राम मंदिर आन्दोलन के महारथी थे महंत रामचंद्र दास परमहंस
लखनऊ, 09 जनवरी (हि.स.)। महंत रामचंद्र दास परमहंस अयोध्या आंदोलन के इकलौते चरित्र हैं,जो मूर्तियां रखे जाने से लेकर ध्वंस तक की घटनाओं के मुख्य किरदार थे। बिहार के छपरा में जन्मे महंत रामचंद्र दास परमहंस के पिता ने उनका नाम चंद्रेश्वर तिवारी रखा था।
विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के वरिष्ठ पदाधिकारी पुरूषोतम नारायण सिंह बताते हैं कि वह 1930 में जब अयोध्या आए तो दिगंबर अखाड़े की छावनी में परमहंस रामकिंकर दास से मिले। वह एक आयुवेदाचार्य के रुप में प्रसिद्ध थे। बाद में उन्हीं का नाम ‘रामचंद्र दास’ पड़ा। उन्हें ही राम जन्मभूमि मुक्ति का कार्य सौंपा गया। सन् 1934 में ही वह राम मंदिर आंदोलन से जुड़ गए थे। हिन्दू महासभा के वह शहर अध्यक्ष भी थे। 1975 में पंच रामानंदीय दिगंबर अखाड़े के महंत बने और 1989 में राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली।
पुरूषोतम नारायण सिंह ने बताया कि महंत रामचंद्र दास परमहंस संस्कृत के अच्छे जानकार थे। वेदों और भारतीय शास्त्रों में उनकी अच्छी पैठ थी। वह स्पष्ट बात करते थे। उनमें मजबूत संकल्प शक्ति थी। जगह-जगह इस बात का उल्लेख है कि 1949 में मूर्ति रखने वालों की टोली के वह एक सदस्य थे। राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के लिए उन्होंने अदालत का भी दरवाजा खटखटाया। 1 जनवरी, 1950 को विवादित इमारत पर मालिकाने और पूजा-पाठ के अधिकार को लेकर उन्होंने फैजाबाद की अदालत में मुकदमा दायर किया। तब अदालत ने पूजा-पाठ की अनुमति दी थी। उसके बाद मुस्लिम पक्ष ने उच्च न्यायालय में अपील की थी। उच्च न्यायालय ने अपील रद्द कर पूजा-पाठ बेरोक-टोक जारी रखने के लिए निचली अदालत के आदेश की पुष्टि कर दी थी।