बेघरों के लिए ऐमजॉन से घर ऑर्डर किया, उसने बाकायदा पैक करके भेजा!

हितेश सोनिक और पीयूष मिश्रा का एक गाना है, ‘घर’. बोल हैं – ‘उजला ही उजला शहर होगा, जिसमें हम-तुम बनाएंगे घर.. दोनों रहेंगे कबूतर से, जिसमें होगा न बाज़ों का डर… ज़ू ज़ू ज़ू-ज़ू ज़ू ज़ू’.

कवि की कल्पना सुंदर है. किसी डर के बग़ैर एक घर बनाने का ख़्वाब. घर बनाएंगे – ऐसा ख़्वाब देखना आम है. लोग बाक़ायदा तय करते हैं, सीढ़ियां यहां से निकलेंगी, गार्डन में अमुक फूल-पत्ती लगाएंगे, छत पर शेड होगा. लेकिन अब घर बनाने का टंटा ही ख़त्म. सीधे रेडीमेड घर ऑर्डर करिए, ऐमज़ॉन से.

हम ऐमज़ॉन का प्रचार नहीं कर रहे, ख़बर बता रहे हैं. इस प्लेटफॉर्म पर ज़रूरत का हर सामान मिलता है. घर की ज़रूरत का भी सारा सामान मिल जाता है, इतना तो हम जानते ही हैं. पूरा-पूरा घर भी मिल जाता है, ये कम लोग जानते हैं. अमेरिका में कुछ लोग जानते हैं. सो उन्होंने इस जानकारी का फ़ायदा उठाया. और, देश में घरों की बढ़ती क़ीमत को देखते हुए लोगों को यही सौदा किफ़ायती भी लग रहा है.

जेफ़री ब्रायंट अमेरिका के एक कॉन्टेंट क्रिएटर हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर कर लिखा,

मैंने अभी ऐमज़ॉन से एक घर ख़रीदा है. मैंने इसे यूट्यूब पर देखा था. तभी मैं वेबसाइट पर गया और घर ऑर्डर कर लिया. मैंने इसे बेघर लोगों की मदद करने के लिए ख़रीदा है.

उन्होंने बताया कि वो अब एक ज़मीन की तलाश में हैं, जिसपर इस घर को रख सकें. इस वीडियो को 8.6 मिलियन से अधिक लोगों ने देख लिया है.

जानकारी आई है कि ये 16.5×20 फुट का फ़ोल्ड-आउट फ़्लैट है. इसमें किचन, लिविंग रूम, बेडरूम और बाथरूम है. पहले से ही टॉयलेट और शावर भी लगकर आता है. इसकी क़ीमत 26,000 डॉलर (क़रीब 21 लाख रुपये) है.

हालांकि, वीडियो और जानकारी से आपने अंदाज़ा लगा ही लिया होगा कि ये घर के नाम पर एक कमरा है. ख़्वाबों के घर जैसा मामला नहीं है. काम चलाऊ टाइप की व्यवस्था है.

ऐमज़ॉन इंडिया पर तो हमने – flat, house, fold-out flat जैसे कीवर्ड्स के साथ सर्च किया. लेकिन उसमें वांछित नतीजे नहीं मिले हैं. अमेरिका में भी घर मिलेंगे, तो वांछित नहीं होंगे. पीयूष मिश्रा के स्टैंडर्ड तो कतई नहीं. क्यों? क्योंकि वो कैसा घर चाहते हैं, उन्होंने गाने में लिखा है –

मख़मल की नाज़ुक दीवारें भी होंगी
कोनों में बैठी बहारें भी होंगी
खिड़की की चौखट भी रेशम की होगी
चंदन सी लिपटी हां सेहन भी होगी
संदल की ख़ुश्बू भी टपकेगी छत से
फूलों का दरवाज़ा खोलेंगे झट से
डोलेंगे मय की हवा के झोंके
आंखों को छू लेंगे गर्दन भिगो के
आंगन में बिखरे पड़े होंगे पत्ते
सूखे से नाज़ुक से पीले छिटक के
पांवों को नंगा जो करके चलेंगे
चरपर की आवाज़ से वो बजेंगे
कोयल कहेगी कि मैं हूं सहेली
मैना कहेगी, नहीं तू अकेली
बत्तख भी चोंचों में हंसती सी होगी
बगुले कहेंगे सुनो अब उठो भी
हम फिर भी होंगे पड़े आंख मूंदें
गलियों की लड़ियां दिलों में हां गूंधे
भूलेंगे उस पार के उस जहां को
जाती है कोई डगर जाती है कोई डगर

चांदी के तारों से रातें बुनेंगे
तो चमकीली होगी सहर
उजला ही उजला शहर होगा
जिसमें हम तुम बनाएंगे घर

अब इतने फ़िल्टर तो ऐमज़ॉन में नहीं ही होते. तो वो तो ऐसा घर दे नहीं पाएंगे.

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