UP में अखिलेश यादव और राहुल गांधी का कब तक रहेगा साथ, क्या सच में सपा के वोट बैंक में सेंधमारी कर सकती कांग्रेस?
उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की जोड़ी 2024 के लोकसभा चुनाव में हिट रही. यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 37 सीट सपा और 6 सीट कांग्रेस जीतने में कामयाब रही. राहुल-अखिलेश की जोड़ी के आगे बीजेपी की एक नहीं चली और 62 से घटकर 33 पर आ गई. यूपी में ‘दो लड़कों’ की जोड़ी बीजेपी को रास नहीं आ रही है, जिसके चलते पहले पीएम मोदी और अब बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने सपा-कांग्रेस की दोस्ती में दरार डालने का दांव चला है.
लोकसभा के सदन में पीएम मोदी ने सपा के कांग्रेस से सचेत करने की बात कही थी तो अब भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव को कांग्रेस से सावधान रहें. सपा के वोट बैंक पर कांग्रेस की नजर है. कांग्रेस को भस्मासुर बताते हुए भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि सपा के मुस्लिम वोट बैंक पर कांग्रेस की नजर है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई कांग्रेस की नजर सपा के वोट बैंक पर है तो फिर यूपी में दो लड़कों की जोड़ी कितने दिनों तक साथ रह पाएगी?
यूपी कांग्रेस को संजीवनी देने में जुटे हैं राहुल
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने रायबरेली लोकसभा सीट को अपनी कर्मभूमि बनाकर उत्तर प्रदेश की सियासत में साढ़े तीन दशक से वेंटीलेटर पर पड़ी कांग्रेस को सियासी संजीवनी देने में जुट गए हैं. इसकी झलक 2024 के लोकसभा चुनाव नतीजे आने और उसके बाद नेता प्रतिपक्ष बनने के साथ ही राहुल गांधी की हाथरस यात्रा और उसके बाद सीएम योगी आदित्यनाथ को लिखी गई चिट्ठी में देखा जा सकता है. राहुल गांधी एक महीने में यूपी का तीन बार दौरा कर चुके हैं, जिसके संदेश साफ है कि उनकी नजर सूबे की सियासत पर है तो सपा भी 2024 के नतीजे के बाद देशभर में अपनी पार्टी के विस्तार करने की दिशा में लगी है.
सपा का महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव में उतरने का प्लान
सपा महाराष्ट्र और हरियाणा में होने विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनकर सियासी रणभूमि में उतरने का प्लान बनाया है, लेकिन कांग्रेस क्या उसके लिए सीटें देगी, यह बड़ा सवाल है. सपा महाराष्ट्र में 10, हरियाणा में पांच सीटों मांग रही है, जिसके बदले यूपी में उपचुनाव और 2027 में सीट देने का प्लान बनाया है. सपा नेतृत्व ने भविष्य के लिए कांग्रेस को अपना फलसफा भी समझा दिया है- ‘एक हाथ दो, दूसरे हाथ लो’. ऐसे में साफ है कि कांग्रेस अगर सपा को सीटें नहीं देती है तो फिर यूपी में वह सीटें नहीं देगी.
राहुल की कोशिश सियासी बैलेंस बनाए रखने की
हालांकि, राहुल गांधी की कोशिश सपा के साथ सियासी बैलेंस बनाए रखने की है, जिसे लेकर अखिलेश यादव के साथ संसद से लेकर सोशल मीडिया तक पर राजनीतिक केमिस्ट्री बनाए रखने की है. इसकी पीछे वजह यह है कि यूपी में जिस तरह चुनावी नतीजे इंडिया गठबंधन के पक्ष में आई हैं, उसके चलते ही बीजेपी बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई है. ऐसे में बीजेपी की कोशिश सपा-कांग्रेस की दोस्ती में दरार डालने की है तो दूसरी तरफ सपा और कांग्रेस सूबे में अपने-अपने सियासी आधार को बढ़ाए रखने की है. राहुल गांधी की कोशिश उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के बिखरे हुए वोट बैंक को एक बार फिर से जोड़ने की है.
राहुल गांधी को 2024 के चुनाव में काफी हद तक सफलता मिलती दिखी है. कांग्रेस का परंपरागत वोटबैंक एक दौर में दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण हुआ करता था. कांग्रेस इन्हीं तीनों के सहारे यूपी में लंबे समय तक सत्ता पर काबिज रही, लेकिन नब्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन और सामाजिक न्याय की पॉलिटिक्स ने उसके समीकरण को बिगाड़ कर रख दिया. साढ़े तीन दशक से कांग्रेस के लिए सत्ता का वनवास बना हुआ है, लेकिन 2024 के चुनाव परिणाम ने उसके लिए एक राह दिखा दी है.
