UP News: आगरा ही नहीं, यूपी के इस शहर मेंभी है ताज महल, वेलेंटाइन डे पर पहुंचते हैं टूरिस्ट
आगरा का ताजमहल दुनिया भर में मुहब्बत करने वालों के लिए विश्व प्रसिद्ध है जो दुनिया के सात अजूबो में से एक है वहीं यूपी के मुरादाबाद में भी एक ताजमहल है जिसे मिनी ताजमहल कहते हैं और इसकी सबसे बडी खासियत ये है कि इस आलीशान ताजमहल को घर की छत पर बनाया गया है. हर साल वैलेंटाइन डे पर यह ताजमहल चर्चाओं में आ जाता है.
मुरादाबाद के कुन्दरकी में बना ये ताजमहल ग्राम रूपपुर निवासी छिद्दा खंडसाली ने अपनी बेगम सुल्ताना को तोहफे में दिया था. हालांकि अब छिद्दा खंडसाली की भी मृत्यु हो चुकी है लेकिन यह मिनी ताजमहल आज भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बन हुआ है. ताज महल को दुनियाभर में मोहब्बत का प्रतीक माना जाता है. इसी से प्रभावित होकर कुंदरकी निवासी छिद्दा खंडसाली ने अपने मकान की छत पर अपनी बेगम की मोहब्बत को ताजा रखने के लिए यह ताज महल बना दिया. जिसके बाद इस ताजमहल की भी शोहरत इलाके में हो गयी.
छिद्दा खरसाली ने 1968 में कराया था निर्माण
इस ताजमहल की शोहरत को सुन ताज महल संरक्षण विभाग के अधिकारी भी यहां दौरा करने आ चुके हैं. यहां रहने वाले बुजुर्ग बतातें हैं कि छिद्दा खरसाली ने इसका निर्माण सन् 1968 में कराया था. इतना ही नहीं अब इस ताजमहल की वजह से ही ब्लॉक कार्यालय से चंद कदम की दूरी पर ताजमहल के नाम से एक मौहल्ला भी बस गया है. इसकी खासियत और शोहरत के चलते अब यहां वाहनों का स्टॉपेज भी बना दिया गया है. साथ ही बस स्टैड पर भी रिक्शा वाले ताजमहल, ताजमहल की आवाज लगाते नजर आते हैं.
स्थानीय लोग कहते हैं कि धन्य हैं छिद्दा खरसाली, जो मकान पर ताज बनाकर अपनी मोहब्बत को आबाद कर गए. कुन्दरकी का नाम रोशन कर गए. अब स्थिति यह बन चुकी है कि आते जाते यात्री अपने वाहन रोककर इस ताज महल को देखते हैं. यह ताजमहल छिद्दा खंडसाली ने अपनी बेगम सुल्ताना को प्यार के तोहफे के रूप में समर्पित किया था.
वेलेंटाइन डे पर आते हैं पर्यटक
छिद्दा खंडसाली वर्ष 2003 में और उनकी पत्नी सुल्ताना वर्ष 2016 में इस दुनिया को अलविदा कह गए लेकिन उनका यह ताजमहल हर साल वेलेंटाइन डे पर युवाओं के बीच चर्चा में आ जाता है. परिवार के लोग बताते हैं कि शादी के बाद छिद्दा खंडसाली पत्नी के साथ आगरा गए थे. वहां ताजमहल के दीदार करने के साथ गाइड से शाहजहां और मुमताज महल के प्रेम की कहानी सुनी. इसके बाद वहां से अपने अलग ताजमहल का संकल्प लेकर लौटे. गांव पहुंचने के कुछ समय बाद कुंदरकी में मुख्य सड़क के किनारे जमीन खरीदी और वर्ष 1968 में परिवार के लिए तीन मंजिला मकान बनवाते समय खुली छत पर इस ताजमहल का निर्माण करवाया.