निंदा करने वाले अपने पांव पर मार रहे कुल्हाड़ी, ये राष्ट्र नायक राम की अगवानी का उत्सव…

2019 की 9 नवम्बर को जब अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, उसके दो दिन बाद मैं अयोध्या गया था. तब अयोध्या में न कोई होटल था, न सरकारी गेस्ट हाउस. इसलिए मैं फैजाबाद शहर में स्थित सर्किट हाउस में रुका था.शाम 7 बजे से 9 बजे तक मैं अयोध्या में रहा. हनुमानगढ़ी मंदिर के दर्शन के बाद मैं सरयू तट पर आया. चूंकि उस दिन कार्तिक पूर्णिमा का नहान था इसलिए सरयू स्नान के लिए हजारों लोग आए थे. प्रशासन ने बताया कि एक लाख से ऊपर लोग यहां स्नान को आए थे. सरयू तट पर घंटा भर घूमने के बाद मैं वहां से 7 किमी दूर फैजाबाद लौट आया. शहर में एकदम शांति थी. न कहीं कोई उत्साह न कोई दुःख. हिंदू और मुस्लिम समुदाय दोनों ही इसे सामान्य फैसला मान रहे थे. एक ऐसा फैसला जो स्वाभाविक जान पड़ता था.

फैजाबाद की एक सघन मुस्लिम आबादी के बीच स्थित एक मकान में गया. जो खालिक अहमद खान का था. खालिक साहब तब सुप्रीम कोर्ट में बाबरी मस्जिद की तरफ से गए थे. वे बाबरी मस्जिद के पक्षकारों में से एक थे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उनमें कोई नाराजगी नहीं थी. यह जरूर कहा कि हम फैसले को पढ़ने के बाद सोचेंगे कि कोई पुनर्विचार याचिका दाखिल करें या नहीं. इस सब के बावजूद उनके अंदर हिंदुओं को लेकर कोई गुस्सा नहीं था. उन्होंने कहा, वर्षों का भाईचारा किसी एक घटना से नष्ट नहीं होता. फैजाबाद की मुस्लिम आबादी में व्यापारी हैं, बुद्धिजीवी वर्ग है और तमाम तरह के व्यवसाय करने वाले लोग हैं. 18वीं सदी में फैजाबाद अवध के शासकों की राजधानी थी. इसलिए उनके बनवाए बाग और हवेलियां अभी भी मौजूद हैं.

22 जनवरी का पूरे देश को इंतजार

देश अब पूरी तरह राम मय है. ललक और उत्साह अपने चरम पर है. कुछ लोग भले कुढ़ रहे हों या ईर्ष्या से जल-भुन रहे हों किंतु पूरा देश 22 जनवरी का इंतजार कर रहा है. कथित सेकुलर हिंदू और बरगलाया हुआ मुस्लिम एलीट ही विरोध कर रहा है. बाकी सब को राम के आगमन की प्रतीक्षा है. 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा के बाद एक और महोत्सव का भी यहांं इंतजार है और वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनने वाली मस्जिद. धन्नीपुर की मुहम्मद बिन अब्दुल्ला मस्जिद नाम से पांच एकड़ में विशाल मस्जिद का निर्माण होगा. यह मस्जिद विशालता और भव्यता में बेजोड़ होगी. सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले से राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त हुआ, उसी समय सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या सदर तहसील की सीमा में मस्जिद बनाने का भी आदेश दिया था.

मंदिर बन गया-मस्जिद भी बन जाएगी…

इसीलिए अयोध्या में रह रहे मुसलमानों को राम मंदिर बनने से कोई दिक्कत नहीं है. एक तो स्वयं मुसलमान भी यह मानते हैं, कि वर्षों से अयोध्या की बाबरी मस्जिद में कभी कोई नमाज नहीं पढ़ी गई. दूसरे यह भी कहा गया था कि बाबर के सेनापति मीर बाकी ने यह मस्जिद शिया परंपरा से बनाई थी. इसलिए सुन्नी मुसलमानों को उस मस्जिद से कोई लगाव नहीं था. वह तो दोनों तरफ से ऐसा प्रचार हो गया, कि वह जर्जर इमारत ऐतिहासिक महत्व पा गई. अन्यथा सैकड़ों देव स्थान और मस्जिद की जमीन पर कब्जा होता रहता कोई चूं तक नहीं बोलता. पर अब शुक्र है कि सुप्रीम कोर्ट ने उस विवादास्पद स्थल का सर्वमान्य हल निकाल लिया था. मंदिर बन गया, मस्जिद भी जल्दी बन जाएगी. इस मस्जिद में 9-10 हजार लोगों के नमाज की व्यवस्था होगी.

