OLYMPICS IN PARIS: 2 से 50 प्रतिशत तक का सफर, महिलाएं रच रहीं इतिहास, भारत के क्या हालात?
तू शाहीन है परवाज है काम तेरा, तेरे सामने आसमां और भी है…. अल्लामा इकबाल
शिक्षा, खेल, सेना, सिनेमा ऐसा कोई क्षेत्र बाकी नहीं बचा है जहां महिलाएं अपना परचम न लहरा रही हो, अपना जौहर न दिखा रही हो, लेकिन यह इतना आसान नहीं था. जो महिलाएं सालों से घरों के अंदर ही सीमित थी आज वो आसमान छू रही है, आज वो देश के लिए गोल्ड, सिल्वर जीत कर ला रही है. दुनिया में पहली बार ओलंपिक साल 1896 में खेला गया था, उस समय एक भी महिला ने ओलंपिक में हिस्सा नहीं लिया था, जिसके बाद साल 1900 में 2.2 प्रतिशत महिलाएं ओलंपिक का हिस्सा बनी थी, लेकिन आज महिलाओं की संख्या ओंलपिक में 50 प्रतिशत तक पहुंच गई है.
पूरे 128 साल बाद वो दिन आ गया है जब ओलंपिक के मैदान में जितनी संख्या में पुरुष एथलिट मैदान में होंगे, अपना जौहर दिखाएंगे, उतनी ही तादाद में महिलाएं भी मैदान में खड़ी होंगी और कई तरह के खेल में मुकाबला करेंगी. अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ने जानकारी दी कि इस बार ओलंपिक में महिला और पुरुषों में वो बराबरी होगी जिसकी उम्मीद सालों से हम सब करते आए हैं. ओलंपिक में इस बार 206 देशों से 10,500 एथलिट हिस्सा लेंगे. जिसमें 5,250 महिलाएं और 5,250 पुरुष एथलिट शामिल होंगे. इस बार 152 महिलाओं के इवेंट होंगे और 152 पुरुषों के होंगे. इसी के साथ 20 ऐसे मुकाबले होंगे जिसमें दोनों एक साथ मुकाबला करेंगे.
भारत से कितनी महिलाएं हो रहीं शामिल
जहां पूरी दुनिया की महिलाओं की तादाद ओलंपिक के मैदान में 50 प्रतिशत पहुंच गई है, वहीं भारत भी पीछे नहीं है. भारत से पेरिस ओलंपिक 2024 में 117 एथलीट हिस्सा लेने पहुंचे हैं, जिसमें 70 पुरुष एथलीट और 47 महिला एथलीट शामिल हैं. जिनमें 2 बार देश के लिए सिल्वर मेडल हासिल करने वाली पीवी सिंधु, सिल्वर मेडल जीतने वाली मीराबाई चानू, विनेश फोगाट, निकहत जरीन समेत 43 और महिलाएं शामिल हैं. हालांकि यहां गर्व की बात यह भी है कि भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) की अध्यक्षता भी एक महिला एथलिट पी.टी उषा कर रही हैं.
26 जुलाई बनेगा ऐतिहासिक दिन
26 जुलाई को पेरिस में ओलंपिक 2024 का आयोजन किया जा रहा है, लेकिन यह एक ऐतिहासिक दिन, ऐतिहासिक साल बन कर सामने आएगा. जहां पहले के सालों में महिलाओं की ओलंपिक में मौजूदगी 2 प्रतिशत तक सीमित थी वो आज 50 प्रतिशत तक पहुंच गई है. इतिहास के पन्ने पलट कर देखें तो महिलाओं ने एक लंबी लड़ाई लड़ी है जिसके बाद वो अपनी यह जगह बनाने में कामयाब हो सकी है. जहां एक लड़ाई महिलाओं ने समाज से दुनिया से लड़ी है वहीं एक लड़ाई खुद से भी लड़ी है. हर महीने महिलाओं को पीरियड (MENSURATION CYCLE) का सामना करना होता है, लेकिन उस दर्द को भी हरा कर वो जीत के पथ पर तेजी से आगे बढ़ती जा रही है.
