Paris 2024: सर्द सियाचिन से तपते राजस्थान तक की देश की रक्षा, अब ओलंपिक में तिरंगा लहराएगा आज का ‘पान सिंह तोमर’
पान सिंह तोमर फिल्म तो देखी होगी ना! इस फिल्म में इरफान खान ने मुख्य किरदार निभाया था, जो मध्य प्रदेश के एक गांव में ‘बागी’ बनकर अपना बदला ले रहा था. बागी बनकर बंदूक उठाने से पहले पान सिंह तोमर भारतीय सेना में रहकर बंदूक उठाते थे, जहां वो देश सेवा के लिए गए थे. लेकिन सेना में रहकर भी कभी उन्हें बंदूक उठाकर किसी मोर्चे पर जाने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि वो रेसिंग ट्रैक पर अपनी रफ्तार और जुझारुपन से पहचान बना रहे थे. सेना के सूबेदार पान सिंह तोमर की तरह ही आज के वक्त में भी एक फौजी रेसिंग ट्रैक में भारत का झंडा बुलंद कर रहा है. पान सिंह तोमर से उनकी समानता की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वो भी 3000 मीटर स्टीपल चेज रेस में ही देश का प्रतिनिधित्व करते हैं. आज के भारत ये पान सिंह तोमर हैं महाराष्ट्र से आने वाले अविनाश साबले, जो पेरिस ओलंपिक में देश की ओर से दावेदारी पेश करेंगे.
किसी खिलाड़ी या टीम की सफलता के कई पैमाने होते हैं. कितने खिताब या मेडल जीते हैं, कितने मैच जीते हैं, कितने रिकॉर्ड बनाए हैं? इनके अलावा भी एक और पैमाना है- निरंतरता. कोई खिलाड़ी या टीम अपने प्रदर्शन को कितने लंबे समय तक बाकियों से अच्छा बनाए रख सकते हैं और उसमें कितना सुधार कर सकते हैं. इस मोर्चे पर जहां क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली जैसे दिग्गजों की बात होती है तो पिछले कुछ सालों में जैवलिन थ्रो में नीरज चोपड़ा ने इसे साबित किया है. कुछ ऐसा ही कमाल साबले भी करते हैं, जिन्होंने मीडियम डिस्टेंस रेस में बेहतरीन प्रदर्शन किया है.
सियाचिन की सर्दी से राजस्थान की गर्मी तक
महाराष्ट्र के बीड जिले के एक गरीब किसान परिवार में जन्मे साबले के लंबी दूरी के रनर बनने की बुनिया छोटी उम्र में ही पड़ गई थी. वजह थी स्कूल, जो उनके घर से करीब 6 किलोमीटर दूर था और वो अक्सर दौड़कर या पैदल चल कर स्कूल जाते थे. साबले ने स्कूली पढ़ाई पूरी की और 12वीं के बाद सीधे भारतीय सेना में भर्ती हो गए. इसके बाद भी उनकी एथलेटिक्स में तुरंत एंट्री नहीं हुई, बल्कि उन्हें सबसे कठिन हिस्सों में जाकर मोर्चा संभालना पड़ा. शुरुआत में वो दुनिया के सबसे ऊंचे और सबसे ठंडे मिलिट्री पोस्ट सियाचिन में तैनात थे, जिसके बाद पश्चिमी राजस्थान की तपती हुई गर्मी में उनकी तैनाती हुई. इसके बाद धीरे-धीरे उनकी शुरुआत हुई एथलेटिक्स में और बस यहां से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
10वीं बार तोड़ा नेशनल रिकॉर्ड
साबले के करियर को अभी तक देखा जाए तो उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है लगातार नेशनल रिकॉर्ड तोड़ना. इसकी शुरुआत 2018 में नेशनल ओपन चैंपियनशिप से हुई, जब साबले ने गोपाल सैनी के 37 साल पुराने नेशनल रिकॉर्ड को तोड़ दिया था. साबले ने तब 8:29.80 मिनट में 3000 मीटर स्टीपलचेज रेस पूरी की और नया नेशनल रिकॉर्ड बनाया. इसके बाद से ही साबले ने हर बड़ी रेस में अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ा और स्टीपलचेज में नये कीर्तिमान स्थापित किए. पेरिस ओलंपिक से ठीक पहले साबले ने पेरिस में हुई डाइमंड लीग में 8:09.94 मिनट के समय के साथ नया नेशनल रिकॉर्ड बनाया. कुल मिलाकर 2018 से अब तक 10वीं बार साबले ने अपने ही रिकॉर्ड को तोड़कर स्टीपलचेज में अपना दबदबा बनाए रखा है. डाइमंड लीग के प्रदर्शन से ये उम्मीद जगी है कि वो ओलंपिक में भी बेहतर प्रदर्शन करेंगे.
28 साल की बादशाहत की खत्म
साबले दूसरी बार ओलंपिक में हिस्सा लेने उतरेंगे. इससे पहले टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने डेब्यू किया था और जैसा की अनुमान था, वो फाइनल के लिए भी क्वालिफाई नहीं कर पाए थे. फिर भी उन्होंने दिग्गजों से भरी अपनी हीट में सातवां स्थान हासिल किया और नया नेशनल रिकॉर्ड बनाया था. उस वक्त फाइनल के लिए क्वालिफाई न करने वाले रेसरों में साबले ही सबसे तेज थे. साबले के करियर का पहला बड़ा मेडल आया बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में, जब उन्होंने पूरी दुनिया को चौंकाते हुए सिल्वर मेडल जीता था. कॉमवेल्थ गेम्स में 1994 के बाद पहली बार केन्या के अलावा किसी और देश के खिलाड़ी ने मेडल जीता था. साबले ने फिर एशियन गेम्स में भी गोल्ड मेडल जीता, जबकि इन्हीं गेम्स में 5000 मीटर का सिल्वर भी अपने नाम किया. साबले को 2022 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.