रामलला के सिपाही-3: मस्जिद में मूर्ति रखने से राम मंदिर की पहली ईंट रखने तक, हर कहानी में मिलेंगे परमहंस रामचंद्र दास
अयोध्या में 23 दिसंबर 1949 की सुबह कुछ अलग थी. बाबरी मस्जिद की ओर जा रहा हर रास्ता प्रकट भये राम कृपाला से गुंजायमान था. शहर का हर शख्स जल्दी से जल्दी रामजन्मभूमि की ओर जाना चाहता था.
लोगों में कौतूहल था कि राम लला की जो मूर्ति रहस्यमय तरीके से विवादित मस्जिद में प्रकट हुई है, वह दिखती कैसी है? इस पूरे सस्पेंस को जिस संत ने अपने हाथों से रचा था, वह राम मंदिर के लिए पहली ईंट रखने तक की दास्तान में भूमिका निभाता रहा. आइये, जानें उन्हीं संत परमहंस दास रामचंद्र के व्यक्तित्व और उनके संघर्ष की कहानी को.
हालांकि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण 500 साल के संघर्ष का परिणाम है. हजारों लोगों ने मंदिर के लिए कुर्बानियां दी हैं. सैकड़ों लोगों के अथक परिश्रम से अयोध्या में राम मंदिर का सपना साकार हो रहा है. पर अगर राम मंदिर निर्माण का श्रेय केवल एक आदमी को देने की बात हो तो निश्चित रूप से परमहंस रामचंद्र दास का नाम ही लिया जाएगा.1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्ति के प्रकट होने से लेकर बाबरी मस्जिद के विध्वंस तक अगर देश का कोई एक शख्स राम मंदिर के हर काज में काम आया तो वो परमहंस रामचंद्र दास ही थे. मूर्ति रखवाने से लेकर मंदिर की लड़ाई को आम जनता की लड़ाई बनाने तक में रामचंद्र दास की बहुत बड़ी भूमिका रही है.