IC-814: प्लेन हाईजैक की प्लानिंग में शामिल था मुंबई का यह लड़का, बनवाए थे आतंकियों के पासपोर्ट
वेब सीरीज IC-814 को लोग नेटफिलिक्स पर जमकर देख रहे हैं. इसके पीछे कारण यह भी है कि वेब सीरीज के साथ विवाद जुड़ गया है. घटना करीब 25 साल पहले की है, जिसके बारे में आज का युवा कम ही जानता है. हालांकि सीरीज को सिर्फ 6 एपिसोड में समेटकर अनुभव सिन्हा ने उसके साथ न्याय नहीं किया, क्योंकि इसमें बहुत कुछ दिखाया ही नहीं गया है. इस फ्लाइट को हाइजैक करने के पीछे पांच पाकिस्तानी आतंकियों और उनकी प्लानिंग को बताया जाता है, लेकिन असल में इस घटना के पीछे सबसे बड़ी भूमिका भारत में ही रहकर देश के खिलाफ साजिश रचने वाले एक युवक की थी.
यह शख्स मुंबई में रहता था. इसका नाम अब्दुल लतीफ था. 8वीं तक ही पढ़ा था. करने को उसके पास कुछ काम नहीं था. बस किशोरावस्था के दौरान स्थानीय मस्जिदों के आसपास घूमते और धर्म प्रचारकों की बातें सुनता था. अब्दुल की जिंदगी ऐसे ही चल रही थी. एक दिन आतंकी संगठन हरकत-उल-अंसार ने उससे संपर्क किया. बेरोजगार अब्दुल के पास भी करने को कुछ नहीं था. धर्म के ठेकेदारों की बात सुनकर कट्टरवादी सोच का शिकार हो चुके इस युवक ने उनके साथ काम करने की हामी भर दी.
30.12.1999 को अब्दुल लतीफ और यूसुफ नेपाली नाम के एक दूसरे शख्स को जांच के दौरान मुंबई में गिरफ्तार किया गया था. जांच के दौरान मुंबई पुलिस ने भारतीय पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस और होटल बुकिंग आदि से संबंधित दस्तावेज बरामद किए. बरामद किए गए भारतीय पासपोर्ट अपहरणकर्ताओं (पाकिस्तान के नागरिक) के थे. हालांकि विमान के अपहरण की प्रक्रिया में उनका इस्तेमाल नहीं किया गया था.
अब्दुल ने पूछताछ के दौरान कई चौंकाने वाले खुलासे किए थे, जिसके कुछ अंश इस प्रकार हैं:
अफगानिस्तान जाकर ट्रेनिंग ली. फिर दो आतंकियों के साथ अब्दुल कराची गया. जब वो यहां पर पहुंचा तो उसने देखा कि मसूद अजहर का साला यूसुफ अजहर कराची से ढाका के लिए निकल रहा था. एयरपोर्ट पर अब्दुल को लेने के लिए राशिद सिद्दीकी और कारी नवीद नाम के दो आतंकी आए. राशिद कराची में एचयूएम का प्रमुख था. लगभग 10-15 मिनट बाद कारी ने अब्दुल को एक गाइड के साथ इस्लामाबाद भेज दिया, जहां वह एचयूएम की इमारत में रुका. वहां पर फजल-उर-रहमान और फारूक कश्मीरी का आफिस और निवास था. रहमान ने उसे फारूक से मिलवाया, जिसने अब्दुल को भारत के खिलाफ लड़ने के लिए उकसाया और अफगानिस्तान में 40 दिनों की ट्रेनिंग लेने का निर्देश दिया.
एक दिन बाद अब्दुल को मीरान शाह के रास्ते अफगानिस्तान ले जाया गया. वहां से वह अफगानिस्तान के खोश्त पहुंचा, जहां से उसे HUM के प्रशिक्षण केंद्र में ले जाया गया. ताहिर हयात प्रशिक्षण केंद्र का प्रभारी था, जिसे बताया गया कि उसे फजल-उर-रहमान ने प्रशिक्षण के लिए भेजा था. वहां 125 आतंकवादी प्रशिक्षण ले रहे थे. उनमें से अधिकांश पाकिस्तानी थे, जबकि कुछ ब्रिटेन से थे. अब्दुल को यहां AK-47, पिस्तौल, HMG/LMG राइफल, रॉकेट लॉन्चर आदि जैसे हथियारों को संभालने और चलाने का प्रशिक्षण दिया गया. उसको यहां पर बम बनाने का तरीका भी सिखाया गया और ट्रेनिंग पूरी करने के बाद वह इस्लामाबाद वापस आ गया.
