बाबरी गिरी तो CM कल्याण सिंह क्या करने जा रहे थे जो आडवाणी ने चेतावनी देकर रोका?

”सब ठीक है ना? किसी गड़बड़ की तो आशंका नहीं है?” 6 दिसंबर 1992 की सुबह यूपी के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह दो बार फैजाबाद कमिश्नर को हॉटलाइन पर फोन कर ये पूछ चुके थे. लाखों कारसेवकों के बीच भयानक तनाव का माहौल था. विवादित स्थल के बाहर बने चबूतरे पर प्रतीकात्मक कारसेवा होनी थी. मुहूर्त सुबह 11.30 बजे का तय था. करीब 150 साधु-संत पूरी तैयारी कर चुके थे. कारसेवकों को बैरिकेडिंग के उस पार से ही अक्षत, फूल, पानी डाल कारसेवा करने की अनुमति थी.

तभी वहां लालकृष्ण आडवाणी, अशोक सिंघल, मुरली मनोहर जोशी को लेकर एडिश्नल एसपी अंजू गुप्ता पहुंचीं. आडवाणी को देख कारसेवक उत्तेजित हो गए. उनको लगा वे कारसेवा स्थगित करवाने आए हैं. कारसेवक बैरिकेडिंग तोड़ चबूतरे की तरफ आने की कोशिश करने लगे. कुछ लोग आ भी गए, आडवाणी और जोशी के साथ धक्का-मुक्की तक हो गई. अयोध्या आंदोलन से जुड़े ये रोचक और जरूरी किस्से हम ला रहे हैं खास आपके लिए एक किताब से जिसका नाम है ‘युद्ध में अयोध्या’. किताब के लेखक हैं TV9 नेटवर्क के न्यूज डायरेक्टर हेमंत शर्मा.

हमने शुरुआत में एक फोन कॉल का जिक्र किया. अब एक और फोन कॉल की बात जो इस बार लखनऊ नहीं, दिल्ली से आया था. सुबह 7.30 बजे. कॉल था प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का. आया था बीजेपी नेता विनय कटियार के पास. नरसिम्हा ने साफ-साफ पूछा- किसी गड़बड़ की आशंका तो नहीं है, सब नियंत्रण में तो है? विनय कटियार ने भरोसा दिलाया- सब काबू में है… प्रधानमंत्री को भरोसा तो दिलाया गया पर क्या ये भरोसा कायम हो पाया? जवाब है नहीं.

कैसे कारसेवकों ने गिराए गुंबद

किताब युद्ध में अयोध्या के मुताबिक कारसेवा स्थल के पास रामकथा कुंज पर विहिप और बीजेपी नेताओं के सुबह से ही भाषण चल रहे थे. देखते-देखते भाषण सुनते लोगों की तादाद लाख पार कर चुकी थी. बारह बजने से कुछ देर पहले आडवाणी भाषण देने पहुंचे. उसी वक्त शेषावतार मंदिर की तरफ से भीड़ ने पुलिस बल पर पथराव शुरू कर दिया. पुलिस के पास बचने के लिए कोई रास्ता नहीं था. पीछे विवादित ढांचा और दाएं-बाएं खुला मैदान. तभी कोई दो सौ लोग चबूतरे का घेरा तोड़ आगे बढ़े. देखते-देखते ये लोग राम जन्मभूमि परिसर में घुस गए.

हड़कंप मच गया. चारों तरफ से विवादित स्थल पर पत्थर चलने लगे. देखते-देखते विवादित परिसर में करीब 25000 लोग इकट्ठा हो गए. दो सौ से ज्यादा लोग विवादित स्थल पर चढ़ गए. भाषण छोड़ कारसेवकों का रुख धीरे-धीरे पूरी तरह से परिसर की तरफ हो गया.
किताब के मुताबिक लालकृष्ण आडवाणी कारसेवकों से वापस लौट आने की अपील कर रहे थे. परिसर से सीआरपीएफ-पीएसी के जवान बाहर आ चुके थे. फोन कनेक्शन, हॉटलाइन आदि कारसेवकों ने काट दी थीं. पूरा परिसर अब कारसेवकों के हवाले था. पंद्रह मिनट के अंदर हालात बदल चुके थे. बैरिकेडिंग के लोहे के पाइपों से कारसेवकों ने गुंबद पर हमला शुरू कर दिया.

जब ये सब हो रहा था, तब वहां एक और शख्सियत मौजूद थे जिनका मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अधिकारियों से खास खयाल रखने को कहा था. ये महानुभव थे तेजशंकर. जोकि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भेजे गए पर्यवेक्षक थे. वो देखने आए थे कि जिस चबूतरे पर कारसेवा होनी थी, वहां हवन सामग्री की जगह निर्माण सामग्री तो नहीं है. पर यहां तो कुछ और ही हो रहा था. पक्का निर्माण नहीं बल्कि एक निर्माण को ध्वस्त किया जा रहा था.

एक बजकर 45 मिनट पर कंट्रोल रूम में लखनऊ से रेडियोग्राम पहुंचा. स्थिति को काबू करने के लिए केंद्रीय बलों का इस्तेमाल किया जाए. साथ ही यह आदेश- गोली नहीं चलनी चाहिए. पांच घंटे की कारसेवा में सबसे पहले ढांचे की बाहरी और भीतरी दीवार गिराई गई. फिर एक एक करके तीनों गुंबद गिरा दिए गए.

