Land Registration : इस तरह किया जाता है जमीन का रजिस्ट्रेशन, जानिए क्या होती है रजिस्ट्री?
आपने अक्सर लोगों को जमीन खरीदते या बेचते हुए देखा होगा. या फिर जमीन की खरीददारी या बिक्री से संबंधित बातचीत करते तो सुना ही होगा.
अपने जीवन में व्यक्ति जमीन को काफी महत्व देता है. इतना ही नहीं, इसके लिए लोग अपने जीवन भर की कमाई दाव पर भी लगा देते हैं. तब जाकर जीवन की सबसे महंगी खरीद (जमीन की खरीददारी) की जाती है.
लोग अपनी जमा पूंजी में बैंक-बैंलेस, सोना-चांदी, व्यापारिक लाभ (trading profit) के अलावा संपत्ति को भी शामिल करते हैं. इस संपत्ति में अधिकांश लोग जमीन को तरजीह (preference to land) देते हैं. यह जमीन आखिरकार कैसे खरीदी जाती है? जमीन का रजिस्ट्रेशन कैसे (How to register land?) करवाया जाता है? रजिस्ट्री कैसे होती है?
जमीन के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया, सेल डीड (Sale Deed) कैसे होती है रजिस्टर्ड?
जमीन खरीदने के लिए लोगों को रजिस्ट्री करानी होती है. रडिस्ट्री की पूरी प्रक्रिया बैनामा (Sale Deed) रजिस्टर्ड करने पर पूरी होती है. सबसे पहले जमीन का खरीददार और विक्रेता को आपसी सहमति से बैनामा तैयार करवाना होता है.
इसके बाद इस बैनामा के आधार पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन किया जाता है. जिस जमीन की रजिस्ट्री की जा रही है, उसके दस्तावेज और क्रेता-विक्रेता के फोटो आदि ऑनलाइन सबमिट कर देते हैं.
ऑनलाइन फॉर्म सबमिट होने के बाद एक रजिस्ट्रेशन नंबर मिलता है. इस रजिस्ट्रेशन नंबर के साथ सेल डीड को लेकर रजिस्ट्री ऑफिस पहुंचना होगा.
जहां सब रजिस्ट्रार जांच आदि के बाद बैनामा को रजिस्टर्ड कर देते हैं. वैसे तो मुहर आदि लगाकर औरिजनल (Original) बैनामा उसी दिन वापस कर दिया जाता है. लेकिन यह बैनामा खरीददारी को अगले दिन भी दिया जा सकता है.
क्या होती है रजिस्ट्री (Registry)?
प्रॉपर्टी खरीदने पर उसके मालिकाना हक को विक्रेता से क्रेता के पक्ष में ट्रांसफर करवाना ही रजिस्ट्री कहलाता है. साधारण शब्दों में कहें तो किसी जमीन के मूल दस्तावेजों पर उसके विक्रेता मालिक का नाम हटाकर क्रेता मालिक के नाम दर्ज कराना ही रजिस्ट्री है. भारत में रजिस्ट्री एक कानूनी प्रक्रिया है. जिसके आधार पर ही जमीन की खरीद-फरोख्त चलती है.
किन-किन विलेख (Deed) से जमीन हो सकती है ट्रांसफर
बैनामा (Sale Deed) – क्रेता और विक्रेता मिलकर तहसील में जमीन खरीदने और बेचने के लिए सेल डीड तैयार करवाते हैं. यह एक तरह से दोनों पार्टियों (क्रेता-विक्रेता) द्वारा किये गए समझौते का कानूनी विलेख होता है.
जो संपत्ति के सौदे को दर्शाता है. इसमें क्रेता-विक्रेता की समस्त जानकारी, संबंधित जमीन, नक्शा, गवाह, स्टांप आदि होते हैं. इस डीड में समझौते की उन शर्तों को शामिल किया जाता है. जिन पर बिक्री निर्धारित हुई है. इसके जरिए ही विक्रेता क्रेता को जमीन का अंतिम कब्जा देता है.
