Polygraph Test: झूठ पकड़ने वाली मशीन में कौन सी टेक्नोलॉजी काम करती है
आपने झूठ पकड़ने वाली मशीन के बारे में कई कहानियां सुनी होंगी. खासकर टीवी ड्रामा में या फिर बड़े बड़े मुकदमे सुलझाने के लिए ऐसी मशीनें इस्तेमाल होती हैं. किसी से सच उगलवाने के लिए पुलिस पॉलीग्राफ टेस्ट करवाती है. इस टेस्ट में लाई डिटेक्टर मशीन (झूठ पकड़ने वाली मशीन) का इस्तेमाल होता है.
पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान लाई डिटेक्टर मशीन के 5-6 पॉइंट्स आरोपी की बॉडी से जोड़ दिए जाते हैं. इसके बाद अगर आरोपी झूठ बोलता है मशीन उसे पकड़ लेती है. ठीक से समझिए ये मशीन और तरीका कैसे काम करता है.
कैसे होता है पॉलीग्राफ टेस्ट?
इस टेस्ट में तीन तरह की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है. पहला न्यूमोग्राफ, दूसरा कार्डियोवास्कुलर रिकॉर्डर और तीसरा गैल्वेनोमीटर. इस प्रक्रिया में व्यक्ति की उंगलियों, सर और शरीर के दूसरे हिस्सों को मशीन से जोड़ा जाता है. इस दौरान व्यक्ति से कई तरह के सवाल किए जाते हैं. व्यक्ति की पल्स रेट, ब्लड प्रेशर और दूसरी हरकतों के हिसाब से मशीन में एक ग्राफ बनता है, जिससे अंदाजा लगाया जाता है कि वो शख्स सच बोल रहा है या झूठ. इस प्रोसेस के तीन हिस्से होते हैं…
न्यूमोग्राफ: ये डिवाइस व्यक्ति की सांस लेने की दर (पल्स रेट) और गहराई को मापता है. जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है, तो उसकी सांस लेने में बदलाव आ सकता है. और मशीन से भांप लेती है.
कार्डियोवास्कुलर रिकॉर्डर: ये मशीन व्यक्ति की दिल की धड़कन और ब्लडप्रेशर को मापती है. जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है, तो उसकी दिल की धड़कन और ब्लडप्रेशर बढ़ सकता है.
गैल्वेनोमीटर: ये व्यक्ति की त्वचा की इलेक्ट्रिक कंडक्टिविटी को चेक करता है. जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है, तो उसकी स्किन की इलेक्ट्रिक कंडक्टिविटी बढ़ सकती है.
इन तीनों टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके, पॉलीग्राफ टेस्ट किसी व्यक्ति के बॉडी रिएक्शन (शारीरिक प्रतिक्रिया) को मापता है और यह तय किया जाता है कि वह सच बोल रहा है या झूठ.
नोट: ये ध्यान रखना जरूरी है कि पॉलीग्राफ टेस्ट 100% सटीक नहीं है. कुछ दूसरी वजहों से भी किसी व्यक्ति की शारीरिक प्रतिक्रिया बदल सकती हैं जैसे कि परेशानी, स्ट्रेस और थकान. इसके अलावा, पॉलीग्राफ टेस्ट के नतीजों को समझना मुश्किल हो सकता है.