वोट बैंक की राजनीति में कैसे हुई राम की एंट्री, कहानी नेहरू के ‘बालकांड’ से राव के ‘लंकाकांड’ की
अयोध्या में प्रभु राम के कई रूप हैं. वह हर देखने वाले के लिए अलग तरीके से स्वयं को प्रस्तुत करते हैं. किसी को आंगन में घुटनों पर चलते हुए रामलला दिखते हैं, किसी को माता सीता के साथ विराजमान सियाराम दिखते हैं और किसी को मां शबरी के हाथ से झूठे बैर खाते हुए आंसुओं से भीगे हुए राम दिखते हैं.
यह सब इस देश के राम हैं, एक सामान्य मनुष्य के राम हैं, लेकिन एक राम इस देश की राजनीति के भी हैं. जिसमें कांग्रेस के राम, बीजेपी के जय श्रीराम और वीपी सिंह और मुलायम सिंह यादव के सियासी राम की कहानी है.
राजनीति के राम की एक पटकथा मुलायम सिंह ने भी लिखी है. उस पटकथा के केंद्र में कारसेवकों पर गोलीबारी है. राम कथा का यह अध्याय काफी छोटा है, लेकिन इसका असर बहुत बड़ा है. दूसरी तरफ राजनीति के राम की सबसे लंबी पटकथा कांग्रेस ने लिखी, लेकिन उसका असर सबसे कम दिखा.
गर्भ गृह में रामलला की मूर्ति विराजमान
कांग्रेस के प्रभु राम की कहानी कांग्रेस जैसी ही है. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय राम का बालकांड संपन्न हुआ था. उन्हीं के समय विवादित परिसर के गर्भ गृह में रामलला की मूर्ति विराजमान हुई थी. उसके बाद राजीव गांधी के समय राम की कहानी परवान चढ़ी और आखिर में कांग्रेस के नरसिम्हा राव के समय आधुनिक अयोध्या कांड का लंकाकांड संपन्न हुआ.