दानपत्र (Gift Deed) – दानपत्र में जमीन का मालिक किसी को उस जमीन का मालिकाना हक दान के रूप में देता है. दानपत्र के जरिए भी लोग अपनी जमीन का हस्तांतरण किसी अन्य को कर सकते हैं.
वसीयत (Will)- किसी जमीन की वसीयत करने के लिए लोगों को स्टांफ खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है. लोग 100 रुपये के स्टांप पर वसीयत टाइप कराते हैं. हालांकि कानून में इसकी जरूरत नहीं है.
पॉवर ऑफ अटार्नी (Power Of Attorney)- संपत्ति हस्तांतरण का चौथा डाक्यूमेंट है पॉवर ऑफ अटॉर्नी. यह दस्तावेज 100 रुपये के स्टांप पर तैयार किया जाता है. कोई भी आदमी अपनी पॉवर को किसी दूसरे आदमी को इसी के सहारे ट्रांसफर करता है.
काफी फायदेमंद साबित होता है इकरारनामा
बैनामा कराने से पहले कानून में इकरारनामा का भी प्रावधान है. इसका उपयोग करके लोग तमाम झंझटों से बच जाते हैं. यह लोगों के लिए काफी फायदेमद साबित होता है. इकरारनामा के तहत क्रेता-विक्रेता जमीन बिक्री का एक एग्रीमेंट बनवा लेते हैं.
जिस एग्रीमेंट में क्रेता और विक्रेता की सहमति होती है. इसमें वह जानकारी खोली जाती है. जिसके आधार पर क्रेता जमीन खरीदने और विक्रेता जमीन बेचने पर तैयार हुआ है. इस एग्रीमेंट में जमीन की मार्केट वैल्यू का 2.5 प्रतिशत स्टांफ ड्यूटी देनी होती है.
हालांकि बैनामा के समय एग्रीमेंट में खरीदे गए स्टांप कम किये जाते हैं. इसका मतलब यह है कि जमीन के स्टांप खरीद में एग्रीमेंट के 2.5 प्रतिशत वाले स्टांप भी जुड़ जाते हैं.
यह है रजिस्ट्री की प्रक्रिया (This is the process of registration)
सबसे पहले संपत्ति या जमीन की मार्केट वैल्यू (Market value of property or land) निर्धारित की जाती है. इसके बाद स्टाम्प पेपर खरीदे जाते हैं. रजिस्ट्री से पहले इन स्टांप पेपर पर ही बैनामा टाइप कराया जाता है.
स्टांप ड्यूटी जमीन के मालिक के लिए मालिकाना सबूत के तौर पर होती है. बैनामा के दौरान जमीन की खरीद-बिक्री के लिए वर्तमान मालिक और खरीदने वाले व्यक्ति की सारी जानकारी दर्ज की जाती है.
इसके बाद रजिस्ट्रेशन कराया जाता है. रजिस्ट्रेशन नंबर के जरिए रजिस्ट्रार कार्यालय में रजिस्ट्री करवाई जाती है. रजिस्ट्री में दो गवाह की भी जरूरत पड़ती है. जिनके फोटो, आईडी कार्ड और हस्ताक्षर बैनामा में शामिल किये जाते हैं.
जमीन से जुड़े जरूरी दस्तावेज के साथ दोनों पार्टियों की पहचान संबंधी कागजात भी दिये जाते हैं. रजिस्ट्री के बाद रजिस्ट्रार कार्यालय से एक पर्ची मिलती है. जो काफी मायने रखती है.
हमेशा इस पर्ची को संभालकर रखना चाहिए. पर्ची मिलने का मतलब रजिस्ट्री पूरी हो गई है. अब खरीददारी को संबंधित खरीदी हुई जमीन का मालिकाना हक मिल जाएगा.