अजीब से कीड़े के काटने के बाद ‘पगला गया’ पादरी, काट डाला अपना ही प्राइवेट पार्ट!
कभी-कभी कुछ ऐसे मामले सामने आ जाते हैं, जिनके बारे में जानकर विश्वास ही नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता है. आपने कीड़े तो बहुत से देखे होंगे, पर कुछ कीड़े ऐसे भी होते हैं, जो बेहद ही जहरीले होते हैं, लेकिन क्या आपने कभी किसी ऐसे कीड़े के बारे में सुना है, जो अगर काट ले तो इंसान पागल ही हो जाता है? नहीं ना, पर आजकल इसी से जुड़ा एक मामला काफी चर्चा में है. दरअसल, एक अजीब से दिखने वाले कीड़े ने एक पादरी को काट लिया, जिसके बाद उसकी मानसिक हालत ही खराब हो गई और ऐसी खराब हुई कि एक दिन उसने चाकू से अपना प्राइवेट पार्ट ही काट लिया. ये अजीबोगरीब मामला चेक गणराज्य का है.
दक्षिणी बोहेमिया के सेस्कोबुडेजोविक, जहां यह खतरनाक घटना घटी थी, वहां के मेयर ने स्थानीय मीडिया को बताया, ‘हमें ठीक से नहीं पता कि क्या हुआ, यह शायद एक स्वास्थ्य समस्या थी’. चेक आउटलेट्स की रिपोर्ट के मुताबिक, स्थानीय लोगों को सबसे पहले तब अहसास हुआ कि कुछ गड़बड़ है, जब पादरी एक पहले से निर्धारित की गई बैठक में नहीं पहुंचा. बाद में पैरामेडिक्स की एक टीम पादरी के घर पहुंची और उसके दरवाजे को तोड़ दिया, जिसके बाद उन्होंने पुजारी को खून से लथपथ बेहोशी की हालत में पड़ा देखा. इस दौरान उसका प्राइवेट पार्ट कटा हुआ था. इसके बाद आनन-फानन में उसे अस्पताल पहुंचाया गया.
10 दिन वेंटिलेटर पर रहा पादरी
डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, पादरी की बिगड़ती हालत की वजह से डॉक्टरों ने उसे वेंटिलेटर पर डाल दिया, जिस पर वह करीब 10 दिनों तक रहा. इस दौरान डॉक्टर भी नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर मामला क्या था, उसने अपना प्राइवेट पार्ट क्यों काट दिया था. हालांकि डॉक्टरों को जांच में मरीज के नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र में नुकसान का जरूर पता चला, जो मूल रूप से वायरल लग रहा था.
इस कीड़े ने बना दिया मानसिक रोगी
दावा किया जा रहा है कि पादरी टिक नामक कीड़े के काटने से फैलने वाली बीमारी से पीड़ित था, जिसे टीबीई कहा जाता है. इसमें मरीज के मस्तिष्क में सूजन आ जाती है और इंसान मानसिक रूप से बीमार हो जाता है. ऐसे में माना जा रहा है कि इसी बीमारी की वजह से पादरी ने अपना प्राइवेट पार्ट काट लिया होगा. यूरोपियन सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल के मुताबिक, चेक गणराज्य यूरोप में टीबीई की सबसे अधिक घटनाओं वाले देशों में से एक है, जहां हर साल इस बीमारी के करीब 500 से 1,000 मामले दर्ज होते हैं.