IC 814 वेब सीरीज के ‘भोला’ और ‘शंकर’ की कहानी, डायरेक्टर अनुभव सिन्हा से कहां हुई चूक?
डायरेक्टर अनुभव सिन्हा एक बार फिर बहस के केंद्र में हैं. नसीरुद्दीन शाह, पंकज कपूर, विजय वर्मा जैसे कलाकारों वाली IC 814 The Kandahar Hijack वेब सीरीज में उन्होंने कंधार विमान अपहरण कांड को दिखा कर पुराने जख्म की याद ताजा कर दी. उन पर आरोपों की बौछार शुरू हो गई. किसी ने कहा- ये काउंटर सिनेमा है, मतलब नेहरू युग, इंदिरा युग की गलतियों पर विशेष फोकस करती जिस तरह कुछ फिल्में बनाई गईं उसी तरह कंधार हाईजैक की घटना दिखाकर उन्होंने सत्ता को आईना दिखाने का काम किया. यानी मुश्किलें और खामियां हर सरकार में होती हैं. किसी ने सवाल उठाया- यहां आतंकवादियों का नरम चित्रण हुआ है, उसे गाते, बजाते और अंत्याक्षरी खेलते दिखाया गया. किसी ने तो ये भी कहा- आतंकवादियों का नाम ‘भोला’ और ‘शंकर’ बताकर आने वाली पीढ़ियों को गुमराह किया गया, गलत इतिहास दिखाया गया. यही वजह है कि विरोधी तो विरोधी अनुभव सिन्हा के प्रशंसकों ने भी उन पर बड़े सवाल उठाये.
ज्यादातर लोगों का कहना है कि नेटफ्लिक्स और सीरीज डायरेक्टर से इस मसले पर गंभीर चूक हुई है. सीरीज देखकर कुछ लोगों ने सबसे पहला सवाल उठाया- आतंकवादियों का नाम ‘भोला’ और ‘शंकर’ क्यों बताया गया? जबकि वे मु्स्लिम आतंकवादी थे. उनका हिंदू नाम क्यों? क्या डायरेक्टर-राइटर इससे बच सकते थे? आरोपों में बताया गया है कि सीरीज में बार-बार ‘भोला’ और ‘शंकर’ बोला गया- यह कितना सच है? सीरीज में कितनी बार ‘भोला’ और ‘शंकर’ का संबोधन सुनाई देता है? ये संबोधन दर्शकों के जेहन को कितना प्रभावित कर सकने या इतिहास बदलने में सक्षम हैं? सीरीज मेकर्स कंधार हाईजैक की कहानी को फिल्माने में कितने कामयाब हुए? आदि ऐसे कई सवाल हैं जिसकी चर्चा आज हम यहां करने जा रहे हैं.
‘भोला’ और ‘शंकर’ विवाद से सीरीज पर असर
हालांकि पिछले दिनों नेटफ्लिक्स इंडिया की कंटेंट हेड मोनिका शेरगिल और केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्रालय के बीच हुई वार्ता के बाद वेब सीरीज के ओपनिंग डिस्क्लेमर में सुधार कर दिया गया. ‘भोला’ और ‘शंकर’ जैसे सभी कोडनेम के वास्तविक नाम भी बता दिए गए. लेकिन कहानी की बारीकी में जाएं तो पूरा मामला इतना भोला-भाला भी प्रतीत नहीं होता. विवाद की शुरुआत इन्हीं दोनों नामों से हुई थी. मुस्लिम आतंकवादी ‘भोला’ और ‘शंकर’ कहलाएं- ये सहनीय कैसे हो सकता था? सोशल मीडिया पर ये बवाल वायरल होते देर नहीं लगी और शिकायत सरकार तक पहुंची. लेकिन ना तो सीरीज पर प्रतिबंध लगा और ना ही नेटफ्लिक्स के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई बल्कि उल्टा जबरदस्त प्रचार मिल गया.
इसका नतीजा ये हुआ कि 24 दिसंबर, 1999 की दहशत भरी वो दास्तां एक बार फिर सुनी सुनाई जाने लगीं. आतंकी वारदात के चश्मदीदों और भुक्तभोगियों के दर्द छलक आए. 25 साल पहले के आतंक के उन सात दिनों की उस खौफनाक दास्तां से आज की पीढ़ी रूबरू हुई. इस प्रकार देखें तो पूरे विवाद से फायदा नेटफ्लिक्स और IC 814 वेब सीरीज को ही हुआ. जो लोग कभी कोई वेब सीरीज नहीं देखते, उन्होंने भी इसे देखना चाहा. ऐसे में सीरीज में ‘शंकर’ और ‘भोला’ विवाद वाकई अनोखा है. क्या ‘शंकर’ और ‘भोला’ के माध्यम से आतंकवादियों की पहचान छुपाई गई?
