कैसे काम करते हैं पेनकिलर कि दर्द छूमंतर हो जाता है?
हमे जब भी कहीं चोट लगती है या दर्द होता है, तो डॉक्टर अक्सर खाने को पेनकिलर देते हैं. आप पेनकिलर खाते हैं और कुछ समय बाद दर्द और सूजन में आराम महसूस होता है. आपने कभी ये सोचा है कि पेनकिलर को कैसे पता चलता है कि दर्द शरीर के किस हिस्से में है?
कहां काम करना है? हो सकता है कि शरीर में दो-तीन जगह अलग-अलग तरह की दिक्कत हो. लेकिन पेनकिलर हमेशा अपना टारगेट ढूंढकर अपना काम करती है. डॉक्टर से जानिए, पेनकिलर दवाइयां कैसे काम करती हैं? कितने तरह के पेनकिलर होते हैं और इनका काम क्या है? साथ ही, सबसे ज़रूरी बात कि पेनकिलर लेते हुए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए. इस बारे में ‘दी लल्लनटॉप’ ने गुरुग्राम के पारस हेल्थ हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. राजेश कुमार से बात की.
बीमारी के हिसाब से दिया जाता है पेनकिलर
डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि डॉक्टर मरीज़ की बीमारी के हिसाब से पेनकिलर देते हैं. इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किस वजह से दर्द है और कौन सी पेनकिलर सही रहेगी. जैसे, अगर पेट में अल्सर की वजह से दर्द हो रहा है तो NSAIDs (नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स) नहीं दे सकते. इससे अल्सर और बिगड़ जाएगा. डॉक्टर हमेशा वो पेनकिलर देते हैं, जिससे कम से कम साइड इफ़ेक्ट हो और ज़्यादा से ज़्यादा फायदा भी हो.
(डॉ. राजेश कुमार, एसोसिएट डायरेक्टर, इंटरनल मेडिसिन, पारस हेल्थ, गुरुग्राम)
तीन तरह के पेनकिलर, सबके अलग काम
हमारे शरीर में जहां भी दर्द महसूस होता है, पेनकिलर उसे कम करती हैं. पेनकिलर तीन तरह की होती हैं. पहली है, पैरासिटामॉल. ये हमें ओवर द काउंटर यानी बिना डॉक्टर के पर्चे के मिल जाती हैं. जैसे डोलो, क्रोसिन. ये सेफ दवाइयां हैं. किसी भी उम्र के लोग इसे ले सकते हैं. इनका साइड इफ़ेक्ट प्रोफाइल बहुत कम है. एक बात का ध्यान रखें. एक दिन में इस दवाई की 4 ग्राम से ज़्यादा डोज़ ना लें. इसके ओवरडोज़ से लिवर को नुकसान हो सकता है.
दूसरी तरह की पेन किलर सूजन पर असर करती है. अगर चोट लगने पर लाल हो गया है, उसे इन्फ्लेमेशन कहते हैं. इसके लिए जो पेनकिलर दिए जाते हैं, उसे मेडिकल भाषा में इसे NSAIDs (नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स) कहते हैं. ये एक एंजाइम पर असर करती है. इससे प्रोस्टाग्लैंडिंस नाम का केमिकल शरीर में कम हो जाता है. तब हमें कम दर्द महसूस होता है. जैसे, डिक्लोफेनाक सोडियम (Diclofenac Sodium), नेपरोक्सन (naproxen). ये बहुत असरदार और स्ट्रॉन्ग होती हैं. इसको लंबे समय तक नहीं लेना चाहिए. अगर लंबे समय तक खाएंगे तो किडनी को नुकसान हो सकता है. किडनी फेल हो सकती है. इसलिए जितना डोज़ डॉक्टर ने बोला है, उतना ही खाएं. अगर पेन किलर में कम पानी पीने की बंदिश नहीं है, तो पानी ज़्यादा पीएं, ताकि किडनी को नुकसान ना पहुंचे.
तीसरी तरह की पेन किलर हैं, Opioids (ओपिओइड्स). ये नर्वस सिस्टम पर असर करती है. इनसे दर्द का परसेप्शन कम हो जाता है, यानी इंसान को लगता है दर्द कम हो गया है. जैसे कोडीन (Codeine), मॉर्फीन(Morphine). इनका एब्यूज पोटेंशियल बहुत ज्यादा होता है यानी लोगों को इसकी लत लग जाती है. फिर वो इसे इस्तेमाल करते हैं क्योंकि उन्हें अच्छा लगता है.
अब समझे पेन किलर को कैसे पता चलता है कि कहां और क्या काम करना है. पर ज़्यादा पेन किलर लेना आपकी सेहत के लिए नुकसानदेह है. इसलिए बिना डॉक्टर की सलाह के, खुद कोई पेन किलर हरगिज़ ना लें.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें.