किस्से ‘रामायण’ के: जब मरीज के लिए एक एपिसोड अलग से काटकर प्लेन से चेन्नई भेजा गया

जब कोरोना काल में रामानंद सागर की रामायण को एक बार फिर टीवी पर दिखाया गया, इसने व्यूवरशिप के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. यहां तक कि GOT जैसे शो काफी पीछे छूट गए. 22 जनवरी को राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन ‘रामायण’ को थिएटर में दिखाया जाएगा. ऐसे में हमने सोचा आपको इसकी मेकिंग से जुड़े कुछ किस्से बता देते हैं. तो चलिए फटाफट पढ़ डालिए.

रविवार का दिन था. लखनऊ रेलवे स्टेशन पर एक बारात पहुंची. खूब सारा सामान था. कुली की ज़रूरत थी, लेकिन सब गायब. वो सारे रामानंद सागर की रामयण देखने में व्यस्त थे. दुल्हन के पिता ने स्टेशन मास्टर से शिकायत की, लेकिन वो खुद रामायण देख रहे थे. उन भाईसाहब की पहुंच ऊपर तक थी. उन्होंने तंग आकर एक मंत्री जी को फोन घुमा दिया. वहां से जवाब मिला, मंत्री जी रामायण देख रहे हैं, बाद में फोन करना.

ये जलवा था दूरदर्शन पर टेलिकास्ट हुई रामानंद सागर की रामायण का. कोरोना काल में जब इसे दोबारा लाया गया, इसने ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ की व्यूवरशिप का रिकॉर्ड तोड़ दिया.

 ‘रामायण’ के चलते कैबिनेट मीटिंग रीशेड्यूल करनी पड़ी

कहते हैं 90 के दशक में दिल्ली के सरकारी ऑफिसों में कई बार मीटिंगें रद्द करनी पड़ती थीं क्योंकि लोग रामायण देखने में बिजी रहते थे. ऐसा भी बताया जाता है, कुछ पार्लियामेंटेरियन्स को शपथ लेने के लिए राष्ट्रपति भवन पहुंचने में इसलिए देरी हुई क्योंकि वो दूरदर्शन पर रामायण देख रहे थे. इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल टेलीग्राफ में लिखते हैं,

दक्षिण एशिया के गांवों में सैकड़ों लोग देवताओं और राक्षसों को देखने के लिए इकट्ठा होते थे. सबसे ज़्यादा शोरगुल और हलचल वाले शहरों में रेलगाड़ियां, बसें, कारें अचानक रुक जाया करतीं और बाजारों में अजीब-सी शांति पसर जाती. एक बार तो दिल्ली में पूरी कैबिनेट के तत्काल ब्रीफिंग में नहीं आने के बाद सरकारी बैठकों को रीशेड्यूल करना पड़ा.”

जब ‘रामायण’ टेलीकास्ट होना शुरू हुई तो कहा गया, ये शो कम्यूनल टेंशन बढ़ा देगा. लेकिन ठीक इसका उल्टा हुआ. जैसे-जैसे शो आगे बढ़ा. इसे सभी कम्युनिटी के लोगों ने पसंद करना शुरू किया. कई चर्चों ने रविवार को होने वाली प्रार्थना का समय बदल दिया ताकि लोग आराम से रामायण देख सकें. भोपाल के दो मुसलमान भाइयों के बीच 10 सालों से किसी वजह से झगड़ा था. बड़े भाई को रामायण के भरत मिलाप वाले दृश्य ने इतना ज़्यादा प्रभावित किया कि उसने जमीन जायदाद का आधा हिस्सा छोटे भाई को दे दिया. जर्नलिस्ट मार्क टली बताते हैं कि क्रिश्चियन महिला ने ऐक्टर्स को चिट्ठी में लिखा: भगवान जीजस और मां मेरी सभी को आशीर्वाद दें और आप स्वस्थ रहें. एक मुस्लिम फैन ने कलाकारों के लिए लिखा: आपका नाम क्षितिज पर भोर के तारे की तरह चमकेगा.

