वोट बैंक की राजनीति में कैसे हुई राम की एंट्री, कहानी नेहरू के ‘बालकांड’ से राव के ‘लंकाकांड’ की
अयोध्या में प्रभु राम के कई रूप हैं. वह हर देखने वाले के लिए अलग तरीके से स्वयं को प्रस्तुत करते हैं. किसी को आंगन में घुटनों पर चलते हुए रामलला दिखते हैं, किसी को माता सीता के साथ विराजमान सियाराम दिखते हैं और किसी को मां शबरी के हाथ से झूठे बैर खाते हुए आंसुओं से भीगे हुए राम दिखते हैं. यह सब इस देश के राम हैं, एक सामान्य मनुष्य के राम हैं, लेकिन एक राम इस देश की राजनीति के भी हैं. जिसमें कांग्रेस के राम, बीजेपी के जय श्रीराम और वीपी सिंह और मुलायम सिंह यादव के सियासी राम की कहानी है.
राजनीति के राम की एक पटकथा मुलायम सिंह ने भी लिखी है. उस पटकथा के केंद्र में कारसेवकों पर गोलीबारी है. राम कथा का यह अध्याय काफी छोटा है, लेकिन इसका असर बहुत बड़ा है. दूसरी तरफ राजनीति के राम की सबसे लंबी पटकथा कांग्रेस ने लिखी, लेकिन उसका असर सबसे कम दिखा.
गर्भ गृह में रामलला की मूर्ति विराजमान
कांग्रेस के प्रभु राम की कहानी कांग्रेस जैसी ही है. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय राम का बालकांड संपन्न हुआ था. उन्हीं के समय विवादित परिसर के गर्भ गृह में रामलला की मूर्ति विराजमान हुई थी. उसके बाद राजीव गांधी के समय राम की कहानी परवान चढ़ी और आखिर में कांग्रेस के नरसिम्हा राव के समय आधुनिक अयोध्या कांड का लंकाकांड संपन्न हुआ.
1949 की घटना से नाराज थे नेहरू
22-23 दिसंबर 1949 की रात में रामलला की मूर्ति चोरी छिपे गर्भ गृह में प्रतिष्ठित कर दी गई थी. उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को पूरे घटना की खबर मिली तो उन्होंने उस समय के कांग्रेस के मुख्यमंत्री वल्लभभाई पंत को जो पत्र लिखा था, उससे साफ है कि रामलला की उस मूर्ति को लेकर उनकी राय क्या थी. उन्होंने अपने पत्र में लिखा, ‘प्रिय पंत जी मस्जिद और मंदिरों को लेकर अयोध्या में जो कुछ घटा, वह बहुत गलत था, लेकिन सबसे अफसोसजनक बात ये थी कि हमारे ही कुछ लोग इसमें शामिल थे, जिनकी सहमति से यह सब हुआ.’
गौरतलब है कि जिन पांच साधुओं ने गर्भ गृह में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की थी, उसमें शामिल बाबा राघव दास 1948 में कांग्रेस के टिकट पर अयोध्या से विधायक चुने गए थे और उनके चुनाव प्रचार में सबसे ज्यादा सक्रिय वही गोविंद बल्लभ पंत थे, जिनसे मूर्ति हटाने के लिए पंडित नेहरू आग्रह कर रहे थे.
हिंदुओं वोट बैंक पाने का सियासी तरीका
अयोध्या आंदोलन पर कांग्रेस का यह विरोधाभास राजीव गांधी के समय खुलकर उजागर हुआ था. अयोध्या आंदोलन के सबसे प्रमाणिक दस्तावेज ‘युद्ध में अयोध्या’ में उस सियासी समीकरण का जिक्र हुआ है, जिसके तहत राजीव गांधी ने पर्दे के पीछे रहकर राम मंदिर का ताला खुलवाया था. शाहबानो के मामले में सरकार मुस्लिम महिला कानून के जरिए संविधान संशोधन का ऐलान कर चुकी थी, अब हिंदुओं को खुश करने की बारी थी. हताश, निराश और परेशान राजीव गांधी को अयोध्या में रोशनी दिखाई. राजीव गांधी ने एक हाथ ले और दूसरे हाथ दे की नीति पर चलते हुए मुस्लिम संगठनों से डील की, फिर उस डील के तहत राम मंदिर का ताला खुला और मुस्लिम संगठनों ने उस वक्त उसका विरोध भी नहीं किया.
बोफोर्स घोटाले को लेकर राजीव गांधी अपनी विश्वसनीयता और लोकप्रियता दोनों खो चुके थे. दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी थी, जिसे चुनाव के लिए मुद्दे की तलाश थी. चुनाव से ठीक पहले हिमाचल के पालमपुर में बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई, जिसमें पहली दफा राम जन्मभूमि का मुद्दा पार्टी के एजेंडे पर आया. राजीव गांधी के करीबियों ने उन्हें इन दोनों चुनौतियों से निपटने के लिए शिलान्यास का रास्ता सुझाया और सरल स्वभाव के राजीव गांधी बिना सोचे समझे उसे रास्ते पर चल भी पड़े.
उलझी है नरसिंह राव की भूमिका
राजनीति की राम कहानी में पंडित नेहरू और राजीव गांधी की भूमिका शीशे की तरह साफ है, लेकिन कांग्रेस के अगले प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की भूमिका ऐसी है कि एक छोर को सुलझाने की कोशिश करो तो दूसरा छोर और उलझ जाता है.
नरसिम्हा राव की भूमिका
नरसिम्हा राव के सबसे भरोसेमंद अफसर और उनके सचिव पीवीआरके प्रसाद के मुताबिक, बाबरी विध्वंस के समय वह बेचैन जरूर थे. वह अपने कमरे में घूमते हुए अपने आप से ही बातें कर रहे थे. लेकिन बाबरी विध्वंस में उन्हीं नरसिम्हा राव की भूमिका को खुद कांग्रेस के रूप में देखती है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि राहुल गांधी को कहना पड़ गया कि अगर गांधी परिवार का कोई सदस्य उस वक्त प्रधानमंत्री की कुर्सी पर होता तो विवादित परिसर का विध्वंस नहीं होता.
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अयोध्या आंदोलन को लेकर कांग्रेस को दोहरी चोट पड़ी. विवादित परिसर के विध्वंस के लिए अल्पसंख्यक आज तक उन्हें माफ नहीं कर पाए और दूसरी तरफ जिस राम मंदिर आंदोलन की कई पटकथा कांग्रेस ने लिखी, उसका क्रेडिट बीजेपी उसके पंजे से छीन ले गई.