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सचिन तेंदुलकर का शुरुआती करियर

1984 में सचिन के बड़े भाई अजीत ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें क्रिकेट खेलने के लिए प्रोत्साहित किया. सचिन के पिता उन्हें शिवाजी पार्क, दादर, बॉम्बे में रमाकांत आचरेकर के प्रशिक्षण केंद्र ले गए. वह सचिन से काफी प्रभावित थे और उन्होंने उन्हें दादर में शरदाश्रम विद्यामंदिर इंग्लिश जूनियर हाई स्कूल में दाखिला लेने को कहा. सचिन अपनी मौसी के घर चले गए, क्योंकि वहां से दादर स्कूल नजदीक था. ‘गुरु द्रोणाचार्य’ पुरस्कार से सम्मानित रमाकांत आचरेकर के प्रयास और मार्गदर्शन ने उनके करियर को आकार दिया.

अपने स्कूल के दिनों में, उन्होंने खुद को एक तेज गेंदबाज बनाने के लिए चेन्नई में एमआरएफ पेस फाउंडेशन में भी भाग लिया था. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज डेनिस लिली ने उन्हें बल्लेबाजी पर ध्यान केंद्रित लिए सुझाव दिया. तब से सचिन अपनी बल्लेबाजी पर फोकस करने लगे. सचिन अपने कोच के साथ अभ्यास करते थे. कोच रमेश आचरेकर का सचिन को अभ्यास कराने का तरीका बिल्कुल अनोखा था. वह स्टम्प पर एक रुपये का सिक्का रख देते और जो गेंदबाज सचिन को आउट करता, वह सिक्का उसी को मिलता था और अगर सचिन बिना आउट हुए पूरे समय बल्लेबाजी करने में सफल हो जाते, तो ये सिक्का उनका हो जाता. सचिन के अनुसार, उस समय उनके द्वारा जीते गये वे 13 सिक्के आज भी उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय हैं.

 

 

सचिन अपने स्कूल के दिनों से ही क्रिकेट की दुनिया में एक लोकप्रिय नाम बन गए थे. उन्होंने अपनी स्कूल टीम को कई मैचों में जीत दिलाई. वह क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया के लिए भी खेल चुके हैं. 1988 में स्कूल के एक हॅरिस शील्ड मैच के दौरान साथी बल्लेबाज विनोद कांबली के साथ 14 साल की उम्र में सचिन ने ऐतिहासिक 664 रनों की अविजित साझेदारी की थी. इस धमाकेदार जोड़ी के अद्वितीय प्रदर्शन के कारण एक गेंदबाज तो रोने ही लगा और विरोधी पक्ष ने मैच आगे खेलने से इनकार कर दिया. सचिन ने इस मैच में 326 रन और टूर्नामेंट में कुल 1000 से भी ज्यादा रन बनाए थे, जिसके बाद वह बॉम्बे स्कूलबॉय में प्रसिद्ध हो गए. कुछ ही समय बाद उन्हें मुंबई की रणजी क्रिकेट टीम से खेलने का मौका मिल गया.

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