क्या है अयोध्या के दशरथ महल का इतिहास? इसकी महिमा भी अनूठी है

अयोध्या के दशरथ महल की महिमा भी अनूठी है। ऐसी मान्यता है कि इस महल का निर्माण स्वयं चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ ने करवाया था।

दशरथ महल के महंत बिंदु गद्याचार्य देवेन्द्रप्रसादाचार्य ने वेबदुनिया से बात करते हुए कहा कि चक्रवर्ती महराज दशरथ का राजमहल एक ऐतिहासिक, धार्मिक व पौराणिक पीठ है, जिसको स्वयं महाराज दशरथ ने निर्माण कराया था। दशरथ जी अयोध्या के राजा थे। इसीलिए उनका महल भी अयोध्या में मुख्य रूप से था। चक्रवर्ती सम्राट होने के नाते उनके हर जगह महल थे, किन्तु मुख्य मुख्यालय उनका अयोध्या मे ही था, जहां से वे शासन संचालित करते थे।

उन्होंने बताया कि राजा तो बड़े-बड़े हुए लेकिन चक्रवर्ती की उपाधि राजा दशरथ जी को ही मिली, जिसका बखान तुलसीदास ने रामचरित मानस में किया है। उस महल का वर्णन भला कौन कर सकता है, जिस महल में चारों भाई खेलकर लीलाएं करते हैं और भक्तों को सुख प्रदान करते हैं।

उन्होंने कहा कि अन्य जगहों पर भगवान श्रीराम को सभी प्रणाम करते हैं, लेकिन इस महल की महिमा यह है इस महल में स्वयं भगवान श्रीराम अपने पिता राजा दशरथ, तीनों माताएं- कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा को प्रणाम करते हैं, वंदन करते हैं। इसीलिए यह दशरथ महल अनूठा है।

उन्होंने कहा कि तुलसीदास जी ने महाराज दशरथ जी के बारे मे लिखा है कि राजा दशरथ जी के बल से इंद्र का सिंहासन सुरक्षित रहता था और जब महाराज दशरथ स्वर्ग में जाते थे तो इंद्र अपना आधा सिंहासन उन्हें बैठने के लिए देते थे। महाराज दशरथ ड़े ही धर्मात्मा थे, बड़े ही सत्यवादी थे। उन्होंने बताया कि जिनके प्रताप से ही श्रीराम ने उनका पुत्र बनना स्वीकार किया।

महंत जी ने बताया कि राजा दशरथ जी का महल काफी पुराना होने के कारण महल काफी पुराना होने के कारण जीर्ण-शीर्ण हो गया था। इसका पुनर्निर्माण राजा विक्रमदित्य ने करवाया था। अयोध्या को फिर से बसाया तो उस समय दशरथ महल के राजमहल का भी निर्माण हुआ। एक बार फिर महल जीर्ण शीर्ण हो गया, जिसका 300 वर्ष पूर्व बाबा रामप्रसाद आचार्य ने जीर्णोद्धार कराया। तब से यह मंदिर के रूप में स्थापित है और यहां पर बाल रूप मे भगवान की नित्य पूजा होती है।

 

 

 

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