INSIDE STORY : प्रियंका बिना पोर्टफोलियो के महासचिव, सचिन को भी मौका, कांग्रेस संगठन में बदलाव के मायनों को समझें
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद और लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कांग्रेस संगठन में बड़ा फेरबदल हुआ है. कांग्रेस की दिग्गज नेता प्रियंका गांधी वाड्रा को उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पद से मुक्त कर दिया गया है. हालांकि वह महासचिव बनी रहेंगी, लेकिन उन्हें कार्यभार से मुक्त कर दिया गया है. पार्टी ने उन्हें किसी भी राज्य की जिम्मेदारी नहीं सौंपी है. इसके बाद आगामी लोकसभा चुनाव में उनकी भूमिका पर अटकलें शुरू हो गई हैं. राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया है.
प्रियंका गांधी की जगह अविनाश पांडे को उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव नियुक्त किया गया. प्रियंका गांधी बिना किसी पोर्टफोलियो के ही महासचिव बनी रहेंगी. यूपी में प्रभारी रहते पार्टी की करारी हार के बाद प्रभारी पद छोड़ दिया था. अब गांधी का किसी और राज्य का प्रभारी बनाकर बांधने की बजाय राष्ट्रीय स्तर पर इस्तेमाल होगा. वहीं, अविनाश पांडे मीडिया से दूरी रखने वाले संगठन के व्यक्ति माने जाते हैं. अखिलेश और जयंत के साथ समझौते में ईगो के बजाय लो प्रोफाइल रहकर अपना पक्ष मजबूती से सौम्यता के साथ रख सकते हैं.
राजस्थान से सचिन को मौका, हरीश चौधरी राज्य की राजनीति में
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के पुराने विवाद के मद्देनजर सचिन का कद बढ़ाकर उन्हें छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया है. वहीं राहुल के करीबी हरीश चौधरी को पंजाब प्रभारी से हटाकर राज्य की राजनीति में भेजा गया है, जिससे गहलोत को खुली छूट नहीं मिले.
जितेंद्र सिंह का कद बढ़ा, तो कर्नाटक में सुरजेवाला से आस
राजस्थान से गांधी परिवार के करीबी जितेंद्र सिंह को असम के साथ एमपी का प्रभार भी दिया गया है, ताकि केंद्र में सचिन-जितेंद्र, राज्य में हरीश चौधरी अन्य नेताओं के साथ मिलकर गहलोत पर काबू रख सकें. वहीं, कर्नाटक जीत में अहम किरदार निभाने वाले रणदीप सुरजेवाला से एमपी का प्रभार लेकर उनको कर्नाटक में फोकस करने को कहा गया है, जिससे वो विधानसभा जीत को 2024 में दोहरा सकें.
मोहन को बिहार, तो चेन्निथला को महाराष्ट्र
चुनाव में कांग्रेस द्वारा संगठन की कार्यकुशलता और लो प्रोफाइल नेताओं को अहम जिम्मा देने का सिलसिला यहां भी है. समाजवादी विचारधारा से आने वाले सुलझे हुए मोहन प्रकाश को बिहार सौंपा गया है, जिससे वो आसानी से लालू और नीतीश से तालमेल बैठा सकें. साथ ही महाराष्ट्र जैसे राज्य में रमेश चेन्निथला को उतारा गया है, जो संगठन में निचले स्तर से उठकर केरल कांग्रेस के अध्यक्ष बने. चेन्निथला आसानी से शरद पवार, उद्धव ठाकरे से तालमेल बिठा सकते हैं. हालांकि, ये भी कहा जा रहा है कि केरल से ही आने वाले संगठन महासचिव के दबाव में राज्य में बड़ा कद रखने वाले चेन्निथला को राज्य की सियासत से दूर किया गया है.
गुजरात और राजस्थान में प्रभारियों की यथास्थिति
वैसे सबसे चौंकाने वाला नाम राजस्थान के प्रभारी सुखजिंदर रन्धावा का है, जिनको बरकरार रखा गया है. माना जा रहा है कि गहलोत पर दबाव बनाए रखने के लिए जो राज्य के नेताओं की बिसात बिछाई गई है उसमें गहलोत के करीबी रन्धावा पुल का काम करेंगे और आलाकमान के कहने पर गहलोत पर लगाम भी कसेंगे. हालांकि, पार्टी ने रायपुर अधिवेशन के रेजोल्यूशन को चुनावी जरूरत के लिहाज से दरकिनार करते हुए अपने सबसे पुराने महासचिव मुकुल वासनिक को गुजरात का प्रभारी बनाए रखा है.