जब सरकार ने नेटफ्लिक्स से इस बाबत पूछा तो जवाब मिला- विमान अपहरण के दौरान पांचों आतंकवादियों के कोडनेम थे- चीफ, बर्गर, डॉक्टर, शंकर और भोला. वे आपस में एक-दूसरे को इसी कोडनेम से पुकारते थे. यह तथ्य सरकारी दस्तावेज में भी मौजूद है. वहीं, यह सीरीज फ्लाइट इनटू फियर (Flight into Fear) नामक जिस किताब पर आधारित है, उसमें भी इस तथ्य और वाकये का जिक्र है. यह किताब खुद कैप्टन देवी शरण ने श्रीजॉय चौधरी के साथ मिलकर लिखी है. सीरीज में एक्टर विजय वर्मा ने IC 814 विमान उड़ाने वाले कैप्टन देवी शरण की भूमिका निभाई है. कैप्टन देवी शरण ने मौका-ए-वारदात पर जो-जो देखा, उसे ही लिखा था.
क्या आतंकवादियों की पहचान छुपाई गई?
IC 814 द कंधार हाईजैक वेब सीरीज देखकर इन दोनों नामों को लेकर उठे विवाद पर थोड़ी हैरानी होती है. रिकॉर्ड के मुताबिक पांचों आतंकियों के असली नाम और कोडनेम इस प्रकार थे- 1. इब्राहिम, वह बहावलपुर का रहने वाला था, उसे चीफ कहा जाता था; 2. शाहिद अख्तर सैय्यद, वह कराची का रहने वाला था और उसका कोडनेम था- डॉक्टर; 3. सनी अहमद काजी, यह भी कराची का था और इसे बर्गर कोडनेम से पुकारा जाता था; 4. मिस्त्री जहूर इब्राहिम, यह भी कराची शहर से आया था, जिसका कोडनेम था- भोला; और 5. शाकिर, जो कि सुकुर सिटी का रहने वाला था, उसका कोडनेम था- शंकर.
विमान के अंदर इन पाचों आतंकवादियों की अलग-अलग पोजिशनिंग थी और काम का बंटवारा भी किया गया था. चीफ, बर्गर और डॉक्टर ज्यादातर पायलट के आस-पास और कॉटपिट में ही रहते थे जबकि भोला और शंकर की ड्यूटी विमान के अंदर यात्रियों के पास होती थी. ये दोनों यात्रियों को डरा-धमकाकर रखते थे. वहीं पायलट को लैंड और टेकऑफ करने के लिए ज्यादातर चीफ और बर्गर कहा करते थे.
गौर करने वाली बात ये है कि सीरीज की शुरुआत से ही इन सभी आतंकवादियों की धार्मिक पहचान उजागर हो जाती है. पायलट और यात्रियों के साथ-साथ सीरीज देखने वालों के लिए भी यह तथ्य छुपा नहीं रह जाता कि ये पांचों मुस्लिम आतंकवादी हैं. जब आतंकवादी IC 814 विमान को लाहौर, अमृतसर, दुबई या काबुल ले जाने को कहता है तब तो उसकी मुस्लिम पहचान साफतौर पर जाहिर हो जाती है. चीफ, बर्गर, डॉक्टर, भोला और शंकर ये फर्जी नाम हैं- किसी से छुपा नहीं रह जाता.
सीरीज में ‘भोला’ और ‘शंकर’ का मामला कितना गंभीर?
विवादों के मद्देनजर सीरीज में इन दो हिंदू नामों की पड़ताल अचंभित करती है. वेब सीरीज के शुरुआती तीन एपिसोड में एक बार भी ‘भोला’ और ‘शंकर’ नाम सुनने को नहीं मिलता. जब हम सीरीज के चौथे एपिसोड में आते हैं तो करीब 14वें मिनट पर प्लेन के कंधार पहुंचने के बाद एक सीन में बर्गर कॉकपिट से ही यात्रियों को कहता है- “आप सभी लोग अब अपना सर ऊपर कर सकते हैं. मेरा नाम बर्गर है. पीछे हमारे दो साथी हैं- शंकर और भोला. हमें अपना काम करने दें. वो आपका कुछ नहीं करेंगे.”
इसी एपिसोड में करीब 28वें मिनट पर विमान के अंदर टॉयलेट की बदबू फैल जाने के बाद बर्गर फिर बोलता है- “भोला, डॉक्टर को बुला, ये लोग बोल रहे हैं… न खाने को हो रहा न जाने को हो रहा है.”