यूपी में फिर से खड़े होने की उम्मीद जगाई
2024 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का एकमुश्त वोट इंडिया गठबंधन को मिलना और संविधान वाले मुद्दे पर दलित समुदाय के झुकाव ने कांग्रेस को यूपी में फिर से खड़े होने की उम्मीद जगाई है. यूपी में 2022 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 2.33 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन दो साल बाद ही 2024 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 6.39 फीसदी पर पहुंच गया. कांग्रेस का सियासी बेस यूपी में बन जाने के चलते ही राहुल गांधी एक्टिव हैं और दोबारा से कांग्रेस को खड़े करने का प्लान है.
राहुल की सक्रियता से सियासी दलों की बेचैनी बढ़नी लाजमी है क्योंकि उत्तर प्रदेश में सपा जिस सियासी जमीन पर खड़ी नजर आ रही है, वो कभी कांग्रेस की हुआ करती थी. बाबरी विध्वंस के बाद मुस्लिम समुदाय कांग्रेस से दूर होकर सपा के साथ चला गया था. इसके बाद से मुस्लिमों का बड़ा तबका सपा से जुड़ा हुआ है, लेकिन राहुल गांधी के ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद से कांग्रेस के लिए मुस्लिमों का दिल पसीजा है. राहुल गांधी मुसलमानों के मुद्दे पर मुखर नजर आते हैं. इसी का नतीजा है कि 2024 में मुस्लिम समुदाय ने कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के पक्ष में एकमुश्त वोट किया है.
राहुल की सक्रियता ने अखिलेश की बेचैनी बढ़ाई
माना जाता है कि यूपी में कांग्रेस का जिस भी सियासी दल के साथ गठबंधन होता, मुस्लिमों का झुकाव उसके तरफ होता. इस तरह राहुल गांधी की सक्रियता से अखिलेश यादव की सियासी बेचैनी बढ़ सकती है, क्योंकि मुस्लिम के सहारे की सपा की पूरी सियासत टिकी हुई है. मुसलमानों का वोट अगर कांग्रेस अपने साथ जोड़ने में सफल रहती है तो सपा के लिए चिंता का सबब बन सकती है. इसलिए माना जाता है कि अखिलेश यादव यूपी में कांग्रेस को बहुत ज्यादा राजनीतिक स्पेस नहीं देना चाहते हैं.
2024 के चुनाव में सपा ने कांग्रेस को यूपी की 80 में से 17 सीटें दी थीं, ये सीटें ऐसी थीं जहां पर 40 साल से कांग्रेस को जीत नहीं मिल सकी थी. लोकसभा चुनाव नतीजे के बाद स्थिति बदल गई है और कांग्रेस अपने सियासी आधार को बढ़ाने में जुटी है. कांग्रेस यूपी में अगस्त के महीने से अपना सियासी अभियान शुरू करने जा रही है और 2027 के लोकसभा चुनाव की तैयारी है. ऐसे में कांग्रेस और सपा की दोस्ती में सहारनपुर और रायबरेली जैसे जिले की विधानसभा सीट का बंटवारा सियासी बाधा बन सकती है.
2027 में कांग्रेस सीटों की कर सकती है दावेदारी
2022 के विधानसभा चुनाव में रायबरेली लोकसभा क्षेत्र की पांच सीटों में से चार सीटें सपा जीतने में कामयाब रही थी और एक सीट पर मामूली वोटों से हार गई थी. अब रायबरेली से राहुल गांधी के सांसद बनने और उनके ताबड़तोड़ दौरे ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उत्साह से भर दिया है और 2027 में कांग्रेस सीटों की दावेदारी कर सकती है. ऐसे में सपा क्या अपनी जीती हुई सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ेगी. इसके अलावा सहारनपुर में जिस तरह से इमरान मसूद सांसद बने, जिसके बाद से सपा के मुस्लिम नेताओं की बेचैनी बढ़ गई है. सपा के मुस्लिम नेताओं के साथ इमरान मसूद के छत्तीस के आंकड़े हैं. ऐसे में विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग पर अड़चन आ सकती है और कांग्रेस के साथ सीट बंटवारा आसान नहीं होगा.
उपचुनाव में सीटों के लेकर पेंच फंसा
लोकसभा चुनाव के चलते 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. कांग्रेस उपचुनाव में तीन से चार सीटें मांग रही है जबकि सपा सिर्फ दो सीटें ही छोड़ने के लिए तैयार है, लेकिन उसके लिए शर्त लगा दिया है कि हरियाणा और महाराष्ट्र में उसे सीट दें. ऐसे में अखिलेश यादव और राहुल की दोस्ती कितने दिनों तक उत्तर प्रदेश में चल पाएगी, क्योंकि दोनों ही दलों का वोट बैंक एक ही है. सपा मुस्लिम वोट पर अपनी पकड़ हर हाल में बनाए रखना चाहती है को कांग्रेस मुस्लिम परस्त बनने के लिए बेताब है.