किताब के मुताबिक जिस वक्त ये सब चल रहा था, तब विहिप के साधु-संत, उमा भारती, साध्वी ऋतंबरा, आचार्य धर्मेंद्र आदि कारसेवकों को मंच से ललकार रहे थे. उमा भारती ने दो नारे दिए- राम नाम सत्य है. बाबरी मस्जिद ध्वस्त है. और एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो… दूसरी तरफ बड़े नेता जैसे आडवाणी, अशोक सिंघल, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार पहला गुंबद गिरते ही वहां से निकलकर कटियार के घर आ गए.

फिर से रूख करते हैं टेलीफोन की तरफ जो कटियार के घर पर लगातार घनघना रहा था. तब मोबाइल का तो दौर था नहीं. मगर ये किसका फोन था जो विनय कटियार या और कोई नेता नहीं उठा रहा था. ये कॉल था प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का जिन्हें विनय कटियार समेत सभी नेताओं ने आश्वासन दिया था कि विवादित स्थल को कुछ नहीं होगा. फिर एक और फोन आया लखनऊ से. कल्याण सिंह का. कल्याण सिंह तमतमाए हुए थे. गुस्से में आडवाणी से कहा कि मैं इस्तीफा देने जा रहा हूं.

आडवाणी ने मना किया. चेतावनी देते हुए कहा- थोड़ा टाइम पास कीजिए. इस्तीफा देने से केंद्र का शासन लग जाएगा. केंद्रीय बल मोर्चा संभाल लेंगे जिन्हें तब तक लोकल पुलिस का सहयोग नहीं मिल रहा था. कल्याण सिंह ये बात तो माने मगर वो खुद को ठगा महसूस कर रहे थे. पर क्यों? वो इसलिए क्योंकि उनको लग रहा था कि उनके साथ धोखा हुआ है. कल्याण को लग रहा था कि ढांचा गिराना पूर्व नियोजित था और उनको इसकी जानकारी नहीं दी गई. और कल्याण को जो आशंका थी वो आज तक बहस का विषय है कि क्या ये हमला पूर्व नियोजित था.

कल्याण को योजना की नहीं दी गई थी जानकारी

वापस कल्याण पर लौटें तो जिस वक्त ढांचे पर कारसेवकों ने हमला बोला. कल्याण सिंह अपने सरकारी आवास 5 कालिदास मार्ग की छत पर धूप सेंक रहे थे. जब अयोध्या के कंट्रोल रूम से उन तक घटना की सूचना पहुंची तो वो उतना ही अचंभित थे जितना दिल्ली में अपनी टीवी के सामने बैठे पीएम नरसिम्हा राव. कारण वही कि कल्याण मानकर चल रहे थे कि उनको इस योजना की जानकारी क्यों नहीं दी गई. हालांकि कल्याण को कुछ-कुछ अंदेशा पहले भी था.

किताब के मुताबिक एक रात पहले जिला प्रशासन ने गृह सचिव को जो रिपोर्ट भेजी थी, उसमें कहा गया था कि कारसेवकों का एक वर्ग है जो कारसेवा का स्वरूप बदलने से नाराज है. यानी प्रतीकात्मक कारसेवा उनके गले नहीं उतर रही है. इसी लिए ही कल्याण ने बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी और आडवाणी को अयोध्या उसी रात भेज दिया था. जबकि उनको अगले दिन सुबह जाना था.

दूसरी तरफ प्रधानमंत्री का फोन लगातार आ रहा था. अशोक सिंघल ने विनय कटियार से कहा कि वे पीएम से बात करें. कटियार बोले कि किस मुंह से बात करूं. सुबह भरोसा दिया था कि सब ठीक होगा और अब…सिंघल ने जोर दिया कि- फिर भी बात कीजिए, उनको वास्तुस्थिति बताइये. खैर कटियार माने. पीएम नरसिंह राव से बात की. पीएम बोले- जो हुआ अच्छा नहीं हुआ, पर अब आप मदद कीजिए. अयोध्या को कारसेवकों से जल्दी खाली कराइये. मैं 16 विशेष रेलगाड़ियां भेज रहा हूं. आप इनमें कारसेवकों को रवाना करें.

इन सबके इतर कारसेवक अस्थाई मंदिर बना चुके थे और उसमें मूर्ति रखने का इंतजार कर रहे थे पर वो तो गायब थी जैसा आपको पहले हेमंत जी ने बताया. इस पर केंद्र के लिए अयोध्या का काम देख रहे मंत्री पीआर कुमार मंगलम ने तुरंत दिमाग चलाया. राजा अयोध्या विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र से संपर्क किया. उनके घर से रामलला की मूर्तियां लाई गईं और उनको अस्थाई मंदिर में स्थापित करवाया गया. इसके तुरंत बाद पीएम ने कैबिनेट की बैठक बुला कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश की. हालांकि ये अजीब था क्योंकि कल्याण सिंह तीन घंटे पहले ही इस्तीफा दे चुके थे जिसमें उन्होंने सिर्फ एक लाइन लिखी थी- मैं इस्तीफा दे रहा हूं, कृपया स्वीकार करने का कष्ट करें…

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