमी थी। नतीजन अनूठा निष्कर्ष निकला कि इस तरह के व्यवहार से निश्चित रूप से इससे उसे चिंता होती है और उसकी मानसिक शांति भंग होती है।
पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (ए) (ii) के तहत जोड़े के तलाक को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया है कि यदि एक वर्ष की अवधि के लिए धारा 9 के तहत डिक्री के बावजूद वैवाहिक अधिकारों की बहाली नहीं होती है, तो कोई भी पक्ष मांग कर सकता है।