पेरिस ओलंपिक 2024: फ़्रांस में विवादित हिजाब प्रतिबंध बना सबसे बड़ा मुद्दा

फ़्रांस की सीन नदी के किनारे , सिटी डु सिनेमा को फ़िल्म मेकिंग के लिए जाना जाता है.

हालांकि, जुलाई का महीना आते-आते इसके गुफ़ा जैसे दिखने वाले स्टूडियो को पेरिस ओलंपिक में हिस्सा ले रहे एथलीटों के लिए खेल गाँव में बदल दिया जाएगा.

 

अलग-अलग देशों और संस्कृतियों से संबंध रखने वाले एथलीट यहां के डाइनिंग हॉल में एक साथ बैठकर खाने के साथ ही अपनी कहानियां भी साझा करते दिखेंगे. ये एक बहु-सांस्कृतिक सम्मेलन जैसा है जहां अलग रंग और मज़हब के लोग हर चार साल पर जुड़ते हैं.

लेकिन इस जुटान में मेज़बान के लिए ड्रेस कोड उनके मेहमानों से अलग होगा.

बीते सितंबर महीने में इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी (आईओसी) ने ये स्पष्ट कर दिया था कि पेरिस में एथलीट अपनी धार्मिक आस्था के साथ अपने देश का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं.

आईओसी के प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, “खेल गाँव में, आईओसी के नियम लागू होंगे.”

“हिजाब या किसी भी धर्म-संस्कृति से जुड़ी पोशाक पहनने पर कोई पाबंदी नहीं होगी.”

हालांकि, फ़्रांसिसी टीम को कुछ अलग बताया गया है.

भेदभाव से लड़ने के लिए बनाए गए पर्शियन फ़ुटबॉल क्लब लेस डेगोमम्यूसेज़ की ओर से खेलने वाली वेरोनिका नोसेदा कहती हैं, “हिजाब (एक प्रकार का हेडस्कार्फ़, जो सिर और गर्दन को ढकता है, लेकिन इसमें चेहरा दिखता है) पर प्रतिबंध दो तरह के भेदभावों का नतीजा है. पहला तो ये इस्लामोफ़ोबिया है और साथ में लैंगिक भेदभाव भी है.”

लेबनान के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फ़ुटबॉल खेल चुकीं असाइल टॉफ़ेली इस बात से सहमत हैं. वह साल 2021 में फ़्रांस के ल्यॉन शहर आकर बस गई थीं.

वह कहती हैं, “असल में ये फ़्रांसिसी समाज के बारे में नहीं बल्कि सरकार के बारे में है.”

“गुज़रे कुछ सालों में फ़्रांस के अंदर मुसलमानों के प्रति नफ़रती माहौल बना है और ये खेल में दिखता है.”

पेरिस में ओलंपिक के दौरान खेलों में फ़्रांस की एक अलग और विभाजनकारी अवधारणा का सबसे स्पष्ट प्रदर्शन होगा.

लिबर्ते (लिबर्टी), इगलते (इक्वॉलिटी), फ़्रैतरनिती (फ़्रैटरनिटी) यानी स्वंतत्रता, समानता और बंधुत्व फ़्रेंच रिवॉल्यूशन का नारा था. शायद ये फ़्रांस की आकांक्षाओं की सबसे प्रसिद्ध अभिव्यक्ति हो. ये नारा फ़्रांस के संविधान पर, सिक्कों पर, टिकटों और सार्वजनिक भवनों पर अंकित दिखता है.

फ़्रांस के सिद्धांत और हिजाब

 फ़्रांस का एक और प्रमुख सिद्धांत है जो कम प्रचलित है- लाईसिटी.

अक़्सर अंग्रेज़ी में इस शब्द को सेक्युलिरिज़्म यानी धर्मनिरपेक्षता के रूप में अनुवाद किया जाता है. लाईसिटी यह तय नहीं करता है कि फ़्रांस के लोगों को किसी भी धार्मिक रीति-रिवाज़ या प्रतीकों को छोड़ देना चाहिए, बल्कि ये कहता है कि देश और सार्वजनिक संस्थानों को स्पष्ट रूप से इनसे मुक्त होना चाहिए.

