माया, मटकाराम, मुन्ना. कैसे रखे जाते हैं टाइगर्स के नाम, दिलचस्प है इसकी कहानी
कलकत्ता हाईकोर्ट ने कुछ दिन पहले मौखिक रूप से पश्चिम बंगाल सरकार से दो शेरों को नए नाम देने के लिए कहा, जो वर्तमान में उत्तरी बंगाल के एक सफारी पार्क में हैं.
हाईकोर्ट ने राज्य के वकील को सलाह दी कि वे “अपने विवेक से पूछें और विवाद से बचें.” विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने अकबर नामक शेर और सीता नामक शेरनी के नामों को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसे ‘ईशनिंदा’ और ‘सभी हिंदुओं की धार्मिक मान्यताओं पर सीधा हमला’ बताया गया था.
एक रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस सौगत भट्टाचार्य ने कहा कि जानवरों को “अविवादास्पद” नाम दिए जाने चाहिए, और “किसी भी जानवर का नाम उन लोगों के नाम पर नहीं रखा जाना चाहिए जिनका नागरिक सम्मान करते हैं.” बेंच ने सुझाव दिया कि पश्चिम बंगाल चिड़ियाघर प्राधिकरण उन्हें नया नाम देकर एक समझदारीपूर्ण फैसला ले. जस्टिस सौगत भट्टाचार्य ने पूछा कि क्या किसी जानवर का नाम देवी-देवताओं, पौराणिक नायकों, स्वतंत्रता सेनानियों या नोबेल पुरस्कार विजेताओं के नाम पर रखा जा सकता है. जस्टिस ने कहा कि विवाद से बचने के लिए जानवरों का ऐसा नामकरण नहीं किया जाना चाहिए था.
आधी सदी से चल रहे हैं प्रोजेक्ट टाइगर
भारत में बाघों (Tiger) को बचाने के प्रयास लगभग आधी सदी से चल रहे हैं. प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tirger) के तहत देश में कई जगह टाइगर रिजर्व की स्थापना हुई. तब से अब तक देश भर में करीब 50 खास क्षेत्र टाइगर रिजर्व की हैसियत से संरक्षित किए गए हैं. यहां हम यात्रा कर इन बाघों को जरूर देख सकते हैं. इनकी खास तौर से ट्रैकिंग होती है और निगरानी करते हुए उनकी देखभाल भी होती है. यहां तक सभी रिजर्व फॉरेस्ट में बाघों के इंसानों की तरह के नाम भी होते हैं. इनके नाम कैसे रखे जाते हैं इसकी कहानी भी दिलचस्प है.
टाइगर के नाम इंसानों जैसे
अगर आप किसी टाइगर रिजर्व या किसी नेशनल पार्क में सफारी के लिए जाएंगे तो वहां आपको यह सुनने को मिलेगा कि माया को जरूर देखिएगा या माताराम का जवाब नहीं. आपको इस तरह की बातचीत सुनने को मिल सकती है. इस बातचीत में जो नाम हैं वे किसी बाघ या बाघिन के होते हैं. मजेदार बात यह है कि इस तरह के नाम सामान्य तौर पर भी इस्तेमाल होते हैं. यहां गाइड, फॉरेस्ट अफसर, आसपास के गांव वाले और यहां तक कि सफारी में आए लोग भी अपनी बातचीत में बाघ और बाघिन को उनके नाम से पुकारते हैं. भारत में बाघों का केवल कोई टी-1,टी2 जैसा कोड ही नहीं होता है. उनके वैसे ही नाम होते हैं जैसे हम अपने पालतू जानवरों के रखते हैं.
अलग-अलग वजह या आधार पर नाम
लेकिन इनके नाम कैसे रखे जाते हैं? यह जानना भी जरूरी है कि कई बार तो इनके शरीर के निशान के आधार पर ही नाम होते हैं जिसके जरिए वन विभाग के कर्मचारी इन्हें पहचानते हैं. तो कई बाघों ने अपने किसी विशेष गुण या उपलब्धि की वजह से खास नाम अर्जित किया होता है. कुछ नाम जहां सामान्य इंसानी नाम की तरह होते हैं तो नाम कुछ अजीब से भी लगते हैं.
मां-बेटी का एक ही नाम
भारत में बाघों के नाम रखने की परंपरा की शुरुआत का श्रेय राजस्थान के रणथंभौर नेशनल पार्क की बाघिन मछली को जाता है. मजेदार बात यह है कि इसका नाम मछली की वजह से नहीं बल्कि मगरमच्छ को मारने की वजह से पड़ा था. और तो और इसकी मां के गाल पर मछली के निशान थे और उसका नाम भी मछली था. जब एक टीम मां मछली की डॉक्यूमेंट्री बनाने रणथंभौर पहुंची तब तक मां मर चुकी थी और बेटी को मछली नाम मिल गया था.
माथे के निशान पर नाम
मछली की साल 2018 में मौत हो गई थी. लेकिन उसकी जगह अब उसकी पोती ऐरोहेड उर्फ जूनियर मछली ने ले ली है. इस बाघिन के माथे पर तीर जैसा निशान दिखाई देता है जिसकी वजह से इसे यह नाम मिला है. इसकी मां का नाम कृष्णा था और कई जगह इसे मछली जूनियर के नाम से भी संबोधित किया गया है. अब उसके इलाके पर उसकी बेटी ऋद्धि का कब्जा है.
नाम बदले भी जाते हैं
मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व में टी15 बाघिन का नाम कॉलरवाली पड़ गया था, क्योंकि उसके गले में रेडियो कॉलर लगा हुआ था जिससे उसे ट्रैककर उस पर निगरानी रखी जा सके. उसने अपने आधे जीवन काल में 8 बार कुल 29 बच्चों को जन्म दिया है जो कि एक विश्व रिकॉर्ड है. उम्र बढ़ने के साथ ही पेंच में उसे माताराम कहा जाने लगा था.
माया और मटकाराम
इसी तरह से महाराष्ट्र का तडोबा रिजर्व टाइगर माया की वजह से मशहूर है. टी12 बाघिन का नाम माया इसलिए रखा गया कि क्योंकि उसके कंधे पर अंग्रेजी के एम अक्षर से मिलती जुलती आकृति है. माया पर्यटकों में खासी लोकप्रिय है. हर पर्यटक माया को जरूर देखना चाहता है. इसी तरह से मटकासुर बाघ के बारे में इलाके के आदिवासियों ने अफवाह फैलाई थी कि वह मटकों में रखी शराब पीने आता है. इसी वजह से बाघ का नाम ही मटकासुर पड़ गया. इसी तरह कान्हा का मुन्ना दूसरे बाघ से लड़ते हुए अपना पैर घायल कर बैठा और जीवन भर के लिए लंगड़ा कर चलता रहा. जिसके कारण उसका नाम प्यार से मुन्ना रख दिया गया. इस तरह हर बाघ के नाम की कोई ना कोई कहानी है.