रामचरितमानस: जब श्रीराम के साथ वनवास जाने की जिद पर अड़े सीता और लक्ष्मण

राजद्वार पर मन्त्रियों और सेवकों की भीड़ लगी है. वे सब सूर्य को उदय हुआ देखकर कहते हैं कि ऐसा कौन-सा विशेष कारण है कि अवधपति दशरथजी अभी तक नहीं जागे? राजा नित्य ही रात के पिछले पहर जाग जाया करते हैं, किन्तु आज हमें बड़ा आश्चर्य हो रहा है.

हे सुमन्त्र! जाओ, जाकर राजा को जगाओ. उनकी आज्ञा पाकर हम सब काम करें. तब सुमन्त्र रावले (राजमहल) में गए, पर महल को भयानक देखकर वे जाते हुए डर रहे हैं. ऐसा लगता है मानो दौड़कर काट खाएगा, उसकी ओर देखा भी नहीं जाता. मानो विपत्ति और विषाद ने वहां डेरा डाल रखा हो. पूछने पर कोई जवाब नहीं देता; वे उस महल में गए, जहां राजा और कैकेयी थे.

‘जय-जीव’ कहकर सिर नवाकर (वन्दना करके) बैठे और राजा की दशा देखकर तो वे सूख ही गए. देखा कि राजा सोच से व्याकुल हैं, चेहरे का रंग उड़ गया है. जमीन पर ऐसे पड़े हैं, मानो कमल जड़ छोड़कर (जड़ से उखड़कर) मुर्झाया पड़ा हो. मन्त्री मारे डरके कुछ पूछ नहीं सकते. तब अशुभ से भरी हुई और शुभ से विहीन कैकेयी बोली- राजा को रातभर नींद नहीं आयी, इसका कारण जगदीश्वर ही जानें. इन्होंने ‘राम-राम’ रटकर सबेरा कर दिया, परन्तु इसका भेद राजा कुछ भी नहीं बतलाते. तुम जल्दी राम को बुला लाओ. तब आकर समाचार पूछना. राजा का रुख जानकर सुमन्त्रजी चले, समझ गए कि रानी ने कुछ कुचाल की है. सुमन्त्र सोच से व्याकुल हैं,

रास्ते पर पैर नहीं पड़ता आगे बढ़ा नहीं जाता, सोचते हैं- रामजी को बुलाकर राजा क्या कहेंगे? किसी तरह हृदय में धीरज धरकर वे द्वार पर गए.सब लोग उनको मनमारे (उदास) देखकर पूछने लगे.

 

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