बचपन में घर-घर जाकर बेचे अखबार, विदेश में मिली नौकरी, छोड़कर बन गए अफसर

ई दिल्ली (P Balamurugan IFS Story). 8 भाई-बहनों का भरा-पूरा परिवार, शराबी पिता, अपनी कमाई के बलबूते सभी बच्चों का पालन-पोषण करने वाली सिंगल वर्किंग मदर.. इतना पढ़ते ही आपके दिमाग में इस परिवार की एक छवि बन रही होगी.

इस गरीब परिवार की छठी संतान हैं बालामुरुगन पी (Balamurugan P IFS), जोकि फिलहाल राजस्थान के वन विभाग में सरकारी अफसर हैं. लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने कितना संघर्ष किया, इसकी दास्तां आप नीचे पढ़ सकते हैं.

हमारे सामने ऐसे कई आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, आईआरएस अफसरों के उदाहरण हैं, जिन्होंने गरीबी की रेखा को तोड़कर सफलता हासिल की. ऐसे कामयाब अफसरों ने अपने साथ-साथ अपने परिवारों का भी भविष्य संवार दिया. वह हर किसी के लिए मिसाल बन गए. मध्य प्रदेश के रहने वाले 12वीं फेल आईपीएस मनोज कुमार शर्मा के संघर्ष पर तो बॉलीवुड फिल्म तक बन गई (12th Fail Manoj Kumar Sharma IPS). जानिए आईएफएस पी बालामुरुगन की पूरी कहानी.

किसी एडवेंचर से कम नहीं रही जिंदगी
आईएफएस पी बालामुरुगन चेन्नई के कीलकट्टलाई के रहने वाले हैं. फिलहाल वह राजस्थान के वन विभाग में आईएफएस अफसर हैं. उनके घर में गरीबी के बावजूद पढ़ाई-लिखाई का माहौल था. उनकी मां बेशक 10वीं पास थीं, लेकिन उन्होंने अपने 8 बच्चों को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पी बालामुरुगन अपनी जिंदगी को किसी एडवेंचर से कम नहीं मानते हैं. उनके पिता शराबी थे और 1994 में घर-परिवार को अपने हाल पर छोड़कर चले गए थे.

घर के लिए मां ने बेच दिए गहने
8 भाई-बहनों में पी बालामुरुगन छठे नंबर पर थे. उनके घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी. उनकी मां और मामा किसी तरह से खर्च चला रहे थे. उनकी मां ने चेन्नई के बाहरी इलाके में 4800 वर्ग फुट का घर खरीदने के लिए अपने जेवर बेच दिए थे. पूरा परिवार 2 कमरों के टूटे-फूटे मकान में रहता था. हालांकि बालामुरुगन की मां ने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को हमेशा प्राथमिकता पर रखा. बच्चों की शिक्षा को जारी रखने के लिए मां ने 1997-98 में घर का 1200 वर्ग फुट हिस्सा 1.25 लाख रुपये में बेच दिया था.

अखबार बेचकर कमाए 300 रुपये
बालामुरुगन पढ़ने के शौकीन थे. 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने एक अखबार विक्रेता से तमिल न्यूजपेपर पढ़ने की इजाजत मांगी. उसने बालामुरुगन को 90 रुपये का मासिक सब्सक्रिप्शन खरीदने की सलाह दी. उन्होंने हताश होने के बजाय उस व्यक्ति को अपनी आर्थिक स्थिति से अवगत करवाया. उस विक्रेता ने उन्हें 300 रुपये की नौकरी ऑफर की. तब वह 7वीं कक्षा में थे. वह उस कमाई से हर महीने के अंत में 90 रुपये चुकाने लगे. इस तरह से उनका खबरों के साथ रिश्ता बन गया.

शिक्षकों से मिली मदद
जब उनके स्कूली शिक्षकों को उनकी नौकरी और पढ़ाई की ललक के बारे में पता चला तो वह भी उनकी मदद के लिए आगे आने लगे. उनके टीचर्स उन्हें अपनी पत्रिकाएं और अन्य स्टडी मटीरियल देने लगे. सिर्फ यही नहीं, उनके स्कूल ने भी इस दौरान उनकी बहुत मदद की. कभी उनकी फीस माफ कर दी जाती थी तो कभी ट्यूशन फीस देर से जमा करने की इजाजत मिल जाती थी. आईएफएस अफसर के घर का एक ही नियम था, भूखे भले सो जाओ लेकिन बिना पढ़ाई किए नहीं..

बीटेक के बाद मिली नौकरी
स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद पी बालामुरुगन ने 2011 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी. कैंपस प्लेसमेंट में उन्हें टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (TCS) में अच्छे पैकेज पर नौकरी मिल गई थी. 2012 में सबसे बड़ी बहन को नौकरी मिलने से घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा था. साथ ही वह खुद भी टीसीएस ऑफिस में अच्छी कमाई करने लगे थे. फिर उनका परिवार 5 कमरों के स्थायी मकान में शिफ्ट हो गया था.

एक घटना से बदला नजरिया
2013 में एक व्यक्ति ने उनके घर पर अतिक्रमण करने की कोशिश की थी. अगर वह सफल हो जाता तो उनके परिवार को खुद के ही घर के मात्र 10 फुट हिस्से में सिमटना पड़ता. तब उन्हें पुलिस से मदद की उम्मीद नहीं थी. तभी उन्हें एक महिला आईएएस अफसर के बारे में पता चला, जो तमिल नाडु मुख्यमंत्री के पास लोगों की शिकायतें लेकर जाती थी. उन्होंने भी एक दिन लंच ब्रेक में शिकायत दर्ज करवा दी. 45 दिनों बाद कुछ अफसरों ने घर आकर दस्तावेजों की मांग की.

प्रशासन पर बढ़ा भरोसा
जांच में उनके दस्तावेज सही पाए गए और उनका हिस्सा छिनने से बच गया. इससे उनका प्रशासन पर भरोसा बढ़ गया. उसी साल उन्हें ऑस्ट्रेलिया से जॉब ऑफर मिल गया. तब तक वह सिविल सर्विस में करियर बनाने के बारे में सोच चुके थे. लेकिन वह इस उम्मीद से ऑस्ट्रेलिया चले गए कि वहां कुछ डॉलर्स बचाने में मदद मिलेगी. साल 2015 में कुछ सेविंग हो जाने के बाद वह भारत लौट आए. अगले 3 सालों तक वह यूपीएससी परीक्षा में असफल होते रहे.

सालों तक बना रहा हौसला
विदेश की नौकरी छूट गई थी, यूपीएससी परीक्षा में सफल नहीं हो पा रहे थे, लेकिन पी बालामुरुगन ने हार नहीं मानी. आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और 2018 में वह यूपीएससी आईएफएस परीक्षा (UPSC IFS Exam) में सफल हो गए. फिर 2019 में ट्रेनिंग खत्म होने के बाद उन्हें राजस्थान में सरकारी नौकरी मिल गई (Sarkari Naukri). वह ऑस्ट्रेलिया में बिताए हुए दिनों को याद करते हैं. उनका मानना है कि वहां बिताए गए कुछ सालों ने उनके भविष्य को नई दिशा प्रदान की है.

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