जानिए अशोक के लाभकारी गुण और उसके औषधिय उपयोग
स्त्री के प्रजनन तंत्र से संबंधित रोगों के लिए अशोक एक महत्वपूर्ण औषध है। इसे संस्कृत में हेमपुष्प, ताम्रपुष्प आदि कहते हैं। वनस्पति शास्त्र की दृष्टि से इसका नाम सराका इण्डिका है। इसका कुलशिम्बीकुल [लेग्युमिनोसी] और उपकुल कंटकीकरंज [सीजलपिनोयडी] है।
औषधीय प्रयोग में इसकी छाल विशेष रूप से प्रयुक्त होती है जो झुर्रिदार, गहरी भूरी व धूसर होती है।
छाल में 6 टैनिन, कैटीकॉल, वाष्पशील तेल, हीमेटॉक्सिलीन, एक कीटोस्टेरोल, एक ग्लॉयकोसाइड, सेपोनीन, एक कैल्शियम यौगिक, तथा लौह योगिक होते हैं। औषध की सक्रियता इसमें उपस्थित स्टेरॉयड और कैल्शियम यौगिक पर अधिक निर्भर करती है। मुख्य रूप से यह गर्भाशय की अन्त:कला और डिम्बग्रंथि पर उद्दीपक प्रभाव डालते हैं, जिससे मासिक धर्म नियमित व विकार-रहित होती है। यह सभी प्रकार के दुष्क्रियाजन्य गर्भाशयिक रक्तस्राव [डी.यू.बी.], गर्भाशय तन्तुपेशी अर्बुद के कारण होने वाले अत्यार्तव, श्वेतप्रदर, बवासीय, रक्तस्रावी अतिसार में लाभकारी पाया गया है। इसमें उपस्थित फोनोलिक ग्लॉयकोसाइड पी-2 एक शक्तिशाली गर्भाशय संकोचक होता है तथा यह ऑक्सीटोसिन और अर्गट के समान गर्भाशय के संकुचनों को अधिक त्वरित और दीर्घकालिक बनाता है।
इसकी छाल में अग्निमांद्य, शूल, अतिसार और मुंहासों में भी अल्प लाभ होता है। पत्तियों का रस जीरे के साथ मिलाकर देने से पेट दर्द का शमन होता है। फूल श्रेष्ठ गर्भाशय बल्य होते हैं। इसके बीजों का चूर्ण पथरी और मूत्रकृच्छ में उपयोगी बताया गया है।
इस प्रकार अशोक की स्त्री रोगों में महत्ता को नकारा नहीं जा सकता है। औषधीय रूप में इसका बीज चूर्ण, अशोकारिष्ट, अशोकधृत, सीरप, टैबलेट और इंजेक्शन प्रयुक्त किए जाते हैं।
एक वयस्क के लिए क्वाथ 50 मिली, बीज चूर्ण 3-6 ग्राम, पुष्प चूर्ण 3-6 ग्राम, सीरप 15-30 मिली तथा गोली और इंजेक्शन चिकित्सक की सलाह के अनुसार दी जा सकतीं है।