जहां भक्तों का धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पांच दिन में सध जाए, उस उज्जैयनी में पंचक्रोशी यात्रा
उज्जैन, 5 मई (हि. स.)। भगवान महाकाल की नगरी उज्जैयनी में पांच दिवसीय पंचक्रोशी यात्रा के चार दिन समाप्त हो चुके हैं। आस्था और श्रद्धा की यह यात्रा सात मई को समाप्त होगी। मासों में वैशाख मास का कुछ अलग ही महत्व है।
पंचक्रोशी यात्रा में श्रद्धालु हजारों की संख्या में सिर पर गठरी रखें ओम् नम: शिवाय और ओम् नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करते हुए अपनी यात्रा की पूर्णता देने के लिए लगातार चल रहे हैं।
दरअसल, कहा भी गया है ‘न माधवसमोमासोन कृतेनयुगंसम्। न चवेद समंशास्त्रन तीर्थम्गंगयासमम्।।’ स्कंदपुराण में आए इस कथन का तात्पर्य है; वैशाख के समान कोई मास नहीं, सतयुग के समान कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं, गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं। भगवान विष्णु को अत्याधिक प्रिय होने के कारण ही वैशाख उनके नाम माधव से जाना जाता है। जिस प्रकार सूर्य के उदित होने पर अंधकार नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार वैशाख में श्रीहरि की उपासना से ज्ञानोदय होने पर पर अज्ञान का नाश होता है और इसी अज्ञानता के नाश के लिए भक्त हर वर्ष वैशाख मास में बड़ी संख्या में पंचक्रोशी यात्रा पर निकल पड़ते हैं ।
इस संबंध में आचार्य भरत दुबे ने बताया कि सनातन हिन्दू धर्म की परंपरा में वैशाख मास का महत्व कार्तिक और माघ माह के समान ही बतलाया गया है। 12 मासों की वर्ष भर की श्रंखला में यह तीन महिने दान, पुण्य, देव स्थान, धार्मिक यात्रा के लिए अत्यधिक शुभ बताए गए हैं। जिसमें कि वैशाख मास में जल दान, कुंभ दान का विशेष महत्व है। वैशाख मास स्नान का महत्व स्कंदपुराण के अवंती खंड में मिलता है, जो लोग पूरे वैशाख स्नान का लाभ नहीं ले पाते हैं, वे अंतिम पांच दिन में पूरे मास का पुण्य अर्जित कर सकते हैं।
उन्होंने बताया कि वैशाख मास एक पर्व के समान है, इसके महत्व के चलते कुंभ भी इसी मास से आरंभ होता है। इसलिए वैशाख मास और इसमें होनेवाली पंचक्रोशी यात्रा का महत्व विशेष है। भारत में दो स्थान हैं जहां यह पंचक्रोशी यात्रा सम्पन्न होती है, दोनों की अपनी कथाएं एवं उसका महत्व है। उज्जैन के अलावा काशी में भी पंचक्रोशी यात्रा की परंपरा है। सभी ज्ञात-अज्ञात देवताओं की प्रदक्षिणा का पुण्य इस पवित्र मास में मिलता है। काशी में महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर भगवान शिवजी के भक्त पंचक्रोशी यात्रा करते हैं। पंचक्रोशी यात्रा 76 किलोमीटर में फैली है। यहां श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ज्ञानवापी कूप से श्रद्धालु जल अपनी संजोली में लेकर इस यात्रा को शुरू करने का संकल्प लेते हैं। यह यात्रा मणिकर्णिका घाट से शुरू होती है और इसका समापन भी यहीं होता है।
आचार्य भरत चंद दुबे ने बताया कि इसी तरह से स्कंदपुराण के अनुसार अनन्तकाल तक काशीवास की अपेक्षा वैशाख मास में मात्र पांच दिवस अवन्तिवास का पुण्यफल अधिक है। वैशाख कृष्ण दशमी पर उज्जैन में शिप्रा स्नान कर पटनी बाजार स्थित नागचंद्रेश्वर मन्दिर में पूजन के पश्चात पंचक्रोशी यात्रा आरम्भ होती है। यात्री 118 किलोमीटर की पंचक्रोशी यात्रा करते हैं। यह उज्जैन की प्रसिद्ध यात्रा है। इस यात्रा में आने वाले देव- 1. पिंगलेश्वर, 2 कायावरोहणेश्वर, 3. विल्वेश्वर, 4. दुर्धरेश्वर, 5. नीलकंठेश्वर हैं। इन दिनों लोग जगह-जगह प्याऊ लगाकर पुण्य अर्जित करते हैं। वैशाख मास तथा ग्रीष्म ऋतु के आरंभ होते ही शिवालयों में गलंतिका बंधन होता है। इस समय पंचेशानी यात्रा (पंचक्रोशी यात्रा) शुरू होती है।
इस बारे में उज्जैन निवासी ललित ज्वैल बताते हैं कि इस यात्रा की विशेष बात यह है कि यात्रा में पांच वर्ष आयु के बच्चों से लेकर 70 साल तक के बुजुर्ग तक श्रद्धा के साथ शामिल होते हैं और खुशी-खुशी अत्यधिक उत्साह के साथ कई किलोमीटर तक की यात्रा सम्पन्न करते हैं। उन्होंने बताया कि उज्जैन चौकोर आकार में बसा है। सनातन धर्म में परंपरागत मान्यता है कि महाकाल वन के मध्य में महाकालेश्वर मन्दिर स्थित है। तीर्थ के चारों दिशाओं में क्षेत्र की रक्षा के लिये महादेव ने चार द्वारपाल शिवरूप में विराजमान हैं, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदाता हैं। जिनका उल्लेख स्कंदपुराण अन्तर्गत अवन्तिखण्ड में प्रमुखता से आया है। उज्जैन और वाराणसी इन दो स्थानों पर होने वाली पंचक्रोशी यात्रा में सबसे अधिक लम्बी यात्रा उज्जैयनी की है। इस यात्रा को लेकर मान्यता है कि इसका पुण्य फल काशी पंचक्रोशी यात्रा से भी अधिक है, इसलिए तपती दोपहरी में 118 किलोमीटर की पंचक्रोशी यात्रा करने और 33 कोटि देवी-देवताओं का आशीर्वाद लेने के लिए श्रद्धालु देशभर से यहां आते हैं। इस बार भी 30 हजार से अधिक श्रद्धालुओं के इसमे शामिल होने की जानकारी सामने आई है।