ये एक ऐसा विचार है जिसका फ़्रांस में पुरज़ोर विरोध हो रहा है. ख़ासतौर पर पिछले एक दशक में हुए आतंकवादी हमलों और इसके समानांतर देश में एक बार फिर से धुर-दक्षिणपंथी राजनीति के ज़ोर पकड़ने के बाद.

फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को कई बार इस शब्द को परिभाषित करते पाया गया है.

उन्होंने अक्तूबर 2020 में एक भाषण के दौरान कहा, “समस्या लाईसिटी नहीं है.”

“फ़्रांसिसी गणराज्य में लैसिटी का अर्थ है किसी भी चीज़ में आस्था रखने या न रखने की आज़ादी. जब तक क़ानून व्यवस्था को कोई ख़तरा न हो, तब तक किसी भी धर्म का पालन करने की संभावना.”

“लाईसिटी का मतलब है देश की तटस्थता. इसका ये अर्थ कतई नहीं है कि समाज या सार्वजनिक जीवन से धर्म को हटा दिया था. एकजुट फ़्रांस लाईसिटी से और मज़बूत हुआ है.”

साल 2004 में लाए गए क़ानून के ज़रिए इस अवधारणा को और स्पष्टता देने की कोशिश की गई. इस क़ानून के तहत बिना किसी ख़ास उदाहरण दिए सरकारी स्कूलों में धार्मिक प्रतीकों को पहनने पर पाबंदी लगाई गई.

सिखों की पगड़ी, यहूदियों के किप्पाह, ईसाइयों के क्रूस को छोड़ दें तो ज़्यादातर बहस पश्चिमी यूरोप के किसी भी देश की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी के बीच सिर ढंकने पर केंद्रित है.

बीते सितंबर में फ़्रांस की खेल मंत्री एमिली औडिया कास्तरा ने पुष्टि की थी कि फ़्रांस की जनता का प्रतिनिधित्व कर रही और उन्हीं के धन पर आधारित फ़्रांस की टीम एक संस्था के तौर पर लाईसिटी से बंधी है.

उन्होंने कहा, “इसका अर्थ है सार्वजनिक सेवाओं में पूरी तटस्थता. फ़्रांस की टीम हेडस्कार्फ़ नहीं पहनेगी.”

अन्य देशों के एथलीटों को पेरिस 2024 में अपनी इच्छानुसार धार्मिक प्रतीक पहनने की छूट होगी. हालांकि, अगर फ़्रांस की टीम के सदस्यों को अपने देश के नियमों का पालन करना है, तो वे ऐसा नहीं कर सकते.

फ़्रांस के इस रुख की कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं आलोचना कर रही है.

समर्थन और विरोध

 संयुक्त राष्ट्र के ह्यूमन राइट्स ऑफ़िस के एक प्रवक्ता ने कहा, “किसी को भी एक महिला पर ये नहीं थोपना चाहिए कि उसे क्या पहनना चाहिए या नहीं पहनना चाहिए.”

ह्यूमन राइट्स चैरिटी एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा, “सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक हेडस्कार्फ़ पहनने पर पाबंदी मुसलमान महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन है.”

हालांकि, फ़्रांस में अच्छी-ख़ासी तादाद में लोग इस प्रतिबंध के समर्थन में हैं.

फ़्रांस की राजनीति और समाज के बारे में लंबे अरसे से रिपोर्टिंग करते आ रहे और चैटहैम थिंक टैंक में एसोसिएट फेलो सेबेस्टियन मेलार्द कहते हैं, “ये एक जटिल और बहुत ही अधिक संवेदनशील मुद्दा है.”

उन्होंने कहा, “जब मैं पेरिस से लंदन चला गया तो ये एक सबसे बड़े अंतर में से एक था. यूनाइटेड किंगडम में धर्म को काफ़ी सहजता से प्रदर्शित किया जा सकता है, जबकि पेरिस में इसे अक़्सर काफ़ी उत्तेजक तौर पर देखा जाता है.”

मेलार्द पेरिस ओलंपिक 2023 में धार्मिक प्रतीकों की मनाही से जुड़े एक और छोटे विवाद की ओर इशारा करते हैं.

