किन आधारों पर हाई कोर्ट ने साईबाबा को किया बरी? अब महाराष्ट्र सरकार पहुंची सुप्रीम कोर्ट

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत माओवादी समूहों के साथ कथित तौर से जुड़े एक मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा और पांच अन्य आरोपियों को बरी कर दिया है.

साईबाबा जो व्हीलचेयर पर हैं, अपने अन्य साथियों के साथ, माओवादी संगठनों के साथ उनके कथित संबंध और भारत के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में 2014 में गिरफ्तारी हुए थे.

वहीं, बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा पूर्व प्रोफेसर साईबाबा समेत अन्य आरोपियों को बरी करने के कुछ घंटों बाद ही महाराष्ट्र सरकार ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले पर तत्काल रोक लगाने और उचित आदेश जारी करने की मांग सर्वोच्च अदालत से की है. जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस एसए मेनेजेस की पीठ ने एक सत्र अदालत के फैसले को रद्द कर दिया, जिसने 2017 में साईबाबा और अन्य को दोषी ठहराया था.

किस आधार पर कोर्ट ने किया बरी?

मार्च 2017 में, साईबाबा को UAPA अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया था. हालांकि, 2022 में बॉम्बे हाई कोर्ट की एक पीठ ने UAPA के तहत लगाई गई धाराओं को साबित न करने पाने के कारण, सभी आरोपियों के ऊपर लगे आरोपों को रद्द कर दिया था.

कहानी में तब विवादास्पद मोड़ आ गया जब महाराष्ट्र सरकार के तत्काल हस्तक्षेप के तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने बरी करने के फैसले को महाराष्ट्र सरकार की चुनौती पर भी रोक लगा दी और बॉम्बे हाई कोर्ट को मामले का पुनर्मूल्यांकन करने का निर्देश दिया.

क्या कहा कोर्ट ने ?

अपना आदेश सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि इस मामले में UAPA लागू करने में सही प्रक्रिया नहीं लागू की गई. साथ ही कोर्ट ने पाया कि साईबाबा और अन्य आरोपियों के ठिकानों से सबूत इकट्ठा करते समय भी पुलिस टीम ने नियमों का पालन नहीं किया. साथ ही अभियोजन पक्ष द्वारा रखे गए साक्ष्य जी.एन साईबाबा और अन्य आरोपी नक्सलियों के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है. इसी आधार पर साईबाबा, प्रशांत राही, हेम मिश्रा, महेश तिर्की और विजय तिर्की को अदालत ने बरी कर दिया.

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