मोदी सरकार ने ली लोकतांत्रिक संस्थाओं की सुरक्षा की गारंटी ली, पहले सरकारों ने
देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं की सुरक्षा भी पीएम मोदी की गारंटी में से एक है. यही कारण है कि राजनीतिक विरोधों के बाद भी देश में राज्य सरकारों को पहले की केंद्र सरकारों की तरह बर्खास्त नहीं किया गया.
जबकि लोकतंत्र की हिमायती होने का दावा करने वाली कांग्रेस की सत्ता ने राष्ट्रपति शासन के नाम पर कई बार राज्य सरकारों को सत्ता से बेदखल किया है और कांग्रेस के शासन के दौरान ही देश में आपातकाल भी लगाया गया था. कहा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी ने सत्ता में रहते हुए राज्य सरकारों को हटाने का रिकॉर्ड बनाया.
राष्ट्रपति शासन का रिकॉर्ड
अनुच्छेद 356 का कांग्रेस ने किस तरीके से उपयोग किया है, ये काफी दिलचस्प है. कांग्रेस अपने शासन काल के दौरान सत्ता में रहते हुए 91 गैर-कांग्रेसी सरकारों को हटाने का काम कर चुकी है. 1951 में पहली बार जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री रहते पंजाब में सरकार को बर्खास्त किया गया था और उसके बाद से विभिन्न राज्यों में कुल 111 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया. नेहरू के काल में केरल में ईएमएस नंबूदरीपाद द्वारा बनाई गई पहली वामपंथी सरकार को भी 1959 में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.
इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 45 बार लगा राष्ट्रपति शासन
उपलब्ध आंकड़ों पर ध्यान दें तो जवाहर लाल नेहरू के 16 वर्षों के कार्यकाल में 7 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया. वहीं इंदिरा गांधी के लगभग इतने ही लंबे कार्यकाल में 45 बार राष्ट्रपति शासन लागू किया गया.
लाल बहादुर शास्त्री जब प्रधानमंत्री थे, तब भी दो अवसरों पर राष्ट्रपति शासन लगा था. यह सूची राजीव गांधी के 5 वर्ष के कार्यकाल में बढ़कर 6, पीवी नरसिंह राव के कार्यकाल में 11 और डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 10 हो गई.
समाजवादी जनता पार्टी के चंद्रशेखर और जनता पार्टी सेक्युलर के चौधरी चरण सिंह दोनों के कार्यकाल में अनुच्छेद 356 का 4 बार प्रयोग किया गया था. संयुक्त मोर्चा सरकार में एचडी देवगौड़ा ने इसका 2 अवसरों पर उपयोग किया था. इन सभी सरकारों को कांग्रेस का समर्थन हासिल था.
जमकर किया गया अनुच्छेद 356 का उपयोग
अनुच्छेद 356 पर सरकारिया आयोग की रिपोर्ट कई बातों का खुलासा करती है. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि शुरुआती सालों में अनुच्छेद 356 के प्रयोग में संयम बरता गया था और 1967 तक 12 बार इसे लागू किया गया था. हालांकि 1967 से 1985 के बीच में 62 अवसरों पर इसका सहारा लिया गया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब में 1951 में पहली बार इसका उपयोग सत्ताधारी पार्टी के आंतरिक संकट को दूर करने के लिए किया गया था, तभी से इसके दुरुपयोग की नींव पड़ गई थी. यह 1977 और फिर 1980 में चरम पर पहुंच गया, जब एक ही समय में 9 राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के नेतृत्व में राजग सरकार (NDA) के 6 साल के कार्यकाल में राष्ट्रपति शासन 4 बार लगने की नौबत आई थी. लेकिन मोदी के कार्यकाल में इस केंद्र ने अपनी इस शक्ति का प्रयोग करने में बेहद सतर्कता बरती. अगर बात की जाय नरेंद्र मोदी सरकार की तो साल 2014 के बाद से देश के चार राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा चुका है. आखिरी बार जिस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा था, वह जम्मू-कश्मीर था. जम्मू-कश्मीर में पिछले साल जून में बीजेपी ने पीडीपी के नेतृत्व वाली सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के इस्तीफे के बाद यहां राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. इससे पहले भी साल 2015 में विधानसभा चुनावों में एक खंडित फैसले के बाद सरकार गठन में विफलता के चलते जम्मू-कश्मीर में केंद्रीय शासन राज्य में लागू किया गया था. साल 2016 में अरुणाचल प्रदेश में 26 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. कांग्रेस के 21 विधायकों ने 11 बीजेपी और दो निर्दलीय विधायकों के साथ हाथ मिलाया, जिससे सरकार अल्पमत में आ गई थी. हालांकि मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और कोर्ट ने अपने फैसले में कांग्रेस सरकार को बहाल कर दिया था.
पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में भी साल 2016 में दो बार राष्ट्रपति शासन लग गया था. पहले 25 दिन और बाद में 19 दिन के लिए. पहले कांग्रेस में फूट पड़ने के बाद और दूसरी बार मई में एक बार फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ. अभी से पहले महाराष्ट्र में साल 2014 में 33 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन रहा था. 2014 में चुनाव होने से ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने राज्य में 15 साल के कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के टूटने के बाद इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद राष्ट्रपति शासन लगा. यानी नरेंद्र मोदी सरकार में अब तक 4 राज्यों में विशेष परिस्थिति में राष्ट्रपति शासन लगाया गया है.
(यह लेखक के निजी विचार हैं)