भारतीयता के मूल में हैं प्रभु श्रीराम, देश का चरित्र कैसा हो यह समझाने के लिए राम को देखना होगा
राम आए हैं। भारतभूमि में राम सदैव रहे हैं। यह कहना अधिक प्रासंगिक होगा कि राम भारतीयता के मूल में हैं। इस देश का चरित्र कैसा होना चाहिए, यदि इसे समझना हो तो राम के चरित्र को देखना चाहिए।
इसलिए राम केवल आस्था और धर्म के दायरे से नहीं बंधे हैं, बल्कि इनसे पार वह भारतीय सभ्यता के शिखर पुरुष भी हैं। राष्ट्रीय चेतना की दशा-दिशा तय करने वाले। चाहे आदर्श राज्य की बात हो या फिर आदर्श समाज की या फिर संबंधों के आदर्श निर्वहन की, राम हर स्थान पर प्रकाश पुंज की तरह स्थापित हैं। ऐसे में जब राम आ रहे हैं तो यह आशा भी बलवती है कि राम हर क्षेत्र में आएंगे।
शासन-प्रशासन से लेकर व्यक्तिगत जीवन तक में। राम का चरित्र संघर्ष, लोकमंगल और विवेक की त्रिवेणी है। यही त्रवेणी राष्ट्र की भी प्राणवायु है। जिस तरह सामान्य लोगों का जीवन संचालित होता है, वैसे ही भगवान राम का जीवन भी रहा, दुखों से घिरा। दुख के घेरे को संघर्ष और विवेक से तोड़ते हुए कल्याण के भाव को प्राप्त करने की सदिच्छा। राम के व्यक्तित्व को महानता संघर्ष से जूझने की जिजीविषा से प्राप्त होती है। वह दुखों के आगे समर्पण नहीं करते हैं, बल्कि ‘मानुषेन मया जित:’ के भाव से दैव-प्रकोप से टकराते हैं। विजयी होते हैं।