जज केएम पांडेय, राजीव गांधी या काले बंदर… आखिर राम मंदिर का ताला किसकी बदौलत खुला?

विवादित परिसर में किसी ताले का पहला आधिकारिक जिक्र 10 दिसंबर 1948 को एक सरकारी दस्तावेज में हुआ है. उस वक्त राम जन्मभूमि या बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर वहां तनाव का माहौल था और इस माहौल के वक्त इंस्पेक्टर मोहम्मद इब्राहिम ने मौके का निरीक्षण करने के बाद अपनी रिपोर्ट दी थी. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि वहां पर हमेशा ताला लगा रहता है. किसी समय कोई नमाज नहीं होती, मस्जिद के ताले की चाबी मुसलमान के पास है. पुलिस ताले को खुलने नहीं देती, शुक्रवार को दो या तीन घंटे के लिए साफ-सफाई होती है और सुबह की नमाज भी पढ़ी जाती है, फिर इसे बंद कर दिया जाता है.

1948 में सरकारी दस्तावेजों में ताले का जिक्र हुआ है. वह विवादित परिसर में लगा था. गर्भगृह के मुख्य द्वार पर ताला 22-23 दिसंबर 1949 के बाद लगा था, जब मूर्तियां रखी गईं थीं.देखते-देखते इस मामले ने तूल पकड़ लिया, लेकिन विवादित परिसर में पूजन शुरू हो गया था. दूसरी तरफ मुसलमान इस पूरे वाकये से सख्त नाराज थे. तनाव को देखते हुए तब पुलिस प्रशासन ने विवादित इमारत को अपने कब्जे में ले लिया. स्थानीय प्रशासन ने फैजाबाद नगर पालिका बोर्ड के अध्यक्ष प्रिया दत्त राम को रिसीवर नियुक्त किया और उन्होंने अपनी सुविधा से गर्भगृह के मुख्य द्वार पर लगे सलाखों वाले गेट पर ताला लगा दिया.

1986 में खोला गया ताला

एक फरवरी 1986 को इसी ताले को खोला गया था. साल 1986 में जब राम जन्मभूमि का ताला खोला गया था, उस वक्त देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. वे इस वक्त अपनी पॉलिटिकल कैरियर की सबसे बड़ी और सबसे कड़ी परीक्षा दे रहे थे. राजीव गांधी कांग्रेस के पहले एक्सीडेंटल पीएम थे. उनके छोटे भाई संजय गांधी स्वाभाविक तौर पर इंदिरा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी थे, लेकिन पहले संजय गांधी की हवाई दुर्घटना में मौत और उसके बाद मां इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बन बैठे हैं.

राजनीतिक जीवन में उनकी पहली अग्नि परीक्षा हुई शाहबानो प्रकरण में. इंदौर की रहने वाली शाहबानो पांच बच्चों की मां थी, जिसे उसके पति मोहम्मद अहमद खान ने तलाक देकर घर से निकाल दिया था. शाहबानो और उनके बच्चों के भरण-पोषण का मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाया. शुरू में राजीव गांधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश थे. राजीव सरकार के मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने संसद में इस फैसले के समर्थन में एक लंबा भाषण दिया. आरिफ मोहम्मद खान बताते हैं कि ऐसा उन्होंने प्रधानमंत्री के कहने पर किया था. खान कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के समर्थन में जब उन्होंने लोकसभा में भाषण दिया तो राजीव गांधी ने उन्हें एक चिट्ठी लिखकर बढ़िया भाषण देने की बधाई दी थी, लेकिन बाद में कुछ मौलानाओं के दबाव में राजीव गांधी झुक गए और उन्होंने संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया.

BJP ने इस मुद्दे को लपका

दूसरी तरफ बीजेपी ने राजीव गांधी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए इस मुद्दे को लपक लिया और उसके साथ-साथ आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद ने पूरे देश में राजीव गांधी सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया. हिंदुओं के मन में भी यही सवाल उठ रहा था कि आखिर एक देश में धर्म के आधार पर महिलाओं के लिए दो कानून क्यों? धार्मिक आधार पर बातें समाज और सियासत के इसी नाजुक मोड़ पर थीं. एक रोज राम मंदिर का ताला खोलने की पटकथा लिखी गई, इसके सूत्रधार राजीव गांधी के ममेरे भाई और उस समय के आंतरिक सुरक्षा मंत्री अरुण नेहरू थे.

