यूं ही नहीं हुआ राम से बड़ा राम का नाम, आप भी जान लीजिए राम के सारे गुण एक नजर में

भारतवर्ष में हर वर्ष हर गली, मोहल्ले, शहर-गांव में रामलीला का मंचन अत्यंत हर्षोल्लास से किया जाता है। हर दर्शक को कहानी पता है। नाटक में अगले पल क्या घटित होने वाला है,यह भी पता है।

फिर भी हर दर्शक रोमांचित है। तो फिर यह क्या चमत्कार है कि दर्शक वर्ष दर वर्ष इस रामलीला का मंचन देखने के बाद कभी ऊबता नहीं है। उसका रोमांच उसकी उत्सुकता यथावत रहती है।

Ram Mandir

क्या यह चमत्कार महाकवि तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस का है? जिन्होंने राम कथा ऐसे रची की हर व्यक्ति उसे पढ़ते हुए देखते हुए स्वयं को राम के साथ एका कार कर लेता है। उसे ऐसा प्रतीत होता है कि उनके बीच के समय का अंतराल छूमंतर हो गया है और वह राम कथा को फिर से जी रहा है राम के साथ। रामलीला देखने वाला केवल रामलीला नहीं देख रहा, मानस का पाठ करने वाला केवल पाठ नहीं कर रहा बल्कि उसे अनुभव होता है कि वह एक आध्यात्मिक घटना का साक्षी है और उसका अभिन्न अंग भी। उसका मन मानस अंतरतम की गहराइयों से यह स्वीकार करता है कि राम कथा उसे आध्यात्मिकता की उन ऊंचाइयों तक ले जाती है जहां राम निकट है बिल्कुल अपने हैं जिन्हें महसूस किया जा सकता है ,छुआ जा सकता है और कोशिश करने पर राम जैसा हुआ भी जा सकता है। राम सरल है एकदम सरल। आज्ञाकारी पुत्र, आज्ञाकारी शिष्य, स्नेही भाई, प्रेमिल पति हर अवसर पर सामने वाले से विनम्रता एवं मृदुता का व्यवहार करते हुए सभी से कुछ ना कुछ सीखते हुए ऋषियों मुनियों से भी तो रावण से भी। राम की यही सरलता उनका वह गुण है जो जन सामान्य को भी अपना बना लेता है।

 

 

 

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