इसके बाद ना तो पांचवें और न ही छठे एपिसोड में फिर कभी ‘भोला’ और ‘शंकर’ नाम का संबोधन हुआ है. यानी पूरी सीरीज में केवल चौथे एपिसोड में सिर्फ दो बार ‘भोला’ और एक बार ‘शंकर’ नाम लिया गया है. जिस पर इतना विवाद हुआ और सोशल मीडिया पर बायकॉट और बैन की मुहिम छेड़ी गई.
क्या डायरेक्टर अनुभव सिन्हा से हुई चूक?
अब अहम सवाल ये कि किसी आतंकी का ‘भोला’ और ‘शंकर’ नाम एक बार भी क्यों? इसके फिल्मांकन पर अतिरिक्त सावधानी क्यों नहीं बरती गई? सरकार से संवाद के बाद डिस्क्लेमर को जिस तरह से अपडेट किया गया, अगर उसे पहले ही चस्पां किया गया होता या आतंकवादियों को कोडनेम से पुकारे जाने के दौरान सब टाइटल के जरिए असली नाम लिखे गये होते तो संभव है इतना विवाद नहीं होता. लेकिन विचारणीय यह भी है कि ये कोई इतनी बड़ी चूक नहीं थी कि छह एपिसोड की सीरीज में दो बार ‘भोला’ और एक बार ‘शंकर’ संबोधन से इतिहास बदल जाएगा या कि नई पीढ़ी गुमराह हो जाएगी, जबकि ये नाम ना तो फेक हैं और ना ही काल्पनिक.
दिलचस्प बात ये कि पूरी सीरीज में घटना में शामिल आतंकवादियों के कोडनेम पर तो विवाद हो गया लेकिन इसी सीरीज में तत्कालीन विदेश मंत्री, रॉ और आईबी के अधिकारी या प्रधानमंत्री के सुरक्षा सलाहकार के नाम काल्पनिक रखे गये तो उस पर किसी का ध्यान नहीं गया. पंकज कपूर तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह के किरदार में हैं लेकिन सीरीज में उनका नाम विजय भान सिंह है. इसी तरह पूर्व पीएम के मुख्य सचिव ब्रजेश मिश्र के किरदार का नाम बसंत मिश्र है. इनके अलावा और भी कई सरकारी अधिकारी हैं जिनके सिनेमाई लिबर्टी में नाम बदले गये हैं. संभव है इनके वास्तविक नाम लिये जाते तो विवाद और भी गहरा जाता, क्योंकि ये सीरीज किसी की बायोपिक नहीं है. ऐसे में इस पॉइंट पर तो सीरीज टीम ने समझदारी दिखाई. काश कि यही समझदारी अगर चीफ, बर्गर, डॉक्टर, भोला और शंकर कोडनेम के डिस्क्लेमर देकर भी दिखाई गई होती.
वेब सीरीज में इन प्रसंगों से बचा जा सकता था
इनके अलावा सीरीज में कुछ और बातें कुछ बेवजह भी लगती हैं. मसलन संपादक और रिपोर्टर वाले कई प्रसंग. इसको कम किया जा सकता था. वहीं बार-बार और बीच बीच में नेपाल चले जाने वाले प्रसंग. इसे भी कम किया जा सकता था. हालांकि डायरेक्टर और सीरीज की पूरी क्रिएटिव टीम ने विमान के अंदर आतंकी के संगीत बजाने और अंत्याक्षरी खेलने के सीन को केवल प्रतिकात्मक तौर पर ही रखा है. उसे उभारा नहीं है. ताकि उस खौफनाक आतंकवादी वारदात की दहशत और दर्द को महसूस किया जा सके. पूरी सीरीज में आर्काइव फुटेज का बहुत ही सटीक इस्तेमाल किया गया है. आर्काइव से जसवंत सिंह की प्रेस कांफ्रेंस उठाई जाती है और उसे तुरंत पंकज कपूर की प्रेस कांफ्रेंस वाले सीन में कंवर्ट कर दिया जाता है. वहीं प्रधानमंत्री के तौर पर किसी कलाकार के बदले पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की आर्काइव बाइट का ही उपयोग किया जाता है. यानी सीरीज में कंधार विमान अपहरण और उस वक्त के सारे राजनीतिक-सामाजिक हालात का प्रामाणिक चित्रण करके डायरेक्टर ने इतिहास को जीवंत बना दिया है. कैप्टन के रूप में विजय वर्मा ने बेहतरीन अदाकारी दिखाई है.