किंतु मस्जिद के रास्ते में कई अड़चनें डाली गईं. पहले तो ज़मीन नहीं निर्धारित हो पाई. इसके बाद मुस्लिम बहुल गांव धन्नीपुर में ज़मीन मिली तो फॉरेस्ट एक्ट के कारण उसको NOC नहीं मिल सकी. अब सब कुछ मिल गया तो रजिस्ट्री का शुल्क बहुत अधिक था. सुन्नी वक्फ बोर्ड के बाद अब इसे इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ने ले लिया है. अब उम्मीद है कि इस वर्ष के अंत तक अयोध्या के लोग एक और महोत्सव देखें. सबसे बड़ी बात यह है, कि पूरे अयोध्या में कहीं भी हिंदू-मुस्लिम उन्माद या हार-जीत जैसा माहौल नहीं दिखता. न हिंदुओं के अंदर मुसलमानों को हरा देने का भाव है न मुसलमानों में कोई मायूसी. उलटे वे तो मंदिर बन जाने का इंतजार कर रहे हैं. इसकी वजह है, मंदिर से जुड़ा उनका रोज़गार.

अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे निंंदा करने वाले

राजा राम को प्रतिष्ठित किया जा रहा है, और उनका मंदिर अयोध्या में बन रहा है तो उस पर हल्ला करना व्यर्थ है. जो राजनेता और राजनीतिक दल इसकी निंदा कर रहे हैं, वे अपने ही पांवों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं, क्योंकि न तो मुस्लिम जनता इससे परेशान हैं न हिंदुओं के अंदर अब कोई बैर-भाव है. सच तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलेसे दोनों समुदायों को संतुष्ट कर दिया है. हिंदुओं को अपना मंदिर बनाने के लिए पर्याप्त स्थान मिला और मुसलमानों को नई मस्जिद के लिए पांच एकड़ में फैला परिसर. इसलिए अब किसी को कोई दिक्कत या परस्पर मन-मुटाव नहीं है. यूं भी अयोध्या कस्बे में मुस्लिम आबादी न के बराबर है. उनकी वहां रोजी-रोटी का जरिया भी राम जी के मंदिर थे. फूल-मालाओं से ले कर मूर्तियों के लिए कपड़े बनाने से होती है. उनके खरीदार हिंदू ही होते हैं.

उत्तर से दक्षिण को जोड़ने वाले नायक

हर एक बात का एक समय होता है. यह देश के लिए उत्साह की बात है, कि अब एक ऐसे नायक को प्रतिष्ठित किया जा रहा है, जिसने सबसे पहले उत्तर और दक्षिण को जोड़ा था. इतने वर्षों तक राम को पूजा तो जाता रहा मगर उनकी ऐतिहासिकता संदिग्ध रही. कुछ उन्हें अलौकिक मानते और विष्णु का अवतार लेकिन किसी ने भी उन्हें भारत को राष्ट्र के रूप में गढ़ने का नायक नहीं कहा. राम भारत की उस सभ्यता के प्रतीक हैं, जब भारत में छोटे-छोटे कबीलों में बंटे राज्य को एक विशाल राष्ट्र का स्वरूप दिया जा रहा था. उन्होंने लूट के लिए कोई राज्य नहीं हड़पा अपितु प्यार और सद्भावना से सबके दिल जीते. जो राजा अपने द्वारा जीते गए राज्यों की राजधानी में प्रवेश नहीं करता, उस राजा को तो सर्वत्र पूजित होना ही चाहिए. किष्किन्धा हो या लंका, दोनों को जीत कर उन्होंने राज्य उनके वारिसों को सौंपा.

इसीलिए मुस्लिमों की बड़ी आबादी खुद को उनका वंशज मानती है. राम को इमाम-ए- हिंद कहा गया है. मशहूर शायर और इस्लामिक दार्शनिक इकबाल ने कहा था, है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज अहल-ए-नजर समझते हैं इस को इमाम-ए-हिंद तब ऐसे नायक राम का मंदिर बनना ही चाहिए. यही कारण है, कि लखनऊ से अयोध्या के बीच में बसे मुस्लिम बहुल कस्बे रुदौली में मुसलमानों ने भी अपने घरों के दरवाजे खोल दिये हैं. उन्होंने कहा है, जो भी तीर्थ यात्री आये-जाये, उनके यहांं रुकें उन्हें खुशी होगी. भारत में हिंदू मुस्लिम एकता पिछले हजार वर्ष से बनी हुई है. परस्पर लड़ते-झगड़ते भी रहते हैं किंतु भाईचारा भी खूब है. इसलिए बेहतर यह होगा कि जो राजनीतिक दल इस सद्भाव को बनाये रखें और राम जी की अगवानी करें.

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *