जलवायु परिवर्तन पर निगरानी रखने में कमी से एक अरब लोग भीषण गर्मी की चपेट में
वर्ष 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है और आर्द्रता भी बढ़ रही है। गर्मी और आर्द्रता एक तरीके का बेहद खतरनाक संयोजन है, जो हमारे जीवन और आजीविका के सभी पहलुओं को खतरे में डालता है।
जलवायु परिवर्तन ने गर्मी और आर्द्रता के इस संयोजन को लोगों के बर्दाश्त करने की खतरनाक सीमा के करीब धकेल दिया है। दुनिया के कुछ हिस्से मानवीय सहनशीलता की सीमा से परे स्थितियों की राह पर हैं।
हमारे नये शोध में यह सामने आया है कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मौसम विज्ञान केंद्रों के सिमटते दायरे के कारण ही शहरों में बढ़ती गर्मी से होने वाले नुकसान का अनुमान कम है। इसका मतलब यह है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर लगाए जाने वाले वैश्विक आकलनों में संभवतः लोगों पर स्थानीय प्रभावों की अनदेखी की जाती है।
उष्णकटिबंधीय क्षेत्र, मुख्यतौर पर एशिया और अफ्रीका में स्थित मलिन बस्तियां जलवायु परिवर्तन के इस खतरे की अग्रिम पंक्ति में हैं।
जलवायु निगरानी के अभाव के कारण ये समुदाय बढ़ती उमस भरी गर्मी से सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। बहुत कम विकल्प मौजूद होने की वजह से इन लाखों लोगों को उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के सबसे गर्म हिस्सों से दूर शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
इन जगहों पर क्यों गर्मी बन रही खतरा?
तेजी से शहरों में बढ़ती आबादी, जिसने योजनाबद्ध और औपचारिक विकास को हिला कर रख दिया है, इन बस्तियों के बढ़ने की सबसे बड़ी वजह है। यहां रहने वाले लोगों के पास आमतौर पर बिजली और पानी की आपूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाओं व सेवाओं का अभाव होता है, जिसे शहरों में रहने वाले लोग अक्सर नजरअंदाज करते हैं।करीब एक अरब से अधिक लोग इन बस्तियों में रहते हैं और संयुक्त राष्ट्र (संरा) का अनुमान है कि अगले 30 वर्षों में यह संख्या बढ़कर तीन अरब हो जाएगी। केन्या या बांग्लादेश जैसे देशों में लगभग आधी शहरी आबादी इस तरह की बस्तियों में रहती है।
इस तरह की अधिकांश बस्तियां उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित हैं। यहां साल भर गर्मी और उमस रहती है लेकिन यहां रहने वाले लोगों के पास इस गर्मी से निपटने के लिए बहुत कम विकल्प मौजूद हैं।इन बस्तियों में रहने वाले अधिकांश परिवार कम आय वाले हैं। कई लोगों को आजीविका के लिए बाहर काम करना पड़ता है, जिसके कारण उन्हें गर्मी और उमस का सामना करना पड़ता है।
चूंकि इन बस्तियों को आधिकारिक प्रणालियों और विनियमों से बाहर रखा जाता है, यही कारण है कि हमारे पास वह डेटा ही नहीं होता, जिसका अक्सर वहां रह रहे लोग सामने करने के लिए मजबूर होते हैं।
जलवायु परिवर्तन से जुड़े आंकड़ों में क्या चीज छूट रही है?
विश्व की अधिकांश आबादी मौसम विभाग केंद्र से करीब 25 किलोमीटर से अधिक की दूरी पर रहती है। इसका मतलब यह है कि मौसम केंद्र उन शहरों में तापमान और आर्द्रता के आंकड़ों का शायद ही कभी अंदाजा लगा पाते हैं, जो आमतौर पर गांव-देहात परिवेश की तुलना में अधिक गर्म होते हैं और इसे ही शहरी ताप द्वीप प्रभाव कहा जाता है।
आंकड़ों की निगरानी में ये अंतर उन उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सबसे अधिक होता है, जहां इस तरह की अधिकांश बस्तियां हैं।
बढ़ती गर्मी की चेतावनी भले मिल जाए लेकिन विकल्प सीमित
ऑस्ट्रेलिया में लू के दौरान आमतौर पर हमें घर के अंदर रहने और ढेर सारा पानी पीने के लिए कहा जाता है। वहीं बस्ती में रहने वाले लोगों के लिए यह सलाह वास्तव में उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव के जोखिम को बढ़ा सकती है।
बस्तियों में हवा के आने-जाने का प्रबंध सही तरीके से न होने की वजह से झुग्गियों या फिर कच्चे मकानों के अंदर गर्मी और भी खतरनाक तरीके से बढ़ सकती है। बहुत कम घरों में एयर कंडीशनर होता है और जिनके पास होता है उनके पास इतनी क्षमता नहीं कि वे इसे चला सकें। इन बस्तियों में रहने वाले लोगों के पास साफ व सुरक्षित पेयजल तक नहीं होता, जिसकी वजह से बढ़ती गर्मी के कारण इन्हें स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
इन बस्तियों में रहने वाले लोगों के पास सरकार या दूसरे संस्थानों द्वारा जारी सलाह और चेतावनियां पहुंचने की भी संभावना नहीं होती।
2023 विश्व मौसम विज्ञान संगठन की एक रिपोर्ट में पाया गया कि दुनिया के केवल आधे देशों में ही पूर्व चेतावनी प्रणालियां हैं।
लोगों को बचाने के लिए क्या किया जा सकता है?
मौजूदा वक्त में जलवायु निगरानी प्रयासों ने कमजोर वर्ग के लाखों लोगों को बढ़ती गर्मी से होने वाली परेशानियों के खतरे में डाल दिया है। इसका उनके स्वास्थ्य और कल्याण पर सीधा प्रभाव पड़ता है, साथ ही समाज और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था भी बड़े पैमाने पर प्रभावित होती है।
विकासशील देशों में मौसम विज्ञान संस्थानों को जलवायु निगरानी को मजबूत करने और पूर्व चेतावनी प्रणालियों में सुधार के लिए तत्काल समर्थन की आवश्यकता है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के नए प्रमुख ने ऐसा ही करने का वादा किया है। हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि सरकारें और एजेंसियां इस अवसर का लाभ उठाएं और नये निगरानी नेटवर्क में बस्तियों को भी शामिल करें।
लोग बिना उचित कारण के अपना घर नहीं छोड़ते और न ही अपना जीवन बर्बाद करते हैं। प्राथमिकता ऐसे समाधान ढूंढने की होनी चाहिए, जो उन्हें जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढलने में मदद करें।