मां वैष्णो देवी के गर्भजून की क्या है रहस्यमयी कहानी? जानें इस जगह की धार्मिक मान्यता

मां वैष्णो देवी के गर्भजून की क्या है रहस्यमयी कहानी? जानें इस जगह की धार्मिक मान्यता

मां वैष्णो देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का साल भर आना-जाना लगा रहता है. माता वैष्णो देवी उत्तर भारत की सबसे प्रसिद्ध सिद्धपीठ में से एक है. यह भी माना जाता है कि यहां आकर माता के दर्शन करने का सौभाग्य सिर्फ उनको ही मिलता है जिन्हें माता का बुलावा आता है. मां वैष्णो के पिंडी दर्शन के बाद श्रद्धालु अर्द्धकुमारी के दर्शन करने के लिए जरूर जाते हैं. क्या आप उस की कथा को जानते हैं जिसमें मां वैष्णो ने 9 माह इस गुफा में बिताए थे.

अर्द्धकुमारी की रहस्यमयी कथा

पौराणिक कथा के अनुसार मां वैष्णो देवी का एक भक्त श्रीधर था वह निसंतान होने के कारण बहुत दुखी रहता था. एक बार नवरात्रि पूजन के समय उसने कुंवारी कन्याओं को अपने घर बुलाया. उन्हीं कन्याओं में मां वैष्णो देवी भी कन्या का रूप धारण कर अपने भक्त श्रीधर के यहां आ गईं. पूजन के बाद सभी कन्याओं के घर जाने के पश्चात मां वैष्णो ने वहां रुककर श्रीधर को आदेश दिया कि वह सभी लोगो को अपने घर पर भोजन करने के लिए न्योता दे.

भक्त श्रीधर ने कन्या की आज्ञा का पालन करते हुए आसपास के गांव में अपने घर भोजन का बुलावा भेज दिया. साथ ही उसने गुरु गोरखनाथ, उनके शिष्य भैरवनाथ और उनके सभी शिष्यों को भी भोजन के लिए बुलाया. यह संदेश सुन सभी लोग चकित हो उठे कि ऐसी कौन सी कन्या है जो पूरे गांव के लोगों को भोजन कराना चाहती है. गांव के सभी लोग जब श्रीधर के घर पर भोजन के लिए पहुंचे तब मां वैष्णो ने सभी को भोजन परोसना शुरु कर दिया.

जब वें भोजन परोसने भैरवनाथ के पास पहुंची तब भैरवनाथ ने हलवा पूरी खाने से मना करते हुए मां वैष्णो से मांस व मदिरा परोसने को कहा. लेकिन मां ने ऐसा करने से इंकार कर दिया, लेकिन भैरवनाथ ने अपना हठ नही छोड़ा. मां वैष्णो भैरवनाथ के मन में छिपे कपट को पहचान गयी और रूप बदल कर त्रिकुटा पर्वत पर चली गई. वर्तमान काल में इस गुफा को ही अर्द्धकुमारी या गर्भजून कहा जाता है.

त्रिकुटा पर्वत पर जाकर मां ने एक गुफा में रहकर 9 माह तक तपस्या की और बाहर आकर भैरवनाथ को वापस लौटने के लिए चेतावनी दी. लेकिन भैरवनाथ ने मां वैष्णो की बात नहीं मानी. जिसके बाद मां ने महाकाली का रूप धारण कर भैरवनाथ का संहार किया. भैरवनाथ का कटा हुआ सिर जहां जाकर गिर उसी स्थान पर भैरवनाथ मंदिर का निर्माण हुआ.

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