PM मोदी पहुंचे रूस, क्या 60 बिलियन के ट्रेड पार्टनर के साथ मिलकर चीन को सबक सिखाएगा भारत?

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस की यात्रा पहुंच गए हैं. ये कोई आम यात्रा नहीं है. ये दौरा उस मित्र देश का है, जिसने भारत की कई मौकों पर मदद की है. वहीं भारत भी रूस की कई मौकों पर सिफारिश करता रहा है और साथ खड़ा रहा है. ये यात्रा इसलिए भी अहम है ताकि रूस के साथ मिलकर उस चीन को सबक सिखाया जा सके, जो भारत की सीमाओं की ओर बाज की तरह नजर गढ़ाए हुए है. खास बात तो ये है कि रूस और भारत के बीच 60 बिलियन डॉलर का ट्रेड होता है.
वहीं रूस और भारत एक दूसरे के काफी करीब भी माने जाते हैं. उम्मीद की जा रही है कि भारत कई डिफेंस डील पर साइन कर देश के एयर डिफेंस को मजबूत करने की कोशिश कर सकता है. ताकि चीन और पाकिस्तान की नापाक हरकतों का जवाब दिया जा सके. वहीं दूसरी ओर भारत और रूस के बीच जो व्यापार असंतुलन है, उसे भी ठीक करने के लिए बातचीत हो सकती है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ये रूस यात्रा देश के लिए कितनी अहम हो सकती है.
5 साल में पहली रूसी यात्रा
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को पांच साल में पहली बार ऐसे समय में रूस के दौरे पर पहुंच गए हैं, जब मॉस्को नई दिल्ली के प्रतिद्वंद्वी चीन के साथ अपने रिश्तों को लगातार गहरा कर रहा है. यात्रा के दौरान पीएम मोदी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करने वाले हैं. भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने नई दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि हालिया शिखर सम्मेलनों की कमी को देखते हुए, द्विपक्षीय एजेंडे पर कई मुद्दे ढेर हो गए हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है.
सीनियर डिप्लोमेट्स ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यात्रा के दौरान बड़ी घोषणाओं की संभावना नहीं है, लेकिन मोदी की यात्रा का उद्देश्य यह संकेत देना है कि दोनों पक्ष करीब बने हुए हैं. भारत के साथ रूस के संबंध शीत युद्ध के समय से चले आ रहे हैं और यह देश भारत के लिए हथियारों और तेल का सबसे बड़ा सप्लायर है. क्वात्रा ने कहा, दोनों देशों के बीच रिश्ता काफी फ्लेक्सिबल बना हुआ है.
भारत की क्या है चिंता
वहीं दूसरी ओर भारत भी काफी सावधानी बरत रहा है. इसका कारण है रूस और चीन की नजदीकी. जिसने यूक्रेन पर क्रेमलिन के भीषण युद्ध पर प्रतिबंधों के बीच इकोनॉमिक और डिप्लोमेटिक लाइफलाइन के रूप में काम किया है. पिछले हफ्ते कजाकिस्तान में एक सुरक्षा शिखर सम्मेलन के दौरान पुतिन ने चीन के साथ संबंधों को “इतिहास में सबसे अच्छा” बताया था. 2020 में सीमा विवाद के हिंसा में बदल जाने के बाद से भारत और चीन के बीच संबंध काफी खराब हुए हैं. हालांकि दोनों पक्ष असहमति को सुलझाने के लिए बातचीत पर सहमत हुए हैं.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के एसोसिएट सीनियर रिसर्चर पेट्र टोपिचकानोव ने कहा कि रूस, चीन और पश्चिम के बीच में मौजूद भारत, रूस से ज्यादा प्रिडिक्टीबिलिटी चाहता है और यूक्रेन में शांति को बढ़ावा देने में एक बड़ी भूमिका निभाने का इच्छुक भी है. उन्होंने कहा कि फिर भी पुतिन को रूस और चीन के बीच बढ़ते करीबी संबंधों को लेकर मोदी के सवालों का सामना करना पड़ सकता है.