पेरिस बना गवाह
पेरिस की जमीन वो भूमि है जहां पर पहली बार महिलाओं ने ओलंपिक की दुनिया में कदम रखा था और मुकाबले में उतरी थीं, वहीं पेरिस की यह वहीं जमीन है जहां से ओलंपिक में महिलाओं का सफर 2 प्रतिशत से शुरू हुआ था, महज 22 महिलाएं टेनिस से लेकर कई मुकाबलों में सामने आई थीं. इस जमीन पर पहले भी इतिहास रचा गया था और एक बार फिर आज इतिहास रचा जाएगा, जब उसी जमीन पर जहां से 2 प्रतिशत से महिलाओं का ओलंपिक में आने का सफर शुरू हुआ था, आज वहीं से 50 प्रतिशत महिलाएं मुकाबले में हिस्सा लेंगी.
2 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक का सफर
1900 में पांच बार की विंबलडन चैंपियन ब्रिटिश टेनिस खिलाड़ी चार्लोट कूपर पहली महिला ओलंपिक चैंपियन बनीं थी. 997 एथलीटों में से सिर्फ 22 महिलाएं मैदान में उतरी थीं, जिन्होंने टेनिस से लेकर घुड़सवारी, गोल्फ में मुकाबला किया था. जिसके बाद 1952 में महिलाओं की तादाद में इजाफा हुआ और यह 10.5 प्रतिशत पहुंच गई थी. 1964 में 13. 2 प्रतिशत, 1992 में 28.9 प्रतिशत हुई. जिसके बाद साल 2020 में महिलाओं की तादाद 40.8 प्रतिशत पहुंच गई थी और अब 2024 में 50 प्रतिशत हो गई है.
ओलंपिक में कदम रखने वाली पहली भारतीय महिला
साल 1952 वो साल था जिसमें पहली बार भारतीय महिलाओं ने ओलंपिक में कदम रखा था और तमाम भारतीय महिलाओं के लिए दरवाजे खोल दिए थे. उस साल हेलसिंकी, फिनलैंड में हुए ओलंपिक में भारत से 64 एथलीट मैदान में उतरे थे, जिनमें 4 महिलाएं भी शामिल थी. नीलिमा घोष, मैरी डिसूजा, आरती साहा और डॉली नज़ीर शामिल थीं. इन चारों महिलाओं ने इतिहास रचा था और मिसाल बन गई थीं. महज 17 साल की उम्र में नीलिमा घोष मैदान में उतरी थीं और 100 मीटर और 80 मीटर की रेस में हिस्सा लिया था. हालांकि वो मेडल हासिल नहीं कर पाई थी. मैरी डिसूजा हॉकी में मैदान में उतरी थीं. आरती साहा और डॉली नज़ीर ने स्विमिंग में मुकाबला किया था. इन भारतीय महिलाओं ने ओलंपिक में महिलाओं के लिए रास्ता खोला. जिसके बाद से आज तक भारत की महिलाएं बढ़-चढ़ कर ओलंपिक में हिस्सा ले रही है और पूरे देश का नाम रोशन कर रही है.
मेडल हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला
पहली बार ओलंपिक में एंट्री मारने के बाद धीरे-धीरे भारतीय महिलाओं ने ओलंपिक के मैदान में अपनी जगह बनाई और साल 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी भारत की वो पहली बेटी बनी जिन्होंने भारत को मेडल दिया. कर्णम मल्लेश्वरी ने भारतीय महिलाओं में पहला ब्रॉन्ज मेडल हासिल कर के इतिहास रच दिया. वो मेडल हासिल करने वाली पहली महिला बनी. उन्होंने वेट लिफ्टिंग में यह झंडा गाढ़ा. सिडनी की जमीन पर कर्णम मल्लेश्वरी भारत का झंडा लहराने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.
जिसके बाद एक के बाद एक मेडल हासिल करने का भारतीय महिलाओं का यह सिलसिला बढ़ता चला गया. साइना नेहवाल और मैरी कॉम ने साल 2012 में लंदन की जमीन पर परचम लहराया. साइना नेहवाल ने बैडमिंटन में ब्रॉन्ज हासिल किया और मैरी कोम ने बॉक्सिंग में ब्रॉन्ज अपने नाम किया.