संगठन महासचिव, कम्युनिकेशन प्रमुख अपने पद पर बरकरार
उत्तर-दक्षिण भारत की बहस हो या नेताओं के एक बड़े तबके का दबाव, सबको दरकिनार करते हुए राहुल के सबसे खास के.सी वेणुगोपाल संगठन महासचिव पद पर बने रहेंगे. वहीं, कई नेताओं के निशाने पर आए जयराम रमेश भी लोकसभा चुनाव में बचा कम वक्त और बेहतर विकल्प के अभाव में कम्युनिकेशन हेड की अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे. वैसे कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री बनने से पहले संगठन महासचिव रहे गहलोत अबकी बार फिर वेणुगोपाल की जगह वापस आना चाहते थे, लेकिन गांधी परिवार की नाराजगी के चलते ये संभव नहीं हो सका.
दीपादास मुंशी, अजोय कुमार का बढ़ा कद
बंगाल से पूर्व सांसद और दिग्गज नेता प्रियरंजन दास मुंशी के कद में इजाफा करके कांग्रेस ने राज्य की सियासत में अधीर रंजन चौधरी के दबदबे को बैलेंस करने की कोशिश की है, जिससे ममता के साथ तालमेल में आसानी हो. दीपा को केरल, लक्षद्वीप के साथ तेलंगाना का भी प्रभार दिया गया है. इनके साथ ही अजोय कुमार को प्रवक्ता से ओडिशा, तमिलनाडु, पुद्दुचेरी सौंप कर प्रोफेशनल लोगों को संदेश देने की कोशिश की गई है.
खरगे के करीबियों का भी रखा गया ख्याल
खरगे के करीबी राज्यसभा सांसद और कार्यसमिति के सदस्य नासिर हुसैन अब आधिकारिक तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष के दफ्तर के प्रभारी होंगे. नासिर का कद खरगे के कद बढ़ने के साथ ही लगातार बढ़ रहा है. वहीं कम्युनिकेशन विभाग में किनारे किए गए प्रणव झा अपना कद बढ़ाते हुए खरगे का मीडिया विभाग संभालेंगे. साथ ही खरगे के एक और करीबी गुरदीप सप्पल को आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के प्रशासन की अहम जिम्मेदारी दी गई है. इसके अलावा सप्पल इंडिया गठबंधन की कई अहम कमेटियों का हिस्सा भी हैं.
केंद्र की सियासत में आजाद के विकल्प को उभारने की कोशिश
जम्मू कश्मीर के पूर्व अध्यक्ष और राजीव गांधी के जमाने से वफादार माने जाने वाले गुलाम अहमद मीर को झारखंड के साथ ही बंगाल का प्रभारी बनाकर गुलाम नबी आजाद के विकल्प के तौर पर देखा जा सकता है. वहीं, गांधी परिवार के वफादार देवेंद्र यादव को उत्तराखंड और कुमारी शैलजा को छत्तीसगढ़ में हार कर बाद भी संगठन में बनाए रखा गया है. हालांकि दोनों के राज्यों के प्रभार की अदला-बदली कर दी गई है. साथ ही गुजरात से आने वाले पार्टी के पुराने सिपाही भरत सिंह सोलंकी को जम्मू कश्मीर का प्रभार देकर आलाकमान ने दिलचस्प दांव चला है, आखिर मोदी-शाह की जोड़ी जम्मू कश्मीर को बड़ा मुद्दा जो बनाती आई है.
आपको बता दें कि अब कांग्रेस की सियासी रणनीतिकार सुनील कोनूगोलू ही 2024 की पर्दे के पीछे से कमान संभालेंगे, बाकी सभी राजस्थान में कमान संभालने वाले डिजाइन बॉक्स के नरेश अरोड़ा जैसे दावेदारों को नमस्ते करने का मन बना लिया गया है.