Subhash LY: मजबूत हौसलों के आगे नहीं टिकी पैरों की परेशानी, शौक को जुनून में बदलकर पैरालंपिक में फिर जीता मेडल

पैरालंपिक गेम्स सिर्फ अलग-अलग देशों के खिलाड़ियों के बीच जोरदार मुकाबले की ही कहानी नहीं होते, बल्कि हौसलों की कहानी भी होते हैं. ये ऐसे लोगों को दुनिया के सामने अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका देते हैं, जो खेल के दबाव के साथ शारीरिक परेशानियों को पीछे छोड़कर अपना दम दिखाते हैं. भारत के पैरा-बैडमिंटन खिलाड़ी सुहास एल यतिराज ऐसे ही एक खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपनी दिव्यांगता को भी सफलता के आड़े नहीं आने दिया. पेरिस पैरालंपिक गेम्स 2024 में सुहास ने मेंस बैडमिंटन एसएल-4 कैटेगरी का सिल्वर मेडल जीता और इसके साथ ही इतिहास भी रच दिया. सबसे खास बात ये है कि सुहास ने ये सब भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी रहते हुए किया है.
पेरिस पैरालंपिक में सुहास को अपने फाइनल मैच में फ्रांस के खिलाड़ी के हाथों हार का सामना करना पड़ा. इस तरह पैरालंपिक गोल्ड मेडल जीतने का उनका सपना टूट गया. लेकिन गोल्ड मेडल जीतने का सपना भी शायद उतना बड़ा नहीं था, जितना अपनी शारीरिक बंदिशों को तोड़कर इस स्तर तक पहुंचना और देश का प्रतिनिधित्व करना था और इस सपने को न सिर्फ उन्होंने पेरिस में पूरा किया बल्कि पिछले कई सालों से करते आ रहे हैं.
दिव्यांगता को नहीं बनने दिया बाधा
IAS सुहास का यहां तक पहुंचना किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. ऐसा नहीं था कि वो किसी हादसे का शिकार हुए और फिर उन्होंने अपनी शारीरिक क्षमता गंवाई, बल्कि वो तो जन्म से ही दिव्यांग थे. उनके पैरों में परेशानी थी, जिससे बचपन से ही उनके लिए जीवन बेहद कठिन था. कर्नाटक के शिमोगा में जन्मे सुहास ने अपनी इस परेशानी को कभी आड़े नहीं आने दिया और बचपन से ही पढ़ाई के साथ ही खेलों में भी पूरी रुचि दिखाई. इस दौरान वो बैडमिंटन और क्रिकेट जैसे खेलों को भी पूरे शौक के साथ खेलते थे. इसका फल भी उन्हें मिला और उन्होंने NIT से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की.
अगर पहले से ही जीवन में बाधाएं कम नहीं थीं तो 2005 में उन्हें बड़ा झटका लगा, जब उनके सबसे बड़े समर्थक उनके पिता का निधन हो गया. बस यहीं से सुहास ने खुद को फिर संभाला और यूपीएससी की परीक्षा पास करने की ठानी. 2007 में वो इसमें सफल भी हुए और IAS अफसर बन गए. इसके बाद से ही उन्होंने उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में जिम्मेदारी संभाली और इसी दौरान एक बैडमिंटन टूर्नामेंट के उद्घाटन के दौरान इस खेल के लिए उनका प्रेम फिर से जाग उठा. उन्होंने उस टूर्नामेंट में कुछ मैच खेले और यहीं बैडमिंटन कोच गौरव खन्ना की उन पर नजर पड़ी, जहां से दोनों का सफर शुरू हुआ और उनकी कोचिंग में सुहास ने खुद को इस खेल में और बेहतर बनाया.
शौक बना जुनून, रच दिया इतिहास
बैडमिंटन का उनका शौक जल्द ही एक जुनून बन गया. 2016 में उन्होंने एशियन पैरा बैडमिंटन टूर्नामेंट का गोल्ड मेडल जीता था. इसके साथ ही वो विश्व स्तर पर कोई बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतने वाले भारत के पहले प्रशासनिक अधिकारी भी बन गए थे. फिर आया 2021 का वो साल जब सुहास ने इतिहास रच दिया. उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर के जिलाधिकारी रहते हुए उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक में सिल्वर मेडल जीता और ऐसा करने वाले पहले भारतीय प्रशासनिक अधिकारी भी बन गए. अपनी इसी सफलता को उन्होंने अब पेरिस में भी दोहरा दिया है और दो बार पैरालंपिक मेडल जीतने वाले भारत के पहले बैडमिंटन खिलाड़ी बने हैं.

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