मार्च महीने में ओलंपिक के आधिकारिक पोस्टर का अनावरण किया गया. इसमें पेरिस की कई नामी जगहें एक स्टेडियम के रूप में साथ दिख रही थीं.

इस तस्वीर को बनाने वाले आर्टिस्ट ने होटल डेस इनवैलिड्स के ऊपर लगे सुनहरे क्रूस को इस तस्वीर में शामिल नहीं किया. जिससे इस बात पर चर्चा छिड़ गई कि वो खेल जिस पर फ़्रांसिसी करदाताओं के कई अरब यूरो खर्च होंगे, वह लाईसिटी के सिद्धांतों पर कितनी कड़ाई से टिके रहेंगे.

मेलार्द कहते हैं, “आज की बहस अक़्सर मुसलमान समुदाय के इर्द-गिर्द केंद्रित होती है, जो पूरी तरह से फ़्रांसिसी समाज का हिस्सा बनना चाहता है, लेकिन अपने ढंग से धर्म का पालन भी करता है. हमारे बीच ये बहस बार-बार उठती है कि इन सबका तालमेल कैसे हो.”

वह कहते हैं, “फ़्रांसिसी गणराज्य की स्थापना आंशिक तौर पर कैथोलिक धर्म की अस्वीकृति पर की गई थी और जब भी धर्म अतिक्रमण करता है इसे ख़तरा महसूस होता है. ख़ासतौर पर पुरानी पीढ़ियों के बीच ये मज़बूत डर है कि धर्म कहीं समाज और देश पर हावी न हो जाए.”

ये बहस उन इलाकों में तेज़ है जहाँ शिक्षा, खेल में जनसांख्यिकीय अंतर सबसे अधिक हैं.

रमज़ान में फ़्रांस फ़ुटबॉल संघ के नियम

 पिछले साल रमज़ान के दौरान फ़्रेंच फ़ुटबॉल फ़ेडरेशन (एफ़एफ़एफ़) ने रेफ़रियों को ये आदेश भेजा कि वे इफ़्तारी के समय मैच न रोकें. आदेश में कहा गया कि ये ‘रुकावटें’ एफ़एफ़एफ़ के नियमों के अनुरूप नहीं हैं.

इस साल, रमज़ान और इंटरनेशनल ब्रेक साथ में पड़े. इस दौरान एफ़एफ़एफ़ ने पुष्टि कि की वह मुसलमान खिलाड़ियों के हिसाब से खाने और अभ्यास के समय में किसी भी तरह का बदलाव नहीं करेगा. माना गया कि इसका मक़सद था कि फ़्रांस में छोटी उम्र या सीनियर टीमों के कैंपों में खिलाड़ियों को रोज़ा रखने से प्रभावी तरीके से रोका जा सके.

ल्यॉन के मिडफ़िल्डर महमदू दियावारा ने फ़्रांस की अंडर-19 टीम की एक पार्टी से कथित तौर पर पाबंदियों की वजह से बीच में चले गए.

ये स्थिति दूसरे खेलों में भी है. अंडर-23 लेवल में फ़्रांस का प्रतिनिधित्व कर चुकी बास्केटबॉल खिलाड़ी दियाबा कोनेट ये कहते हुए अमेरिका चली गईं कि हिजाब पहनने पर पाबंदी ने उनका ‘दिल तोड़ दिया है.’

यहां तक कि छोटे स्तर पर होने वाले स्थानीय मैचों में भी मुसलमान महिला खिलाड़ियों को आमतौर पर हिजाब पहनने से ये कहते हुए रोक दिया जाता है कि लीग़ का आयोजन और संचालन सरकारी इकाइयां करती हैं.

कुछ खिलाड़ियों ने समाधान के तौर पर सुरक्षा के लिए इस्तेमाल होने वाले स्क्रमकैप्स पहनने शुरू किए लेकिन कुछ रेफ़रियों ने इसे भी नियमों के तहत असंगत करार दे दिया.

खेल में ज़मीनी स्तर तक लाईसिटी को लागू करने का मतलब है कि हिजाब पहनने वाले एथलीटों या तो बड़े मंच तक पहुंचने से पहले ही समझौता कर लिया है या फिर वे खेल से बाहर कर दिए गए हैं.

