‘नीतीश नहीं तो मोदी ही सही’ JDU में उठी आवाज, लालू का दांव फेल, अब क्या करेंगे सुशासन बाबू?
इंडिया गठबंधन की बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को संयोजक नहीं बनाए जाने से जेडीयू ही नहीं, बल्कि लालू प्रसाद भी नाराज हैं. जेडीयू ने अगली रणनीति तय करने के लिए 29 दिसंबर को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है. वहीं, बिहार में इंडिया गठबंधन में टूट को लेकर कयासों का बाजार गरम हो उठा है. दरअसल जेडीयू में अब दबी जुबान में कहा जाने लगा है कि “नीतीश नहीं तो मोदी ही सही”. ज़ाहिर है नीतीश कुमार को कोई पद नहीं मिलने से लालू प्रसाद को एकतरफ बिहार की सत्ता खोने का डर सताने लगा है, वहीं, बेटे तेजस्वी यादव के लिए सीएम की कुर्सी की राह जल्द पूरी होने के बजाय दूर होती दिख रही है.
लालू प्रसाद की मंशा क्षेत्रीय दल और कांग्रेस को एकजुट करने के लिए ये प्रस्ताव पारित करने की थी कि लोकसभा चुनाव के बाद जिस नेता के पक्ष में ज्यादा सांसद होंगे, उन्हें पीएम बनाया जाएगा. लालू प्रसाद क्षेत्रीय दलों में उम्मीद बनाए रखना चाहते थे. इसलिए उसके नेता भी पीएम बन सकते हैं. ये भरोसा कायम करने की उनकी चाहत थी.
लालू प्रसाद क्षेत्रीय दल और कांग्रेस के बीच में सामंजस्य बैठाने के लिए संयोजक पद पर नीतीश कुमार को बैठाना चाह रहे थे, जिससे क्षेत्रीय दल और कांग्रेस के बीच बेहतर तालमेल रहे. वहीं, क्षेत्रीय दल चुनाव में बेहतर तरीके से बीजेपी को चुनौती पेश कर सके.
लालू प्रसाद की रणनीति को केजरीवाल-ममता ने किया फेल
लालू प्रसाद की सोच थी कि नीतीश कुमार विपक्षी दलों के गठबंधन के सूत्रधार रहे हैं. इसलिए उन्हें संयोजक पद दिया जाना चाहिए. वहीं, चुनाव के बाद जीते हुए सांसद जिसे पीएम चुनना चाहें, उसे पीएम बनाने के लिए स्वतंत्र होकर चुनाव करें, लेकिन लालू प्रसाद का यह दांव अरविन्द केजरीवाल और ममता बनर्जी ने मिलकर फेल कर दिया और लालू प्रसाद अपने मंसूबे में नाकामयाब रहे हैं.
लालू प्रसाद एक तीर से कई निशाने साधने के प्रयास में थे. नीतीश कुमार को संयोजक बनाकर लालू प्रसाद एक तरफ अपने बेटे तेजस्वी यादव को सीएम बनाना चाह रहे थे. वहीं, बिहार और आसपास के राज्यों में कुर्मी मतदाताओं को साधकर बिहारी पीएम की आवाज बुलंद करना चाह रहे थे. दरअसल लालू प्रसाद बिहार और आसपास के राज्यों में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर बीजेपी को मैक्सिमम डैमेज पहुंचाना चाह रहे थे. वहीं, बिहार में बिहारी पीएम बनाने के नाम पर बीजेपी को उखाड़ फेंकने की चाहत को पुख्ता करना चाह रहे थे.
जाहिर है बिहार सहित यूपी और झारखंड में इस दांव से लालू प्रसाद कुर्मी वोटों में सेंधमारी की फिराक में थे. वहीं, बिहार की सत्ता पर पुत्र तेजस्वी यादव को बिठाने की चाहत पूरी करने का उनका प्रयास सफल होने की उम्मीद थी. लेकिन अरविन्द केजरीवाल और ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खरगे के नाम को प्रस्तावित कर दलित कार्ड खेल दिया और लालू प्रसाद के दांव सफल होने से पहले ही धाराशाई हो गया.
आरजेडी और जेडीयू केजरीवाल और ममता के इस प्रयास को शक नजरों से देख रहे हैं. आरजेडी मान रही है कि ऐसा दांव बाहरी दवाब में चला गया है. आरजेडी और जेडीयू मान रही है कि ममता और केजरीवाल इंडिया गठबंधन में कनफ्यूजन पैदा करने की फिराक में हैं, इसलिए केजरीवाल और ममता के बीच मीटिंग से पहले तैयार की गई रणनीति को आरजेडी और जेडीयू शक की निगाह से देख रही है.