भारत को पहली बार मिला सिल्वर
भारत के नाम कई महिला एथलीट ने ब्रॉन्ज मेडल किए लेकिन भारत का सिल्वर मेडल का इंतजार एथलीट पी.वी.सिंधु ने खत्म किया. साल 2016 में वो पहली भारतीय महिला बनी जिन्होंने भारत को सिल्वर ला कर दिया. पी. वी, सिंधु ने ब्राजील रियो डी जेनेरो में बैडमिंटन में इतिहास रच दिया और देश को सिल्वर ला कर दिया. सिर्फ यहीं नहीं पी. वी. सिंधु ने एक और इतिहास अपने नाम किया. साल 2020 में टोक्यो में पी.वी. सिंधु ने एक बार फिर ब्रॉन्ज हासिल किया. वो पहली एथलीट बनी जिन्होंने एक नहीं बल्कि दो बार मेडल हासिल किए और भारत के मान-सम्मान को बढ़ाया और एक बार फिर भारत की बेटी पर गर्व करने का मौका दिया. पी.वी, सिंधु के बाद साल 2020 में ही टोक्यो में मीराबाई चानु वेटलिफ्टिंग में सिल्वर मेडल हासिल करने वाली दूसरी महिला बनी.
7 एथलीट ने हासिल किए 8 पदक
अब तक भारत की महिलाओं ने भारत को 8 बार उन पर गर्व करने का मौका दिया. भारत की महिलएं मजबूती से मैदान में डटी हुई है और सालों से अपना जौहर, हुनर दिखा रही है. साल 2000 में पदक हासिल करने का जो सिलसिला शुरू हुआ था वो बरकरार है और महिला एथलिट अपना जादू चला रही है. अब तक भारत की 7 महिलाओं ने 8 पदक हासिल किए. जिसमें महज 2 बार सिल्वर और 6 बार ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किए. जिसमें साल 2020 में टोक्यो में महिला एथलीट ने सबसे ज्यादा मेडल हासिल किए, उस साल तीन पदक भारत में महिला एथलिट ने ला कर दिए.
कर्णम मल्लेश्वरी साल 2000 में सिडनी में वेटलिफ्टिंग में ब्रॉन्ज हासिल किया.
साइना नेहवाल ने 2012 में लंदन में बैडमिंटन में ब्रॉन्ज हासिल किया.
मैरी कॉम ने बॉक्सिंग में साल 2012 में लंदन में ब्रॉन्ज हासिल किया.
पी.वी. सिंधु रियो डी जेनेरो में साल 2016 में बैडमिंटन में सिल्वर मेडल हासिल किया.
साक्षी मलिक ने रियो डी जेनेरो में साल 2016 में वेटलिफ्टिंग में ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया.
मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग में साल 2020 टोक्यो में वेटलिफ्टिंग में सिल्वर मेडल हासिल किया.
पी.वी सिंधु ने साल 2020 में टोक्यो में बैडमिंटन में ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया.
लवलीना बोरगोहेन ने साल 2020 में टोक्यो में बॉक्सिंग में ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया.
गोल्ड का इंतजार
भारत ने अब तक 35 मेडल हासिल किए, जिसमें से 10 गोल्ड भारत ने अपने नाम किए और 9 सिल्वर वहीं 16 ब्रॉन्ज जीतने में कामयाब हुए. अभिनव बिंद्रा ने साल 2008 में बीजिंग में सीधा निशाना गोल्ड पर लगाया था और शूटिंग में गोल्ड हासिल कर के इतिहास रच दिया था. साल 2020 में नीरज चौपड़ा ने टोक्यो में भाला फेंकने में इतिहास रचा और भारत के खाते में एक और गोल्ड मेडल आ गया. हालांकि भारत की बेटियां मजबूती से मैदान में खड़ी हुई हैं, लेकिन अभी भी कोई भी भारतीय महिला एथलिट गोल्ड हासिल करने में कामयाब नहीं हो सकी है. उम्मीद वो खूबसूरत चीज होती है जो हौसला बनाए रखती है और यह उम्मीद हर भारतीय के दिल में है कि जो बेटी घर से लेकर ओलंपकि के मैदान तक पहुंची है, वो अपने हौसले, हुनर, हिम्मत के बल पर इस इंतजार को भी जल्द खत्म करेगी.