भारत ही नहीं रूस को भी फायदा
पिछले महीने अपना लगातार तीसरा कार्यकाल संभालने के बाद मोदी की यह पहली द्विपक्षीय यात्रा है. भूटान, मालदीव और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों के बजाय रूस की यात्रा करने का उनका फैसला भारतीय नेताओं के लिए परंपरा को तोड़ने जैसा है. वहीं दूसरी ओर पीएम मोदी की यह यात्रा रूस के लिए भी काफी अहम है. इससे फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद जिस तरह से पश्चिमी देशों ने पुतिन को अछूत बताने का प्रयास किया था, उसे पूरी तरह से फेल करती है. साथ ही मोदी इस यात्रा से दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को भी काफी मजबूत करेगी.
व्यापार संतुलन बनाने पर जोर
क्वात्रा ने कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन को कम करने की बातचीत भी हो सकती है. भारत मौजूदा समय में से प्रति वर्ष लगभग 60 बिलियन डॉलर का सामान इंपोर्ट करता है. वहीं रूस भारत से 5 बिलियन डॉलर से भी कम इंपोर्ट कर रहा है. भारत के टॉप डिप्लोमैट के मुताबिक इंडो-पैसिफिक में चीन की हरकतें भी सामने आ सकती हैं. जबकि पिछले वर्षों में भारतीय और रूसी नेता हर साल मिलते थे, पुतिन द्वारा 2022 में यूक्रेन में परमाणु हथियारों का उपयोग करने की धमकी के बाद मोदी ने ऐसे शिखर सम्मेलनों में शामिल होना बंद कर दिया. दोनों की आखिरी मुलाकात उस साल उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के मौके पर हुई थी.
रूस से डिफेंस पर क्या चाहता है भारत?
मॉस्को स्थित डिफेंस थिंक टैंक सेंटर फॉर एनालिसिस ऑफ स्ट्रैटेजीज एंड टेक्नोलॉजीज के डायरेक्टर रुस्लान पुखोव के अनुसार, भविष्य की आर्म्स डील भी एजेंडे में हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि रूस भारत को नई एयर डिफेंस सिस्टम और Su-30MKI लड़ाकू विमानों के साथ-साथ Ka-226T मल्टी पर्पज हेलीकाप्टर्स के लाइसेंस प्राप्त प्रोडक्शन की सप्लाई कर सकता है. भारत लड़ाकू विमानों की भारी कमी का सामना कर रहा है और दुर्घटनाओं में खोए हुए विमानों की भरपाई के लिए रूस से एक दर्जन और विमान खरीदने पर विचार कर रहा है.
अमेरिकी से क्या चल है बातचीत
मोदी की यात्रा टेक्नोलॉजी, सिक्योरिटी और निवेश में सहयोग पर चर्चा के लिए सीनियर अमेरिकी अधिकारियों की एक टीम के भारत दौरे के कुछ ही सप्ताह बाद हो रही है. मोदी ने अमेरिका के साथ गहरी पार्टनरशिप की डिमांड की है और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका पर दबाव डाल रहे हैं. अमेरिका भारत को चीन के खिलाफ एक पार्टनर के रूप में देखता है, लेकिन इस रिश्ते ने कई बार वाशिंगटन को निराश किया है. मोदी ने यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा करने से इनकार कर दिया है, भले ही वह कूटनीति पर जोर दे रहा हो. अमेरिकी प्रोसिक्यूटर अमेरिकी धरती पर किराए के बदले हत्या की कथित साजिश की भी जांच कर रहे हैं, जिसमें उनका कहना है कि इसमें सीनियर भारतीय अधिकारी शामिल हैं.
इनसे भी करेंगे मुलाकात
जून के अंत में अमेरिकी उप विदेश मंत्री कर्ट कैंपबेल ने कहा कि अमेरिकी अधिकारियों ने नई दिल्ली के साथ भारत-रूस संबंधों के बारे में चिंता जताई है, लेकिन वाशिंगटन ने भारत पर विश्वास बरकरार रखा है और संबंधों का विस्तार करना चाहता है. पुतिन के साथ बातचीत के अलावा, मोदी के रूस में भारतीय समुदाय के सदस्यों से मिलने की भी उम्मीद है. भारतीय दूतावास के अनुसार, 4,500 छात्रों सहित लगभग 14,000 भारतीय वहां रहते हैं.

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