लालू प्रसाद क्यों हैं मायूस?
सूत्रों की मानें तो लालू प्रसाद नीतीश कुमार को संयोजक नहीं बनाए जाने से खासे नाराज हैं. लालू प्रसाद कैंप को ऐसा लग रहा है कि नीतीश को संयोजक नहीं बनाए जाने से तेजस्वी के सीएम बनने की राह मुश्किल हो गई है. वहीं, बीजेपी को ज्यादा से ज्यादा डैमेज पहुंचाने की लालू प्रसाद की मंशा पर पलीता लग गया है.
जाहिर है आरजेडी मोहन यादव को मध्य प्रदेश में सीएम बनाए जाने के बाद से बिहार में परेशान है. आरजेडी को लग रहा है कि मध्य प्रदेश में मोहन यादव को सीएम बनाकर बीजेपी ने यूपी और बिहार में यादव समाज में सेंधमारी करने का बड़ा प्रयास किया है. बीजेपी अब इस बात का प्रचार जोर-शोर से कर रही है कि लालू और मुलायम परिवार का यादववाद दरअसल परिवारवाद है. जबकि बीजेपी जुझारू और कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ता को सीएम चुनकर उसे बड़ा से बड़ा पद देने का प्रयास कर रही है.
जाहिर है कि बीजेपी में सामान्य कार्यकर्ता भी सीएम और पीएम बन सकता है, जबकि आरजेडी और सपा जैसी पार्टियां लालू और मुलायम परिवार के अलावा किसी और को बड़ा पद देने वाली नहीं है. लालू प्रसाद बीजेपी के इस दांव की काट के लिए नीतीश कुमार को संयोजक बनाकर बिहारी पीएम का दांव खेलना चाह रहे थे.
लालू प्रसाद को उम्मीद थी कि नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने से बिहार में लोकसभा चुनाव में बिहारी पीएम के नाम पर बीजेपी को पटका जा सकेगा. वहीं, यूपी में तकरीबन 7 फीसदी कुर्मी मतदाताओं को भी साधने का बेहतरीन प्रयास असरदार साबित हो सकता है.
लेकिन इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक में लालू प्रसाद की सोच धरी की धरी रह गई और नीतीश कुमार को संयोजक पद दिए जाने की उम्मीद लगभग खत्म हो चुकी है. जाहिर है लालू प्रसाद को अब इंडिया गठबंधन की मजबूती को लेकर शक होने लगा है. वहीं, बिहार सहित आस-पास के राज्यों में बीजेपी को पटखनी देने की उनकी योजना जमीन पर उतरतने से पहले ही फेल होती दिख रही है.
“नीतीश नहीं तो मोदी ही सही” के नारे जेडीयू में क्यों उठने लगे हैं?
इंडिया गठबंधन की चौथी मीटिंग से पहले जेडीयू नीतीश कुमार को पीएम बनाने की मांग उठाता रहा है. जेडीयू को इस बात की उम्मीद थी कि तीन राज्यों में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद कांग्रेस नीतीश कुमार को महत्वपूर्ण पद देने को लेकर तैयार हो जाएगा, लेकिन कांग्रेस नीतीश कुमार को नेतृत्व देना तो दूर बल्कि संयोजक पद देने से भी परहेज करती दिख रही है.
जाहिर है कि जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 29 दिसंबर को बुलाई गई है, जहां आगे की रणनीति को लेकर चर्चा करने की बात कही जा रही है. आरजेडी को डर है कि नीतीश कुमार को राष्ट्रीय फलक पर राजनीति नहीं करने के लिए मौका देना आरजेडी ही नहीं बल्कि इंडिया गठबंधन की मजबूती के लिए काउंटर प्रोडक्टिव हो सकता है.
जेडीयू लोकसभा चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन से राह अलग करने का प्रयास करती है तो इसका सीधा नुकसान आरजेडी को होगा. वहीं, बिहार में भी इंडिया गठबंधन की सरकार औंधे मुंह गिर सकती है. ऐसे में जेडीयू को लेकर कयासों का बाजार गरम है. आरजेडी के लिए लोकसभा की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के अलावा तेजस्वी यादव के सीएम बनने की राह में गंभीर मुश्किलें दिख रही हैं.