UP News : यूपी के इस जिले में किसानों के पास एक बीघा भी खेत नहीं, फिर भी सालाना कमा रहे है लाखों रुपये, जानिए कैसे
तेजबहादुर और नाथू साहनी दोनों किसान हैं। इनके पास खुद की एक बीघा भी खेती नहीं है। लेकिन दोनों सब्जी की खेती करते हैं और सालाना चार लाख रुपये तक की आमदनी कर रहे हैं।
यह दो किसान तो सिर्फ उदाहरण हैं। यहां के दर्जनों किसान इसी तरह तरकक्की की इबारत लिख रहे हैं। कुछ भूमिहीन भी हैं लेकिन किराये की खेती में सब्जी उगाकर मकान, गाड़ी खरीद चुके हैं।
सब्जी के ही बूते इनके बच्चे अब अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ते हैं। यह कहानी है देवरिया जिले के तरकुलवा विकासखंड के कमधेनवा गांव की। इस गांव में उगाई गई सब्जियों की सप्लाई यूपी ही नहीं बिहार तक होती है।
सब्जियों की खेती में इस गांव की पहचान ऐसी है कि यहां दूर-दूर से व्यापारी सुबह ही पहुंच कर खरीदारी के लिए लाइन लगाए रहते हैं। यहां के किसानों को मंडी जाने की भी जरूरत नहीं पड़ती।
यहां के खेत कभी खाली नहीं रहते
यह गांव सब्जी की खेती का हब बन चुका है। गांव के किसान परंपरागत खेती छोड़कर सब्जी उगाते हैं। यहां के खेत कभी खाली नहीं रहते। पूरे 12 महीने यहां सब्जियों की खेती लहलहाती रहती है।
गांव के पश्चिम, उत्तर और दक्षिण जिधर भी देखिए सब्जियों की खेती दिखती है। गोभी, बैंगन, करेला, गाजर, शलजम, नेनुआ, भिंडी का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है।
यहां की सब्जियां देवरिया, गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर, आजमगढ़ और बलिया के अलावा बिहार के गोपालगंज, सिवान और पश्चिमी चंपारण की मण्डियों में बिकती हैं।
मशहूर है कमधेनवा की झम्मड़ वाली करैली
कमधेनवा की झम्मड़ वाली करैली काफी मशहूर है। गांव के धनंजय पाल, छोटे साहनी और प्रसादी भगत आदि किसान बताते हैं कि करैली की बुवाई करने के बाद बांस और झाड़ी से वे झम्मड़ बना देते हैं।
इस पर फसल की शाखाओं को चढ़ा दिया जाता है। इसके चलते खेत की नमी और कीड़े-मकोड़ों से फसल को सुरक्षित रखा जाता है। फसल अच्छी होने से अच्छे दाम पर बिक जाती है।
यहां के ज्यादातर किसान देसी प्रजाति की करैली उगाते हैं। उसकी कलौंजी के लिए काफी डिमाण्ड होती है। कुछ व्यापारी तो करैली की खरीदारी के लिए किसानों को एडवांस भुगतान कर देते हैं।
आसपास के गावों में भी शुरू हो गई सब्जी की खेती
कमधेनवा गांव सब्जी की खेती के लिए नजीर बन गया है। सब्जी की खेती से यहां के किसानों को रही अच्छी आमदनी को देख आसपास के गावों के किसान भी इसे अपनाने लगे हैं।
तरकुलवा विकास खण्ड के कोटवा और मथुरा छापर के किसान भी परंपरागत खेती छोड़ अब सब्जी उगाने लगे हैं। आलम यह है कि कई गांवों के किसान सब्जी की खेती का गुर सीखने के लिए कमधेनवा पहुंचते हैं।
वे यहां सब्जी की बुआई की तकनीक से लेकर बेहतर उत्पादन पाने के तरीके तो सीखते ही हैं, यहां से उन्हें बाजार और व्यापारियों के बारे में भी पूरी जानकारी मिल जाती है।