गौरी तृतीया व्रत का महत्व, पूजा विधि और कथा
शिव एवं देवी पार्वती की की कृपा प्राप्त करने के लिए माघ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन गौरी तृतीया व्रत का पालन किया जाता है। इस दिन विधिवत रूप से व्रत रखकर पूजा करने और कथा सुनने से माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
यह सौभाग्य वृद्धिदायक व्रत कहा गया है। इस व्रत को करने से सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
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गौरी तृतीया व्रत की पूजा विधि- Gauri tritiya vrat puja vidhi:-
- स्नानादि से निवृत्त होकर शिव और माता पार्वती की मूर्ति को स्नान कराना चाहिए।
- यदि चित्र है तो उसे एक पाट पर लाल वस्त्र बिछाकर विराजमान करें और जल से चित्र को पवित्र करें।
- इसके बाद धूप दीप प्रज्वलित करें और दोनों को हर फूल एवं माला अर्पित करें।
- इसके बाद नैवेदे्य अर्पित करें और पांच तरह के फलों को चढ़ाएं।
- इसके बाद दोनों की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा करें।
- पूजा में जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, लौंग, पान, चावल, सुपारी, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढाते हैं।
- गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी लगाते हैं।
- श्रृंगार की वस्तुओं से माता को सजाते हैं।
- शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिवत पूजन करके गौरी तृतीया कि कथा सुनी जाती है।