1 फरवरी 1986 और 5 फरवरी 1986

एक फरवरी को राम मंदिर का ताला खुलता है और उसके चार दिन बाद 5 फरवरी को संसद में मुस्लिम महिला बिल आता है, इसके जरिए प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शाहबानो प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया था. यानी इन पांच दिनों के अंदर भारतीय राजनीति के दो ऐतिहासिक अध्याय लिखे गए. इन दो वाक्यों के बीच ठीक 3 फरवरी को राजीव सरकार के तत्कालीन मंत्री आरिफ मोहम्मद खान, जो इन दिनों केरल के गवर्नर हैं ने अपनी कुछ चिंताओं के साथ प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मुलाकात की थी. आरिफ मोहम्मद खान बताते हैं कि 3 फरवरी को प्रधानमंत्री से मिला. अपनी चिंता जताते हुए कहा कि राम मंदिर का ताला खुलना एक बड़ा संवेदनशील मामला है, इससे बड़ा संकट खड़ा हो सकता है. मुस्लिम महिला बिल किनारे हो जाएगा और मुसलमान सड़कों पर आ जाएंगे. आरिफ मोहम्मद को प्रधानमंत्री ने जो जवाब दिया वह चौंकाने वाला था, प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा कि मैंने ताला खोलने की सूचना मुस्लिम नेताओं को दे दी थी, मेरी खुद अली मियां से बात हुई है और वह विरोध नहीं करेंगे.

अली मियां शाहबानो मामले पर राजीव गांधी का समर्थन चाहते थे और राजीव गांधी जन्म भूमि के सवाल पर अली मियां का समर्थन चाहते थे. राजीव गांधी का यह दावा उसी दिन सही साबित हो गया, जब 3 फरवरी को लखनऊ से छपने वाले कौमी आवाज अखबार में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष अली मियां का एक बयान छपा, जिसमें उन्होंने मुसलमानों से ताला खुलने को बहुत ज्यादा महत्व नहीं देने की बात लिखी थी. जिस कौमी आवाज में अली मियां का बयान छपा था, उस कौमी आवाज अखबार की स्थापना देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी. इसमें अली मियां ने कहा, ”देश में और भी बहुत सी मस्जिद है, जिन पर गैरों का कब्जा है, इसलिए यह कोई मसला नहीं है.” राजीव गांधी और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बीच हुई सौदेबाजी का एक बड़ा सबूत यह भी है कि उनके जीवन काल में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में ताला खोलने के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ कोई आंदोलन नहीं किया.

कोर्ट का आदेश 40 मिनट में हुआ पूरा

राजीव गांधी राम मंदिर का ताला खुलवाने के लिए किस कदर सक्रिय थे, इसका अंदाजा आप कोर्ट के फैसले और उसको लागू करने की टाइमिंग को देखकर भी लगा सकते हैं. एक फरवरी 1986 को जज कृष्ण मोहन पांडे ने जब यह फैसला सुनाया था, उस वक्त घड़ी की सुईं शाम 4:40 पर थी और इसके ठीक 40 मिनट बाद यानी 5:20 पर विवादित परिसर का ताला खुल गया था. क्या आपने कभी सुना है कि आजाद भारत में किसी अदालत के फैसले का पालन महज 40 मिनट के भीतर हो गया हो. अयोध्या में 1 फरवरी 1986 को विवादित इमारत का ताला खोलने का आदेश फैजाबाद के जिला जज देते हैं और राज्य सरकार 40 मिनट के भीतर उसे लागू करा देती है. अदालत में ताला खुलवाने की अर्जी लगाने वाले वकील उमेश चंद्र पांडे भी कहते हैं कि हमें इस बात का अंदाजा नहीं था कि सब कुछ इतनी जल्दी हो जाएगा.

टीवी 9 भारतवर्ष के न्यूज डायरेक्टर और वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा ने उस घटना को याद करते हुए कहा, ”ताला खुलने की जो पूरी योजना थी. उसमें राजीव गांधी, अरुण नेहरू के अलावा तीसरी कड़ी वीर बहादुर सिंह थे. वीर बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और इसलिए इन दोनों ने अपनी योजना में उन्हें हिस्सा बनाया. क्योंकि जब जिला जज ने राज्य सरकार को नोटिस दिया तो राज्य सरकार की तरफ से कलक्टर और एसपी को यह बताना था कि अगर ताला खुला तो क्या इससे लॉ एंड ऑर्डर की कोई प्रॉब्लम तो नहीं होगी? इससे कोई हिंसा नहीं होगी और कोई उत्पात नहीं मचेगा और वही हुआ. फैजाबाद की अदालत में जिस रोज यह दरख्वास्त लगी कि वहां ताला खोला जाए, जिला जज ने डीएम और एसपी को कोर्ट में तलब किया, डीएम और एसएसपी ने उनकी अदालत में आकर जो अपना बयान रिकॉर्ड कराया, उसमें उन दोनों ने कहा कि अगर आप ताला खोलने की इजाजत देते हैं तो इसे कानून और व्यवस्था की कोई समस्या खड़ी नहीं होगी. दोनों पक्षों में कोई झगड़ा नहीं होगा हम और प्रशासन इस समस्या से निपटने में सक्षम है. अब आप समझ सकते हैं कि राज्य सरकार की सहमति से यह ताला खुला था. यह घटना मुझे वीर बहादुर सिंह ने मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद जब वह संचार मंत्री हुए तो उन्होंने स्वयं बताई.”

