ट्रेन स्टेशन पर देरी से पहुंची तो किसकी होगी जिम्मेदारी, Supreme Court ने सुनाया फैसला
ट्रेन की देरी (Train Delay) से पहुंचने को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सख्त रुख अपनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि भारतीय रेलवे (Indian Railways) ट्रेनों की देरी की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता और तो और अगर इससे किसी यात्री को नुकसान होता है तो रेलवे मुआवजा देने के लिए तैयार रहे.
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ट्रेन के देरी से पहुंचने के मामले में रेलवे को एक यात्री को 30 हजार रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि अगर सार्वजनिक परिवहन को प्राइवेट ट्रांसपोर्ट से प्रतिस्पर्धा करनी है तो उन्हें अपनी व्यवस्था और कार्यशैली में सुधार करना होगा.
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने मामले की सुनवाई की. बेंच ने कहा कि ट्रेनों की देरी के लिए रेलवे अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता. साथ ही रेलवे को ट्रेन के लेट होने की वजह बतानी होगी. अगर वो वजह बताने में विफल रहता है तो उसे यात्रियों को मुआवजा देना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने जवाबदेही तय करते हुए कहा,
“यात्रियों का समय कीमती है और ट्रेनों के पहुंचने में देरी के लिए किसी न किसी को जवाबदेह बनाना होगा. देश की जनता/यात्री सरकार/प्रशासन की दया पर निर्भर नहीं रह सकते. किसी को तो जिम्मेदारी लेनी होगी.”
क्या है पूरा मामला?
मामला 11 जून 2016 का है. संजय शुक्ला नाम का व्यक्ति अपने अपने परिवार के साथ अजमेर-जम्मू एक्सप्रेस से यात्रा कर रहा था. ट्रेन को सुबह 8 बजकर 10 मिनट पर जम्मू पहुंचना था, लेकिन ट्रेन अपने तय समय पर नहीं पहुंची. देरी से पहुंची. लगभग 12 बजे पहुंची.
ट्रेन के लेट होने की वजह से शुक्ला परिवार की फ्लाइट छूट गई. उन्हें दोपहर 12 बजे की फ्लाइट से जम्मू से श्रीनगर जाना था. परिवार को जम्मू से श्रीनगर तक टैक्सी से जाना पड़ा.
इसके लिए उन्हें 15 हजार रुपये खर्च करने पड़े. साथ ही उन्हें रहने के लिए 10 हजार रुपये भी देने पड़े. अलवर जिले के उपभोक्ता फोरम ने उत्तर पश्चिम रेलवे को शुक्ला को 30 हजार रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया.
स्टेट और नेशनल फोरम ने फैसले को बरकरार रखा. इसके बाद रेलवे ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे की अपील खारिज कर दी. डिस्ट्रिक्ट, स्टेट और नेशनल फोरम के फैसले को बरकरार रखा.
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट में कहा कि रेलवे कॉन्फ्रेंस एसोसिएशन कोचिंग टैरिफ नंबर 26 पार्ट- I (वॉल्यूम- I) के नियम 114 और 115 के मुताबिक, अगर ट्रेन लेट होती है तो रेलवे यात्री को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी नहीं है.
पहले भी सुप्रीम कोर्ट फटकार लगा चुकी है-
ऐसा नहीं है कि ट्रेन के देरी से पहुंचने का ये पहला मामला है. इससे पहले भी अदालत ने रेलवे को कई बार फटकार लगा चुकी है. प्रयागराज एक्सप्रेस से जुड़ा एक मामला है.
ट्रेन के लेट होने की वजह से दो यात्री करीब 5 घंटे की देरी से दिल्ली पहुंचे थे. इस वजह से उनकी कोच्चि की फ्लाइट छूट गई. इन यात्रियों ने रेलवे के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत की और फोरम ने रेलवे पर जुर्माना लगाया. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे को इन यात्रियों को 40 हजार रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया.
भारत में ट्रेनों के लेट होने के क्या नियम हैं? ट्रेनों के देरी से चलने पर रिफंड मिलता है?
कई बार ऐसा होता कि ट्रेन देरी से चलती है. जिसकी वजह से यात्री को परेशानी होती है. अब यात्री क्या करे? उदाहरण से समझते हैं. अगर किसी की ट्रेन दोपहर 12 बजे की है और ट्रेन 3 घंटे की देरी से चल रही है. ऐसे में यात्री टिकट कैंसिल करके फुल रिफंड के लिए क्लेम कर सकते हैं.