पर्माफ्रॉस्ट संरचनाओं से भरा हुआ है कश्मीर का यह इलाका, बन सकता है बड़े विनाश का कारण

ये ऊंची-ऊंची पहाड़ियां और इन पहाड़ियों में सालों से दबे गहरे राज… ना जाने कितने विशेषज्ञों ने इन बर्फ से ढ़के पहाड़ों को जानने की कोशिश की है, लेकिन आज भी इनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते. हर दिन किसी नए अध्ययन से सालों से चली आ रही खोज की दिशा बदला जाती है. एक ऐसा ही अध्ययन सामने आया है जिसने एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि प्रकृति के आगे इंसान का अस्तित्व कितना बौना है.

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि कश्मीर हिमालय पर्माफ्रॉस्ट संरचनाओं से भरा हुआ है, जिन्हें ‘रॉक ग्लेशियर’ कहा जाता है, जिनके भीतर बर्फ की मात्रा काफी ज्यादा है. इनमें से 100 से अधिक पर्माफ्रॉस्ट पर लकीरें और उभार मिले हैं, जो इशारा देती हैं कि उनमें पर्माफ्रॉस्ट हिलना या पिघलना शुरू हो गया है. रिसर्च में सामने आया है कि यह जमी हुई पर्माफ्रॉस्ट आने वाले सालों में एक बड़े विनाश का कारण बन सकती है.

क्या कहती है रिपोर्ट?

दुनिया के कई पर्वतीय क्षेत्रों में क्लिमेटिक चैंज के कारण रॉक ग्लेशियर प्रमुख हैं. यह संरचनाएं अपने अंदर बर्फ से भरपूर पर्माफ्रॉस्ट रखती हैं. अमृता स्कूल फॉर सस्टेनेबल फ्यूचर्स केरल के सहायक प्रोफेसर और रिपोर्ट की मुख्य लेखिका रेम्या एस एन का कहना है कि इन चट्टानों को ‘सक्रिय हिमानी चट्टानें’ या फिर Active Glacial Rocks कहा जाता है और यह क्षेत्र के गर्म होने पर प्राकृतिक आपदाओं में योगदान कर सकते हैं. रेमया के अनुसार, ग्रीनलैंड, अलास्का और साइबेरिया जैसी जगहों पर पर्माफ्रॉस्ट, जो कम से कम दो सालों से जमी हुई मोटी जमीन की परतें जैसे होती हैं उनका रिसर्च एडवांस स्टेज पर चल रहा हैं. लेकिन हिमालय के चट्टानी ग्लेशियरों के बारे में बहुत कम जानकारी अभी तक खोजी और बताई गई है.

क्या है रॉक ग्लेशियर?

रॉक ग्लेशियर आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में बनते हैं जहां पर्माफ्रॉस्ट, रॉक मलबे और बर्फ का मिक्सचर होता है. एक सामान्य स्थिती में पहले से मौजूद ग्लेशियर पर समय के चलते मलबे और चट्टानों जमा होती हैं. समय के साथ, अगर ग्लेशियर पीछे हटता है या पिघलता है, तो मलबे से ढकी बर्फीली चट्टानी ग्लेशियर में बदल सकती है यह प्रक्रिया पिछले पांच दशकों में तेज हो गई होगी. शोधकर्ताओं ने अध्ययन में लिखा है कि इस बात का पता चला है कि यह रॉक ग्लेशियर ज्यादातर ऊंचे क्षेत्रों में खड़ी ढलानों के साथ पाए जाते हैं. आम तौर पर देखने में चट्टानी ग्लेशियर नियमित जमीन की तरह दिखते हैं, और अक्सर उन पर बस्तियों की योजना बनाई जाती है पर इसकी पहचान के लिए एक जियोमोरफोलोजिकल पहचान होनी जरूरी हैं.

कैसे की गई रिसर्च?

रेम्या और उनकी टीम ने सैटेलाइट इमेजस का अध्ययन किया और रॉक ग्लेशियरों की पहचान करने के लिए झेलम बेसिन का दौरा किया. उन्होंने ‘पर्माफ्रोस्ट ज़ोनेशन मैप’ बनाने के लिए तापमान, टोपोग्राफी और ढलान जैसे स्टेटिसटिकल और सोलर रेडिएशन पर आधारित एक स्टेटिस्टिकल मॉडल का उपयोग किया, जो 50 वर्ग किलोमीटर में फैले लगभग 207 रॉक ग्लेशियरों को दिखाता है.

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