कहां बनी हाईजैक की प्लानिंग
विमान को हाईजैक करने की साजिश जुलाई-अगस्त, 1998 में शुरू हो गई थी, जब मसूद अजहर के साले यूसुफ अजहर ने अब्दुल लतीफ से मुलाकात की. सितंबर 1998 में यूसुफ अजहर ने मोहम्मद सलीम और मोहम्मद करीम के नाम से भारतीय पासपोर्ट पर बांग्लादेश के लिए वीजा प्राप्त करने के लिए अब्दुल से मदद मांगी. फरवरी 1999 में यूसुफ अजहर ने अब्दुल से किराए पर एक फ्लैट का इंतजाम करने को कहा. अब्दुल लतीफ ने जावेद ए. सिद्दीकी के काल्पनिक नाम से गोरेगांव पश्चिम में माधव बिल्डिंग में एक फ्लैट का इंतजाम किया. अप्रैल 1999 में यूसुफ अजहर शाकिर उर्फ शंकर (ए-5) के साथ मुंबई पहुंचा. दोनों माधव बिल्डिंग के फ्लैट में रुके. यूसुफ अजहर ने इब्राहिम अतहर और शाकिर उर्फ शंकर की तस्वीरें अब्दुल को पासपोर्ट बनवाने के लिए दीं.
अब्दुल लतीफ ने उनके पासपोर्ट की व्यवस्था करने के लिए सेवन ट्रैवल्स से संपर्क किया. मई-जून 1999 के महीने में अख्तर, असरफ और यूसुफ अजहर ने जम्मू जेल से एक सुरंग के माध्यम से मसूद अजहर को भागने में मदद करने के लिए जम्मू का दौरा किया, लेकिन इस प्रयास में जम्मू जेल में हिरासत में बंद साजिद अफगानी मारा गया. जम्मू में मौजूद दो आतंकवादियों यानी अख्तर और यूसुफ अजहर को जम्मू पुलिस ने संदेह के आधार पर जेल के पास घूमते हुए पकड़ लिया. हालांकिजिस होटल में वे ठहरे थे, उसके मैनेजर पर उनकी रिहाई सुनिश्चित करने के लिए दबाव डाला गया.
दिल्ली आया और निजामी होटल में रुका
जून 1999 में यूसुफ अजहर ने अब्दुल लतीफ को बॉम्बे में किराए पर एक और फ्लैट का इंतजाम करने के लिए कहा. यूसुफ अजहर ने मोहम्मद सलीम के नाम से अपना पासपोर्ट अब्दुल लतीफ को दिया और निर्देश दिया कि वह बांग्लादेश का वीजा लेने के लिए दिल्ली जाए. अब्दुल ने यूसुफ अजहर का पासपोर्ट और अपना पासपोर्ट ले लिया, जो विपिन भारत देसाई के नाम पर था. वह दिल्ली आया और निजामुद्दीन के निजामी होटल में रुका, जिसके बाद उसने बांग्लादेश दूतावास से वीजा प्राप्त किया.
वीजा मिलने के बाद वह गोल्डन टेंपल मेल ट्रेन से मुंबई गया. जुलाई 1999 में अब्दुल लतीफ और यूसुफ अजहर कलकत्ता गए. वहां पर होटल में 1-2 दिन रुकने के बाद वे कार से दीनापुर बॉर्डर पहुंचे. बॉर्डर पार करने के बाद बस से ढाका पहुंचे. इसके बाद यूसुफ अजहर कराची चला गया और अब्दुल लतीफ को मौलाना के छोटे भाई अब्दुल रऊफ काठमांडू के रास्ते ढाका पहुंचा. जहां उसे रऊफ को रिसीव करना था. इसी समय अजहर मसूद का एक और भाई इब्राहिम अतहर भी काठमांडू में मौलाना की रिहाई के लिए प्रयास कर रहा था.