आखिर ताला किसने खुलवाया?

जिला जज कृष्ण मोहन पांडे जी का दावा है कि उन्हें काले बंदर में स्वयं बजरंगबली हनुमान जी की झलक दिखाई दी और उन्होंने ही ताला खोलने का आदेश दिया. दिलचस्प बात यह भी है कि जज कृष्ण मोहन पांडे ने अपनी इस भक्ति भावना को कभी छिपाया नहीं. अपनी आत्मकथा तक में प्रामाणिक रूप से उन्होंने इस बात का उल्लेख किया है. कृष्ण मोहन पांडे ने एक काले बंदर में जिस भक्ति भावना के साथ बजरंगबली के दर्शन किए और राम जन्मभूमि का ताला खोलने का फरमान जारी किया, उसकी खबर लोगों को बाद में लगी. अपने फैसले में तो उन्होंने बाकायदा तथ्यों और तात्कालिक हालात का हवाला देते हुए ताला खोलने का आदेश दिया था. उन्होंने अपने फैसले में लिखा, ”जो मुख्य विचारणीय आधार था, वह यह था कि प्रतिवादियों को ताला खुलवाने के लिए निर्देशित किया जाए कि नहीं, उन्हें नहीं मालूम कि कब और किसके आदेश से यह ताला डलवाया गया. डीएम एसएसपी ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि मंदिर के द्वार से ताला खुलवाने पर भी मूर्तियों की सुरक्षा और शांति कायम रखी जा सकती है.”

जज केएम पांडे का यह फैसला मुलायम और वीपी सिंह सरकार को जरा भी रास नहीं आया. इस फैसले के बाद उन्हें कम महत्व के स्टेट ट्रांसपोर्ट प्राधिकरण का अध्यक्ष बना दिया गया. उनकी जब हाईकोर्ट में जज बनने की बात चली तो वीपी सिंह सरकार ने फच्चर फंसा दिया, उनकी फाइल में प्रतिकूल टिप्पणी कर दी. मुलायम सिंह यादव अपने मुस्लिम जन आधार को देखते हुए पांडे को जज नहीं बनने देना चाहते थे. इस मौके पर चंद्रशेखर सरकार में कानून मंत्री बने सुब्रमण्यम स्वामी ने पांडे की बड़ी मदद की थी. सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं कि मुलायम सिंह के दो-तीन काम मेरे मंत्रालय में फंसे हुए थे, जिन्हें वह केंद्र सरकार से करवाना चाहते थे. स्वामी की सक्रियता देखकर मुलायम सिंह को लगने लगा कि स्वामी हर हाल में केएम पांडे को हाई कोर्ट का जज बनवाकर ही रहेंगे. आखिर का 24 जनवरी 1991 को केएम पांडे को इलाहाबाद हाईकोर्ट का जज बनाया गया, लेकिन एक महीने बाद उनका ट्रांसफर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के लिए कर दिया गया. सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं कि उन्होंने केएम पांडे से कहा कि इलाहाबाद में उनके होने से आजम खान और मुलायम सिंह के दूसरे साथी बेवजह हंगामा खड़ा करते रहेंगे, ऐसे में उनका जबलपुर कोर्ट जाना ठीक रहेगा.

दिलचस्प इतिहास

अयोध्या के इतिहास का यह दिलचस्प अध्याय अब अतीत बन चुका है, लेकिन यह सवाल अभी भी बना हुआ है कि आखिर राम मंदिर का ताला खुलवाया किसने. उस काले बंदर ने जिसमें हनुमान जी की छवि देखकर जज केएम पांडे ने ताला खोलने का आदेश दिया या फिर राजीव गांधी के बदौलत जो ताले प्रकरण में पर्दे के पीछे सक्रिय थे. राम मंदिर के ताले को लेकर राजीव गांधी ने मुस्लिम संगठनों से डील की थी, उस डील के तहत मुस्लिम संगठनों को ताला के मुद्दे पर कोई विरोध प्रदर्शन नहीं करना था, बदले में राजीव गांधी को शाहबानो प्रकरण में उन्हें बड़ी छूट देनी थी. इसलिए राजीव सरकार ने पर्दे के पीछे रहकर राम मंदिर का ताला खुलवाया था.

उस वक्त जज रहे कृष्ण मोहन पांडे पर किसी तरह के सरकारी दबाव या किसी तरह की सौदेबाजी की कोई बात कभी सामने नहीं आई. हां, यह जरूर है कि वह राम भक्त थे और धार्मिक इंसान थे. मनुष्य अपने सद्भावनाओं, अपनी संभावनाओं से अतिरिक्त एक अलग व्यक्ति भी होता है, इसीलिए संभावना इसी बात की है कि ताला खोलने के मुद्दे पर दोनों थ्योरी अलग-अलग भूमिका निभा रही.

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