Ram Mandir: पुलिस की थी नजर, गोरखनाथ मंदिर के सेवक को बदलनी पड़ी वेशभूषा और नाम
द्वारिका तिवारी ने बताया कि झारखंड के रहने वाले करीब 50 की संख्या में आदिवासी कारसेवक भी मंदिर आ गए। वह अयोध्या जा रहे थे, लेकिन उन्हें गोरखपुर में रोक लिया गया। वे लोग मंदिर आए। उनके हाथ में तीर-कमान था। रात को वह मंदिर में रुके। सुबह उनमें से एक कारसेवक जो धनुष लिया था, उसने कारसेवकों को करतब दिखाया।
राम जन्मभूमि आंदोलन में गोरक्षपीठाधीश्वर के साथ ही गोरखनाथ मंदिर की व्यवस्था देखने वालों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उस समय गोरखनाथ मंदिर इस आंदोलन का प्रमुख केंद्र था। मंदिर में आने-जाने वालों पर पुलिस की नजर रहती थी। इस बीच मंदिर के सेवक सचिव द्वारिका तिवारी ने न सिर्फ मंदिर में आने वाले रामभक्तों की व्यवस्था की, बल्कि पुलिस से बचने के लिए उन्हें अपना वेशभूषा भी बदलनी पड़ी। वह नाम भी बदलकर संदेश भेजते थे। पुलिस से बचने के लिए वह आठ दिनों तक अंडरग्राउंड रहे।
द्वारिका तिवारी बताते हैं-1990 में जब विहिप ने कारसेवा का ऐलान किया तो असम, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से लोग कारसेवा के लिए अयोध्या जाने के लिए निकले, लेकिन गोरखपुर पहुंचने पर उन्हें यहीं रोक दिया जाता था। वे लोग ठौर की तलाश में गोरखनाथ मंदिर आते थे। उनके रहने और भोजन का इंतजाम करना पड़ता था। मंदिर में दिन-रात भंडारा चलता था। ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ उस समय अयोध्या में थे। इस नाते सारी जिम्मेदारी मुझे ही करनी थी।
उन्होंने बताया-पुलिस की निगाह मुझ पर थी और तलाश भी रही थी। इसलिए मैंने अपना नाम द्वारिका से बदलकर दिवाकर रख लिया था। जहां संदेश भेजते थे, वहां दिवाकर नाम से ही जाता था। लोग समझ जाते थे कि द्वारिका तिवारी ने संदेश भेजा है। इस तरह से आठ दिनों तक अंडरग्राउंड होकर काम किया।
झारखंड से आए थे आदिवासी कारसेवक
द्वारिका तिवारी ने बताया कि झारखंड के रहने वाले करीब 50 की संख्या में आदिवासी कारसेवक भी मंदिर आ गए। वह अयोध्या जा रहे थे, लेकिन उन्हें गोरखपुर में रोक लिया गया। वे लोग मंदिर आए। उनके हाथ में तीर-कमान था। रात को वह मंदिर में रुके। सुबह उनमें से एक कारसेवक जो धनुष लिया था, उसने कारसेवकों को करतब दिखाया। फिर उन कारसेवकों को वह स्टेशन छोड़ने गए। ट्रेन से वापस झारखंड चले गए।
जब ढांचा गिरा तो मंदिर में गूंजा जयश्रीराम का जयकारा
द्वारिका तिवारी ने बताया-1992 में प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। कल्याण सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। वह उस समय भी मंदिर में ही थे। अयोध्या की एक -एक गतिविधियों पर नजर थी। महंत अवेद्यनाथ अयोध्या में ही जमे हुए थे। कारसेवकों को अयोध्या जाने पर रोक नहीं होने के कारण लाखों कारसेवक अयोध्या पहुंच गए। 6 दिसंबर को कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया। यह सूचना मिलते ही मंदिर में जयकारा गूंजने लगा। जय श्रीराम के उद्घोष से पूरा परिसर गुंजायमान हो गया। शाम होते ही कल्याण सिंह के इस्तीफे की खबर आते ही पूरा नजारा बदल गया ।