RMD का कद बढ़ा, मेनन मुख्यधारा में लौटेबीजेपी की नई टीम मे संघ का दबदबा; मायने क्या है?
लोकसभा चुनाव में निराशजनक प्रदर्शन के बाद डैमेज कंट्रोल में जुटी भारतीय जनता पार्टी ने 20 दिन बाद प्रभारियों की दूसरी लिस्ट जारी की है. यूपी और गुजरात को छोड़कर सभी राज्यों को बीजेपी ने सेनापतियों की तैनाती कर दी है. संख्या छोड़ भी दी जाए तो बीजेपी की नई टीम में फिर से संघ का दबदबा देखने को मिला है. 29 में से 20 ऐसे प्रभारी हैं, जो सीधे तौर पर संघ से जुड़े रहे हैं.
दिलचस्प बात है कि संघ की पाठशाला से आए 3 नेता ऐसे हैं, जिन्हें 2 से ज्यादा राज्यों के प्रभार सौंपे गए हैं. वो भी तब, जब हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बीजेपी को अब संघ की जरूरत नहीं है.
RMD का कद बढ़ा, मेनन मुख्यधारा में लौटे
बीजेपी के भीतर राधा मोहन दास अग्रवाल का कोड नेम आरएमडी है. दास गोरखपुर के रहने वाले हैं. उसी गोरखपुर के जहां से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आते हैं. वर्तमान में राज्यसभा के सांसद भी हैं. बीजेपी ने हाल ही में उन्हें कर्नाटक का प्रभारी बनाया था. अब 21 दिन बाद उन्हें राजस्थान की कमान सौंपी गई है.
राजस्थान की सत्ता में होने के बाद भी बीजेपी की स्थिति खस्ताहाल है. एक तरफ पार्टी के बड़े चेहरे मोर्चे पर नहीं हैं, तो दूसरी तरफ किरोड़ी लाल मीणा जैसे नेता सरकार और संगठन की टेंशन ही बढ़ाने में जुटे हैं. हाल ही में लोकसभा चुनाव में बीजेपी यहां की 11 सीटें हार गई.
आरएमडी संघ ने राजनीतिक करियर की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक से ही की थी. वे प्रज्ञा प्रवाह, स्वदेशी जागरण मंच और विश्व संवाद केंद्र में रह चुके हैं. 2022 के चुनाव में उनसे गोरखपुर की सीट ले ली गई थी. बीजेपी ने इस सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मैदान में उतारा था.
आरएमडी के अलावा बीजेपी की नई टीम में अरविंद मेनन को भी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है. मेनन को तमिलनाडु और लक्षद्वीप का प्रभारी महासचिव बनाया गया है. मेनन भी संघ की पाठशाला से ही आए हैं. मध्य प्रदेश के संगठन महासचिव भी रह चुके हैं. मेनन को 2017 में मध्य प्रदेश से हटाकर केंद्र की राजनीति में लाया गया था, लेकिन तब से वे पर्दे के पीछे ही काम कर रहे थे.
मध्य प्रदेश से मेनन की रुखसती का बड़ा कारण उस वक्त जो बताया गया था, वो शिवराज और हाईकमान के बीच की अंदरुनी टशन था. मेनन को मध्य प्रदेश के सियासी गलियारों में शिवराज का करीबी माना जाता था.
बीजेपी ने बस्ती के पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी को असम का प्रभारी बनाया गया है. द्विवेदी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. गाजियाबाद के सांसद अतुल गर्ग को चंडीगढ़ की कमान सौंपी गई है. अतुल भी संघ के वफादार हैं. उनके पिता दिनेश चंद्र गर्ग जनसंघ के बड़े नेता थे.
इसी महीने बनाए गए थे 24 प्रभारी, अधिकांश RSS से
दिनेश शर्मा को हाल ही में महाराष्ट्र की कमान सौंपी गई है. यूपी के पूर्व डिप्टी सीएम शर्मा भी संघ के बैकग्राउंड से ही आते हैं. महेंद्र सिंह को मध्य प्रदेश के प्रभारी हैं. सिंह भी संघ के ही पाठशाला से निकले हैं. इन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी.जम्मू-कश्मीर के प्रभारी तरुण चुग और तेलंगाना-ओडिशा के संगठक और बंगाल के प्रभारी सुनील बंसल भी संघ से ही निकले हैं.
बिहार के प्रभारी विनोद तावड़े, छत्तीसगढ़ के प्रभारी नितिन नवीन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन कहे जाने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से निकले हैं. झारखंड के प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेई भी संघ की शाखा से ही निकले हैं. झारखंड में इसी साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं.
संघ का दबदबा बढ़ा, मायने क्या?
उत्तर प्रदेश और गुजरात को छोड़ दिया जाए तो सभी बड़े राज्यों में बीजेपी के नवनियुक्त प्रभारी में संघ और उसकी छात्र इकाई एबीवीपी से ही निकले हैं. यूपी और गुजरात में बीजेपी ने अभी प्रभारी का ऐलान नहीं किया है. पिछली बार कई राज्यों दूसरी पार्टी या बीजेपी से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले नेता ही प्रभारी थे.
संघ से जुड़े लोगों का कहना है कि लोकसभा चुनाव में जिस तरह के परिणाम आए, उससे संगठन के भीतर बैचेनी बढ़ा दी थी. संघ इस मुकाम पर किसी भी तरह की सियासी चूक नहीं चाहती है.
संगठन में संघ का दबदबा बढ़ने से कॉर्डिनेशन में आसानी होगी. साथ ही आंतरिक तौर पर जो पार्टी के भीतर कलह की खबरें बाहर आ रही है, संघ से जुड़े प्रभारी उसे आसानी से खत्म कर सकेंगे. वर्तमान में बिहार, यूपी, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे राज्यों में बीजेपी अंदरुनी कलह से जूझ रही है.
इतना ही नहीं, जिन बड़े राज्यों में संघ की पाठशाला वाले नेताओं को प्रभारी बनाया गया है, उन राज्यों में लोकसभा की करीब 300 सीटें हैं. इस बार बीजेपी इन राज्यों की करीब 40 प्रतिशत सीटें ही जीत पाई.