 वाइन का ग्लास हाथ में लेकर रामानंद बोले: मेरा मिशन राम की कहानी सुनाना है

बहरहाल ऐसे कई किस्से हैं. इन पर फिर लौटेंगे. अभी बताते हैं रामायण का आइडिया आया कैसे? 1976 की बात है. रामानंद सागर अपनी फिल्म ‘चरस’ की शूटिंग स्विट्जरलैंड में कर रहे थे. एक रोज शूटिंग के बाद वो अपने चारों बेटों के साथ एक कैफे में बैठे थे. रेड वाइन ऑर्डर की गई. उसके साथ एक बक्सा भी आया. बक्से के सामने की तरफ दो लकड़ी के पाले लगे हुए थे. बैरे ने पाले खिसकाए. बक्से में लगा स्विच ऑन किया. परदे पर रंगीन फिल्म चलने लगी. उस वक़्त तक भारत में टीवी आ चुका था. लेकिन रामानंद ने टीवी की तस्वीरों में रंग शायद पहली बार देखे थे. उनको अचरज हो रहा था. ठीक यही वो पल था, जब उन्होंने बड़े पर्दे की दुनिया छोड़ टीवी की दुनिया में कदम रखने का फैसला कर लिया. रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर अपने पिता की बायोग्राफी, एन एपिक लाइफ-रामानंद सागर’ में लिखते हैं, रेड वाइन का ग्लास हाथ में थामे पिता जी ने कहा:

“मैं सिनेमा छोड़ रहा हूं… मैं टेलीविजन (इंडस्ट्री) में आ रहा हूं. मेरी जिंदगी का मिशन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, सोलह गुणों वाले श्री कृष्ण और आखिर में मां दुर्गा की कहानी लोगों के सामने लाना है.”

रामानंद सागर ने ये कह तो दिया था, लेकिन इसके लिए उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा. दूरदर्शन ने उन्हें बहुत दौड़ाया. कहते हैं वो इतना परेशान हुए कि राजीव गांधी को बीच में आना पड़ा.

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चूंकि राजीव गांधी का जिक्र हुआ है, तो उनसे जुड़ा ये किस्सा जान लीजिए. इससे अंदाजा होगा कि उस वक़्त रामायण के कैरेक्टर कितने ज़्यादा मशहूर हो गए थे. उनका स्टारडम किसी बड़े सुपरस्टार से बिल्कुल कमतर नहीं था. जब ‘रामायण’ पूरे देश में तहलका मचा रही थी. उसी वक्त राजीव गांधी ने इसमें काम करने वाले कलाकारों को सम्मानित करने के लिए बुलाया. दिल्ली के आईपी स्टेडियम में कार्यक्रम था. सीता बनीं दीपिका चिखलिया बताती हैं कि पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था. लोग उनको दंडवत प्रणाम कर रहे थे. इसमें कई बड़े-बड़े नेता भी शामिल थे. उस समय रामायण की कास्ट को अपनी पॉपुलैरिटी का सही अंदाजा हुआ. लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले सुनील लहरी आईपी स्टेडियम का महौल याद करते हुए बताते हैं,

“हमारे (राम, सीता, लक्ष्मण) गले में मालाएं पड़नी शुरू होती, तो एक ही बार में सैकड़ों की संख्या में पड़ जातीं. आलम ये था कि हमारा चेहरा दिखना बंद हो जाता. फिर पुरानी मालाएं उतरतीं, नई डलनी शुरू हो जातीं. मुझे लगता है हमारे गले में इतनी ज़्यादा मालाएं पड़ गई थीं कि उन्हें ले जाने के लिए ट्रक मंगाना पड़ा होगा.”

अरुण गोविल भी ऐसी ही एक घटना का जिक्र करते हैं, जब उन्हें, सुनील लहरी और दीपिका को बनारस बुलाया गया. सबको अपनी-अपनी कॉस्ट्यूम्स पहनाकर नाव में बिठा दिया गया. वो कहते हैं कि उस वक़्त कोई 10 किलोमीटर तक घाटों पर सिर्फ सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे. दूसरे दिन अखबार में छपा कि 10 लाख लोग राम और सीता को देखने बनारस के घाटों पर पहुंचे

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