लेकिन ओलंपिक के दौरान इन खिलाड़ियों की दुविधा और गंभीर हो जाएगी. उन्हें पेरिस 2024 में देश की टीम किट पहनने या अपनी व्यक्तिगत आस्था की अभिव्यक्ति के बीच किसी एक को चुनना होगा.

हिजाब के हक़ में क्या कहती हैं मुस्लिम महिलाएं

 मोरोक्को की डिफ़ेंडर नूहाइला बेनज़ीना ने बीती गर्मियों में हुए महिला फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप के दौरान इतिहास रच दिया था.

साल 2014 में हुए फ़ीफ़ा के नियमों में बदलाव के ज़रिए धार्मिक वजहों से सिर ढंकने को मंज़ूरी मिली थी. नूहाइला ने जब दक्षिण कोरिया के ख़िलाफ़ खेला तो वह वर्ल्ड कप में हिजाब पहनने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनीं.

रियो ओलंपिक 2016 में, फ़ेंसर इब्तिहाज मोहम्मद ने हेडस्कार्फ़ पहनकर ओलंपिक में खेलने वाली पहली अमेरिकी बनकर सुर्खियां बटोरी थीं. बाद में वह उन एथलीटों में से एक रहीं, जिन्होंने एक ग्लोबल अमेरिकन स्पोर्ट्स ब्रांड की ओर से विशेष तौर पर खेल के लिए बनाए गए हिजाब को लॉन्च करने में भूमिका निभाई.

उन खेलों में हिजाब पहनकर पदक जीतने वाली एक और एथलीट थीं ईरान की ताइक्वॉन्डो प्लेयर किमिया अलीज़ादेह. वह उसके बाद जर्मनी चली गईं. अब वह ईरानी सरकार की ओर से हिजाब पहने की अनिवार्यता वाली नीती की आलोचक हैं.

अलीज़ादेह ने तोक्यो गेम्स 2021 में रिफ़्यूजी टीम की ओर से क्वॉलिफ़ाई किया और हिजाब से दूरी बनाए रखी.

इक़रा इस्माइल ब्रिटेन में रहती हैं, जहाँ लाईसिटी एक विदेशी अवधारणा है.

वह हिलटॉप फ़ुटबॉल क्लब की निदेशक, क्यूपीआर कम्युनिटी ट्रस्ट में महिला रिफ़्यूजी फ़ुटबॉल कोऑर्डिनेटर और एक मुसलमान हैं, जो बचपन से खेल प्रेमी रही हैं.

वह कहती हैं, “हिजाब पहनना मेरी पहचान का हिस्सा है. जब बात खेल की हो तो ये कुछ ऐसा नहीं है जिसे मैं मैदान के बाहर छोड़ आऊं.”

“फ़ुटबॉल एक मानवाधिकार की तरह है और सबको इसमें हिस्सा लेने का हक़ होना ही चाहिए.”

यास्मिन अबुकर लंदन में मुस्लिम महिलाओं के क्लब सिस्टरहुड एफ़सी की संस्थापक हैं.

इस क्लब को बनाने के पीछे क्या प्रेरणा रही इस पर बात करते हुए वह कहती हैं, “मैं मुस्लिम लड़कियों से पूछती थी कि ऐसा क्या है जिसकी वजह से उन्होंने फ़ुटबॉल खेलना छोड़ा और उन्होंने जो जवाब दिए, उन्हें सुनना बेहद दुखद था. ”

“उनमें से आधी लड़कियों ने फ़ुटबॉल इसलिए छोड़ा क्योंकि उन्हें लगा कि वह इसके लिए नहीं हैं. बाकी आधों ने इसलिए फ़ुटबॉल से दूरी बनाई क्योंकि उन्हें ये महसूस हुआ कि ये खेल ऐसा नहीं है जहाँ उनकी धार्मिक आस्थाएं भी साथ-साथ चलती रहें.”

वह कहती हैं, “मैं नहीं जानती कि एक युवा मुसलमान इंसान के तौर पर मुझे सरकार की ओर से ये कहने पर कैसा लगेगा कि मुझे अपने धर्म का पालन करने की आज़ादी नहीं है.”

“मैं बहुत ख़ुशनसीब हूं कि मेरे माता-पिता फ़्रांस जाकर नहीं बसे.”

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