J-K: पहली बार ST उम्मीदवारों के लिए सीट रिजर्व, लेकिन तीन समुदायों के बीच छिड़ी ‘जंग’ से कन्फ्यूजन

जम्मू कश्मीर विधानसभा में 9 सीटें ST (अनुसूचित जनजाति) वर्ग के लिए आरक्षित हैं. इस साल फरवरी में लोकसभा ने जम्मू और कश्मीर अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित किया था. गड्डा ब्राह्मण, कोली, पददारी जनजाति और पहाड़ी जातीय समूह को अनुसूचित जनजातियों की सूची में जोड़ा गया. लेकिन गुज्जर, बक्करवाल पहाड़ी लोगों को इसमें जोड़ने से नाराज हैं. वो इसका विरोध करते आए हैं. चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के बाद उनके विरोध ने रफ्तार पकड़ी. अब सवाल उठ रहा कि एसटी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर एसटी कौन होगा.
चुनाव आयोग के मुताबिक, कोई भी उम्मीदवार जो नामांकन की जांच के समय वैध एसटी प्रमाण पत्र प्रस्तुत करता है वह एसटी आरक्षित सीटों से खड़ा हो सकता है. ऑल जेएंडके गुज्जर-बक्करवाल कोऑर्डिनेशन कमेटी इस मुद्दे पर चुनाव आयोग से संपर्क भी कर चुकी है. उन्होंने केंद्र से भी ये साफ करने के लिए कहा कि आरक्षित सीटें केवल गुज्जर और बक्करवाल समुदायों के लिए हैं.
क्या है समिति का तर्क?
समिति का तर्क है कि 2011 की जनगणना के आधार पर 2022 में परिसीमन आयोग द्वारा नौ सीटों की पहचान की गई थी. 2024 में एसटी सूची में जोड़े गए समूहों को ध्यान में नहीं रखा गया. गुज्जर-बक्करवाल समिति के संयोजक अनवर चौधरी ने जम्मू में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, गुज्जरों और बक्करवालों को इन नौ सीटों पर चुनाव लड़ने का अधिकार है, न कि सामान्य वर्ग या 2024 में जोड़े गए किसी अन्य वर्ग से किसी को.
1990 के दशक से जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरियों और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में सीटों पर आरक्षण है. इसका लाभ गुज्जरों और बक्करवालों को मिलता है. यह पहली बार है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में एसटी के लिए सीटें आरक्षित होंगी. अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और 2022 में विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में नौ सीटों की पहचान की गई और उन्हें एसटी के लिए अलग रखा गया. इनमें से छह जम्मू प्रांत में और तीन कश्मीर में आते हैं.
इसके बाद फरवरी में संसद ने जम्मू-कश्मीर एसटी सूची में पहाड़ी, पदारी जनजाति, कोली और गड्डा ब्राह्मणों को शामिल करने के लिए एक संशोधन पारित किया. इन समूहों को नौकरियों और संस्थानों में मौजूदा एसटी समुदायों को दिए गए 10% कोटा के अलावा 10% आरक्षण मिलना है. हालांकि, एसटी के लिए राजनीतिक आरक्षण पर कोई स्पष्टता नहीं थी.
इस कदम से गुज्जर और बक्करवाल समूहों के बीच विरोध शुरू हो गया था. उन्हें डर है कि उनके लिए पहले राजनीतिक आरक्षण से उन्हें जो लाभ मिलने की उम्मीद थी, वह कमजोर हो जाएगा. बफलियाज ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष शफीक मीर ने कहा कि पहाड़ी लोगों के लिए एसटी आरक्षण खोलने का मतलब है कि तकनीकी रूप से पुंछ और राजौरी सीमावर्ती जिलों में आने वाली पांच एसटी सीटों के लिए कोई कोटा नहीं, क्योंकि अब एसटी सूची में सभी को शामिल किया गया है. उन्होंने कहा कि संयोग से जम्मू-कश्मीर के चुनावी इतिहास में गुज्जर-बक्करवालों और पहाड़ियों ने इन दोनों जिलों में कभी भी एक ही पक्ष को वोट नहीं दिया है.
पहाड़ी समुदाय की लंबे समय से रही है मांग
जम्मू-कश्मीर में पहाड़ी समुदाय के लोग काफी दिनों से मांग कर रहे थे कि बारामूला और अनंतनाग जिलों के अलावा पीर पंजाल क्षेत्र के दुर्गम और पिछड़े इलाकों में गुज्जर और बकरवाल की तरह उन्हें भी अनुसूजित जनजाति का दर्जा दिया जाए. उधर, गुज्जर और बकरवाल समुदाय का कहना है कि पहाड़ी समुदाय कोई एक जातीय समूह नहीं हैं, बल्कि विभिन्न धार्मिक और भाषाई समुदायों का समूह हैं. जम्मू-कश्मीर के राजौरी, हंदवाड़ा, पुंछ और बारामूला सहित कई इलाके में पहाड़ी समुदाय की बड़ी आबादी है. पहाड़ी समुदाय के लोग जम्मू कश्मीर की एक दर्जन से ज्याद विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखते हैं.
गुज्जर-बकरवाल मुस्लिम समुदाय से हैं, जबकि पहाड़ी समुदाय में हिंदू-मुस्लिम दोनों ही हैं. सीमावर्ती जिलों में 40 फीसदी आबादी पहाड़ी समुदाय की है. वहीं, अप्रैल 1991 से जम्मू-कश्मीर में गुर्जर और बकरवाल समुदाय को एसटी का दर्जा मिला हुआ है.

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