जिन्हें संतान नहीं होती, वो यहां जरूर आते हैं, Photos देख आपके अंदर भी जाग जाएगा भक्ति, अनोखी है कहानी

छत्तीसगढ़ में एक जिला है धमतरी. इस जिले में सिहावा नाम की जगह पर महेंद्र गिरी पर्वत है. कहा जाता है कि श्री राम ने वनवास के दौरान कुछ समय महेंद्रगिरी पर्वत पर बिताया था. यहां श्रृंगी ऋषि का आश्रम है. ये वही श्रृंगी ऋषि हैं, जिनके यज्ञ से ही श्री राम का जन्म हुआ था. इस जगह की आज हर तरफ चर्चा हो रही है. यहां लोगों की भीड़ लग रही है. क्योंकि, लोग श्री राम के बारे में जानना चाहते हैं. मान्यता है कि निसंतान पति-पत्नी आज भी इस आश्रम में औलादग के लिए पूजा करने आते हैं. उनकी मुराद भी पूरी होती है.

सिहावा धमतरी जिले में है. यह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 160 किलोमीटर दूरी पर है. यह गांव महेंद्रगिरी पर्वत के नीचे और महानदी के तट पर बसा हुआ है. सिहावा पहुंचते ही ऊंचे पहाड़ पर मंदिर. उस पर लहराते ध्वज को नीचे से ही देखा जा सकता है. यहीं पहाड़ की चोटी पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम है. इसे बोलचाल में श्रृंगी ऋषि पर्वत भी कहा जाता है. पहले ये वीरान हुआ करता था. यहां ऊपर जाने के लिए करीब साढ़े चार सौ सीढ़ीयां हैं. आश्रम में चट्टान के नीचे श्रृंगी ऋषि की तप करती हुई एक प्रतिमा है. श्रद्धालु यहां आते हैं और पूजा करते हैं. बताया जाता है कि, भगवान श्री राम का श्रृंगी ऋषि से सीधा नाता था ।

पुजारी लक्ष्मी नारायण वैष्णव बताते हैं कि रामचरित मानस के बाल कांड में बताया गया है कि जब राजा दशरथ को उत्तराधिकारी के रूप में पुत्र प्राप्त नहीं हो रहा था तब वो बड़े परेशान रहने लगे थे. उस वक्त महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें श्रृंगी ऋषि की शरण में जाने की सलाह दी थी. क्योंकि, उस वक्त श्रृंगी ऋषि ही एकमात्र ऋषि थे जिन्होंने तपस्या से पुत्रयेष्ठी मंत्र सिद्ध किया था. महर्षि वशिष्ठ के कहे अनुसार राजा दशरथ सिहावा के महेंद्रगिरी पर्वत आए. उन्होंने श्रृंगी ऋषि की शरण में जाकर उनसे पुत्रयेष्ठी यज्ञ करने की प्रार्थना की. राजा दशरथ के साथ श्रृंगी ऋषि अयोध्या गए. वहां उन्होंने यज्ञ किया और खीर प्राप्त की. इस खीर को राजा दशरथ की तीनों रानीयों को खिलाया गया. इसके बाद ही भगवान राम, भरत, लक्षमण और शत्रुघन का जन्म हुआ.

वेदाचार्य गौकरण मिश्रा बताते हैं कि, धार्मिक ग्रंथों के अनुसार श्रृंगी ऋषि का जन्म हिरणी के गर्भ से हुआ था. उनके माथे पर सींग था. इसी सींग की वजह से उनका नाम श्रृंगी ऋषि पड़ा. वे महर्षि विभांडक के पुत्र और कश्यप ऋषि के पौत्र थे. विभांडक महान तपस्वी थे. वे महेंद्रगिरी पर्वत पर रहते थे. साथ ही वो बेहद आकर्षक देहयष्ठी वाले थे. स्वर्ग की अप्सराएं उन पर मोहित हो जाती थीं. एक बार जब विभांडक ऋषि तपस्या कर रहे थे तब एक अपसरा हिरणी का रूप लेकर उनके करीब चली गई. इसी समय विभांडक ऋषि का वीर्य स्खलित हो गया और पास के जल कुंड में मिल गया. इस पानी को उस हिरणी ने पी लिया और गर्भवती हो गई.

इसी हिरणी के गर्भ से श्रृंगी ऋषि का जन्म हुआ था. ये भी कहा जाता है कि श्रृंगी ऋषि जन्म से लेकर समाधि तक महेंद्रगिरी पर्वत पर ही रहे. उन्होंने यहीं तपस्या की थी. उन्होंने कभी किसी स्त्री को नहीं देखा था. सिहावा के श्रृंगी ऋषि पर्वत पर माता शांता का भी छोटा सा मंदिर है. माता शांता राजा दशरथ की सबसे बड़ी संतान थीं यानी भगवान राम की बड़ी बहन थीं. उन्हें माता कौशल्या की बहन ने गोद लिया था. राजा दशरथ ने पुत्रयेष्ठी यज्ञ के बाद श्रृंगी ऋषि को श्रेष्ठ दज्ञिणा के रूप में अपनी बेटी शांता को दिया था.

पुजारी लक्ष्मी नारायण वैष्णव बताते हैं मान्यता ये भी है कि आज भी निसंतान दंपत्ति श्रृंगी ऋषि के आश्रम में पूजापाठ और यज्ञ के बाद संतान प्राप्त करते हैं. श्रृंगी ऋषि पर्वत से ही छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी महानदी का भी उद्गम माना गया है. महानदी ने श्रृंगी ऋषि के कहने पर अपना मार्ग बदल लिया था. पर्वत पर एक छोटा कुंड है जो कभी सूखता नहीं.

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