अब्दुल रऊफ ने ढाका में छावनी क्षेत्र के पास यानी बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान के घर के पास इन लोगों के ठहरने की व्यवस्था की, जिसमें अब्दुल लतीफ, यूसुफ अजहर, सनी अहमद काजी और शाकिर उर्फ राजेश गोपाल वर्मा उर्फ आरजी वर्मा रुके. 3-4 दिनों के बाद मिस्त्री जहूर इब्राहिम भी फ्लैट में आ गया. अगले 3-4 दिनों के बाद शाहिद अख्तर भी वहां पहुंच गया, सितंबर 1999 में सात व्यक्तियों की एक बैठक आयोजित की गई. इसमें भूपाल मान दमाई उर्फ यूसुफ नेपाली, यूसुफ अजहर और दिलीप कुमार भुजेल को छोड़कर सभी मौजूद थे.
उसने तालिबान के एक मंत्री से बात की
इब्राहिम अतहर ने उन्हें बताया कि वह काठमांडू में डेढ़ साल से इस योजना पर काम कर रहा है, क्योंकि इंडियन एयरलाइंस की उड़ान को आसानी से अपहरण किया जा सकता है. उसने उनसे यह भी कहा कि वह काठमांडू से ही हथियारों की व्यवस्था के लिए काम कर रहा है. इस बैठक में इब्राहिम अतहर ने यात्रियों के बदले मसूद अजहर को जेल से रिहा करने के लिए काठमांडू से इंडियन एयरलाइंस के विमान को हाईजैक करने की योजना के बारे में बात की. उसने तालिबान के एक मंत्री से बात की थी, जिसने उसे पूरा समर्थन देने की बात कही.
योजना विमान को पाकिस्तान या अफगानिस्तान ले जाने की थी. इब्राहिम अतहर ने यह भी कहा कि अगर मसूद अजहर और अन्य को रिहा करने की उनकी मांग भारत सरकार द्वारा स्वीकार नहीं की गई, तो वे विमान को उड़ा देंगे और मर जाएंगे. इब्राहिम अतहर के कहने पर अब्दुल लतीफ को पाकिस्तानी आतंकवादियों के लिए भारतीय दस्तावेज हासिल करने थे. 11.09.1999 को काजी सनी अहमद के साथ अब्दुल लतीफ भारत आया. वह पहले सिलीगुड़ी गए और फिर पटना होते हुए बॉम्बे पहुंचे. काजी सनी अहमद गोल्डन सॉइल अपार्टमेंट में रूका.
अब्दुल लतीफ ने काजी सनी अहमद के लिए ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए प्रगति मोटर ड्राइविंग स्कूल और सेवन ट्रैवल्स से संपर्क किया. अब्दुल लतीफ ने अपने मोबाइल के लिए प्रीपेड सिम कार्ड लिया, जिसका नंबर 9820XXXXXX था. इस मोबाइल का इस्तेमाल अब्दुल रऊफ के संपर्क में रहने के लिए किया गया. अक्टूबर, 1999 में अब्दुल रऊफ ने मोबाइल के जरिए अब्दुल लतीफ को संदेश भेजा कि वह पश्चिम बंगाल के मालदा शहर में दो और पाकिस्तानी आतंकवादियों को भेज रहा है और उसे आतंकवादियों को लेने के लिए किसी को भेजे. अब्दुल ने अपने सौतेले भाई के रेस्तरां में वेटर चंदन राय को इस काम में लगाया.
प्रगति मोटर ड्राइविंग स्कूल गया
बॉम्बे पहुंचने पर वह दोनों गोल्डन सॉइल अपार्टमेंट के फ्लैट में रुके. शाकिर उर्फ राजेश गोपाल वर्मा ने अपने ड्राइविंग लाइसेंस के लिए सिल्वर मोटर ड्राइविंग स्कूल से संपर्क किया और अब्दुल लतीफ ने शाहिद सईद अख्तर और जहूर इब्राहिम मिस्त्री के पासपोर्ट के लिए सेवन ट्रैवल्स से संपर्क किया. बाद में अब्दुल लतीफ सनी अहमद काजी और जहूर इब्राहिम मिस्त्री को ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए प्रगति मोटर ड्राइविंग स्कूल ले गया है. उसने पासपोर्ट बनवाने के लिए जहूर इब्राहिम मिस्त्री की तस्वीरें सेवन ट्रैवल्स के सुरेश को दी, जो पासपोर्ट बनवाने के लिए जरूरी कागजात मुहैया कराने का काम करता था.
नवंबर 1999 में अब्दुल लतीफ एक अन्य आतंकी शाहिद सईद अख्तर के साथ इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट से काठमांडू पहुंचा और 10 नवंबर तक काठमांडू के इंपीरियल होटल में रुके. शाहिद सईद अख्तर ने अब्दुल लतीफ की सहायता से वैशाली ड्राइविंग स्कूल से तैयार अपना लाइसेंस कोरियर के जरिए काठमांडू मंगवाया. इब्राहिम अतहर ने शाहिद सईद अख्तर से कहा कि वह 19.11.1999 को काठमांडू पहुंच जाएगा.
अब्दुल लतीफ और शाहिद सईद अख्तर दोनों इब्राहिम अतहर को लेने गए और तीनों काठमांडू के तिब्बत गेस्ट हाउस में रुके. शाहिद सईद अख्तर अपने कमरे से हथियार लाया और सभी को यह दिखाए. इन हथियारों में तीन रिवॉल्वर, तीन हैंड ग्रेनेड और कई कारतूस थे. 23.11.1999 को उन्होंने न्यू गेस्ट हाउस से चेकआउट किया और काठमांडू के थमेल क्षेत्र में होटल तुलुची में एक कमरा लिया. इब्राहिम अतहर 25.11.1999 तक अब्दुल लतीफ के साथ रहा और फिर भारत आ गया.
अतहर के लिए ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया
अब्दुल लतीफ ने वैशाली ड्राइविंग स्कूल से इब्राहिम अतहर के लिए ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया था. इब्राहिम अतहर से संदेश मिलने पर वह काठमांडू पहुंचा. अब्दुल लतीफ सबसे पहले ट्रेन से बॉम्बे से गोरखपुर गया और फिर काठमांडू पहुंचा. अब्दुल लतीफ काठमांडू के स्वोनिगा होटल में विजय गुप्ता के नाम से रुका. 12.12.1999 को सनी अहमद काजी और जहूर इब्राहिम मिस्त्री भी काठमांडू पहुंचा, जहां वह होटल इंपीरियल में रुके. यह दोनों इब्राहिम अतहर का ड्राइविंग लाइसेंस लेकर आए, जोकि अहमद अली मोहम्मद अली शेख के नाम पर था.
11.12.1999 को अब्दुल लतीफ और शाकिर उर्फ राजेश गोपाल वर्मा गुप्ता के नाम से होटल सूर्या में ठहरे. 13.12.1999 को काठमांडू चिड़ियाघर में इब्राहिम अतहर ने सभी लोगों को काठमांडू से दिल्ली जाने वाली इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट को हाईजैक करने की योजना बताई. तब तक वह यह समझ रहा था वह भी हाईजैक करने वाले दल में शामिल होगा. हालांकि, इब्राहिम अतहर ने मीटिंग में कहा कि वह उनके साथ हाईजैक में नहीं जाएगा और मुंबई वापस लौटने का आदेश दिया, क्योंकि अगर योजना विफल हो जाती है तो भारत में उनके संगठन के लिए काम करने वाला कोई तो होगा.
इसके साथ ही उसे कराची में अब्दुल रऊफ के संपर्क में रहने का निर्देश दिया. सभी पांच अपहरणकर्ताओं को कोड नाम दिए गए थे. चीफ यानी इब्राहिम अतहर, सनी अहमद काजी को बर्गर, शाहिद सईद अख्तर को डॉक्टर, शाकिर उर्फ राजेश गोपाल वर्मा को शंकर और जहूर इब्राहिम मिस्त्री को भोला.
अब्दुल लतीफ दिल्ली वापस आ गया
अब्दुल लतीफ ने 17.12.1999 को अपने लिए हवाई टिकट लिए और दिल्ली वापस आ गया, जहां वह दिल्ली के निजामुद्दीन में होटल निजामी में रुका. उसने 18.12.1999 को दिल्ली से बॉम्बे के लिए गोल्डन टेंपल ट्रेन ली और 19.12.1999 को बॉम्बे पहुंचा. बॉम्बे पहुंचने के बाद अब्दुल लतीफ ने कराची में अब्दुल रऊफ से संपर्क किया. काठमांडू में ठहरने आतंकी 24.12.1999 तक अब्दुल लतीफ के संपर्क में रहे.
23.12.1999 को उसने ने अपने मोबाइल फोन के लिए एक और प्रीपेड सिम कार्ड खरीदा, जिसका नंबर 982011xxxx था. उसे 24.12.1999 को शाहिद सईद अख्तर से संदेश मिला कि वे यूसुफ नेपाली नामक व्यक्ति को भारत भेज रहे हैं और गोल्डन सॉइल अपार्टमेंट में उसके रहने की व्यवस्था की जाए. अब्दुल को उसके लिए पासपोर्ट तैयार करने और बांग्लादेश के लिए वीजा प्राप्त करने का भी निर्देश दिया गया था.
24.12.1999 को उसे फोन आया कि इब्राहित अतहर एयरपोर्ट के अंदर मेटल डिटेक्टर से गुजर चुका है और वे होटल से निकल रहे हैं. अब्दुल लतीफ ने कराची में अब्दुल रऊफ को इसकी जानकारी दी. अब्दुल लतीफ़ को दोपहर 2.30 बजे जहूर मिस्त्री से संदेश मिला कि फ्लाइट दो घंटे देरी से चल रही है. शाम करीब 5.45 बजे उसने टेलीविजन पर खबर सुनी कि इंडियन एयरलाइंस की उड़ान IC-814 का अपहरण कर लिया गया है, उसने यह बात कराची में अब्दुल रऊफ को बताई.
25.12.1999 को यूसुफ नेपाली ने अब्दुल लतीफ़ को टेलीफोन पर बताया कि वह गोरखपुर से ख़ुशीनगर एक्सप्रेस से बॉम्बे आ रहा है. अब्दुल लतीफ़ को अब्दुल रऊफ का एक टेलीफोन कॉल आया कि वह 2/3 दिनों के लिए उपलब्ध नहीं होगा, क्योंकि वह कंधार जा रहा है और अपहरणकर्ताओं की मदद करना चाहता था. 27.12.1999 को अब्दुल रऊफ ने उसे बताया कि वह कंधार नहीं जा सकता, लेकिन वह हवाला के जरिए यूसुफ नेपाली के परिवार के लिए 1 लाख रुपए भेज रहा है. हालांकि जांच एजेंसियों ने अब्दुल लतीफ को 30.12.1999 को सुबह 11 बजे गिरफ्तार कर लिया.
क्यों चुना काठमांडू एयरपोर्ट?
बैठक में इस बात पर चर्चा की गई कि हथियार को विमान के अंदर कैसे ले जाया जाए. इब्राहिम अतहर ने हथियार विमान के अंदर ले जाने के लिए तीन व्यक्तियों को चुना जिसमें वह खुद, सनी काजी अहमद और सईद अख्तर शामिल थे. इब्राहिम अतहर ने यहां पर मौजूद सभी को बताया कि काठमांडू एयरपोर्ट पर सुरक्षा कर्मचारी आलसी हैं और सुरक्षा जांच ढीली है. इसलिए जब कोई मेटल डिटेक्टर से गुजरता है तो सुरक्षा कर्मचारी ध्यान नहीं देते और ऐसी ढीली व्यवस्था का फायदा उठाना आसान होता है.
उसने यह भी कहा कि टीम का एक सदस्य हथियारों और ग्रेनेड के साथ आगे बढ़ेगा, अगर वह बिना पकड़े एयरपोर्ट के अंदर जाने में सक्षम हो जाता है तो वह दूसरों को फोन करेगा और फिर वह सभी एयरपोर्ट में प्रवेश करेंगे. उन्होंने यह भी बताया कि यदि पहला सदस्य पकड़ा गया या उससे कोई संदेश नहीं मिला तो अन्य सदस्य तुरंत काठमांडू से भारत चले जाएंगे और वहां से बांग्लादेश और उसके बाद पाकिस्तान चले जाएंगे.
यह तय हुआ कि अपहृत विमान को अफगानिस्तान ले जाया जाएगा. इब्राहिम अतहर ने अब्दुल को उसके लिए एए शेख के नाम से बिजनेस क्लास में टिकट बुक करने को कहा. काजी सनी अहमद के लिए काजी के नाम से बिजनेस क्लास में और मिस्त्री, सईद और आरजी वर्मा के लिए इसी नाम से इकॉनमी क्लास में टिकट बुक करने को कहा.
उसने 20.12.99 से 30.12.99 के बीच किसी भी तारीख को काठमांडू से दिल्ली के लिए इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट में टिकट बुक करने को कहा और निर्देश दिया. टिकट बुकिंग के बाद शेख एए और काजी एसए नामक यात्रियों को बिजनेस क्लास में क्रमशः सीट संख्या 3ए और 2बी आवंटित की गई थी, जबकि मिस्त्री, आरजी वर्मा और सईद को इकोनॉमी क्लास में क्रमशः सीट संख्या 8सी, 23जी और 19जी आवंटित की गई थी.