इंसानों को अंतरिक्ष में भेजना, नापेंगे समुद्र की गहराई; साल 2024 में भारतीय विज्ञान खोलेगा नए राज
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ऐतिहासिक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के बाद भारत ने अब और चुनौतीपूर्ण अभियानों पर अपनी नजर टिका दी है। इसमें मनुष्यों को अंतरिक्ष में भेजना और चंद्रमा की सतह से नमूने लेकर पृथ्वी पर लौटना शामिल है। दोनों परियोजनाओं का परीक्षण नए साल में होने की संभावना है। भारतीय वैज्ञानिकों के लिए खोज केवल चंद्रमा तक ही सीमित नहीं है। गहरे समुद्र में अन्वेषण को आगे बढ़ाने के लिए देश का ‘समुद्रयान’ के जरिए ‘एक्वानॉट्स’ (अन्वेषण गोताखोर) को भेजने का कार्यक्रम है। उन्हें पहले मार्च में 500 मीटर की गहराई में भेजा जाएगा और बाद 6,000 मीटर की गहराई तक जाने का लक्ष्य है।
ब्लैक होल का खुलेगा रहस्य
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा ‘एक्सपोसैट’ के प्रक्षेपण के साथ नववर्ष की शुरुआत किए जाने की संभावना है। ‘एक्स-रे पोलरिमीटर सैटेलाइट’ (एक्सपोसैट) एक्स-रे स्रोत के रहस्यों का पता लगाने और ‘ब्लैक होल’ की रहस्यमयी दुनिया का अध्ययन करने में मदद करेगा। यह उपग्रह श्रीहरिकोटा से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) से एक जनवरी को प्रक्षेपित किया जाना है। इसके बाद ‘आदित्य एल-1’ उपग्रह को छह जनवरी को शाम चार बजे ‘लैंग्रेजियन’ बिंदु-1 में स्थापित किया जाएगा जहां से इसे सूर्य का निर्बाध दृश्य दिखाई देगा और यह अगले पांच साल तक सूर्य का अध्ययन करेगा। नववर्ष में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और इसरो की 1.2 अरब डॉलर की संयुक्त परियोजना ‘निसार’ उपग्रह का प्रक्षेपण भी होगा। यह जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए पृथ्वी की तस्वीर लेने वाला अब तक का सबसे महंगा उपग्रह होगा।
साल 2023 की कई उपलब्धियां
साल 2023 भारत में विज्ञान के लिए महत्वपूर्ण वर्ष रहा जब 14 जुलाई को ‘चंद्रयान-3’ मिशन का प्रक्षेपण किया गया और 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में इसकी ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ हुई। मिशन के ‘विक्रम’ लैंडर मॉड्यूल के साथ चंद्रमा की सतह पर रोवर ‘प्रज्ञान’ भी उतरा जो कुछ मीटर तक घूमा, चंद्रमा की तस्वीरें खींचीं और चंद्रमा की मिट्टी ‘रेगोलिथ’ भी निकाली ताकि इसकी विशेषताओं का अध्ययन किया जाए। साल 2024 में ‘गगनयान’ परियोजना के तहत दो मानवरहित मिशन भेजे जाएंगे। परीक्षण यान मिशन का उद्देश्य अंततः गगनयान मिशन के तहत भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर वापस लाने के लिए क्रू मॉड्यूल और चालक बचाव प्रणाली के सुरक्षा मानकों का अध्ययन करना है।
निजी अंतरिक्ष क्षेत्र की भी नजरें
अंतरिक्ष एजेंसी ने अपनी वाणिज्यिक शाखा ‘न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड’ के जरिए भारती एंटरप्राइजेज समर्थित उपग्रह इंटरनेट प्रदाता वनवेब के 72 उपग्रहों को दो अलग मिशन पर पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया। इसमें प्रक्षेपण यान मार्क-तृतीय की मदद ली गई जिसका पहली बार वाणिज्यिक प्रक्षेपण के लिए इस्तेमाल किया गया। निजी अंतरिक्ष क्षेत्र भी 2024 में पहली वाणिज्यिक उड़ान पर नजर टिकाए हुए है। स्काईरूट एयरोस्पेस और अग्निकुल कॉस्मोस छोटे उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षाओं में स्थापित करने के लिए अपने प्रक्षेपण यान बना रहे हैं। स्काईरूट एयरोस्पेस के सह-संस्थापक पवन कुमार चांदना ने कहा कि विक्रम-1 के प्रक्षेपण के लिए, हमारा लक्ष्य 2024 की पहली छमाही है। साल 2024 हमारे लिए मील का पत्थर साबित होगा क्योंकि हम कक्षीय प्रक्षेपण की अपनी क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं जो हमारी प्रक्षेपण सेवाओं के व्यावसायीकरण के लिए अहम है।
अग्निबाण’ रॉकेट का होगा परीक्षण
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-मद्रास के अंतरिक्ष स्टार्टअप अग्निकुल कॉस्मोस के भी नए साल में 3डी प्रिंटेड ‘अग्निबाण’ रॉकेट का परीक्षण करने की संभावना है। सरकार ने विज्ञान की बड़ी परियोजनाओं जैसे कि 2,600 करोड़ रुपये की लागत वाली लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (लिगो) और भारत-अमेरिका की संयुक्त पहल 900 करोड़ रुपये की फर्मीलैब के लिए प्रस्तावों के भी मंजूरी दे दी है। भारत ने नॉर्वे के स्वालबार्ड में हिमाद्रि अनुसंधान स्टेशन पर पूरे साल अपनी उपस्थिति बनाए रखने की कवायद के तहत आर्कटिक क्षेत्र में देश के पहले शीतकालीन विज्ञान अभियान को भी हरी झंडी दिखाई है। गुजरते साल में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस संघ (आईएससीए) द्वारा आयोजित भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 109वें संस्करण से भी दूरी बनाई। संघ ने उसके कामकाज में हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए सरकार को अदालत में घसीट लिया। इसके परिणामस्वरूप भारतीय विज्ञान कांग्रेस पर रोक लगा दी गई है जिसका उद्घाटन आम तौर पर हर साल तीन जनवरी को प्रधानमंत्री करते हैं।