करण जौहर जहां भूले ‘मर्यादा’, ‘थ्री ऑफ अस’ ने उसे संभाले रखा

नेटफ्लिक्स पर शेफाली शाह, जयदीप अहलावत और स्वानंद किरकरे की ‘थ्री ऑफ अस’ फिल्म रिलीज हुए कुछ वक्त बीत चुका है. ये फिल्म अपनी कहानी और कलाकारों की अदाकारी की वजह से तो पसंद की ही जाएगी, लेकिन सिनेमा में नए प्रयोग को लेकर भी इस फिल्म को देखा जाना चाहिए.

दिल ढूंढता है फिर वही, फुरसत के रात दिन’… 1975 में आई ‘मौसम’ फिल्म के लिए गुलज़ार साहब ने जब ये गीत लिखा होगा, तब उन्होंने नहीं सोचा होगा कि 2024 में भी लोगों की ख्वाहिश ऐसी ही होगी. इस गाने में एक अजीब सी सादगी है, ठीक वैसी ही सादगी और सच्चाई आपको शेफाली शाह, जयदीप अहलावत और स्वानंद किरकिरे की ‘थ्री ऑफ अस’ में देखने को मिलेगी. नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई इस फिल्म में सिनेमा के कई अनूठे प्रयोग किए हैं, वहीं ये फिल्म अपनी ‘मर्यादा’ को बांधकर रखती है, जिसे करन जौहर ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ में भुला देते हैं.

अब आप सोच रहे होंगे कि करन जौहर की फिल्म तो ‘मसाला’ मूवी थी, उसकी ‘थ्री ऑफ अस’ से भला क्या तुलना हो सकती है. तो एक लाइन में इन दोनों फिल्म को ऐसे समझा जा सकता है कि अगर ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ शुद्ध GenZ फिल्म है, तो ‘थ्री ऑफ अस’ आपको मैच्योर बनाती है. चलिए समझते हैं…

 

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