पूर्वांचली और मुस्लिम बहुल सीट पर मनोज तिवारी को कन्हैया क्या दे पाएंगे चुनौती?
कांग्रेस ने आखिरकार दिल्ली की अपनी तीनों लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया है. उत्तरी-पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से कांग्रेस ने जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को उतारा है.
बीजेपी से दो बार के सांसद मनोज तिवारी के खिलाफ कन्हैया कुमार चुनाव लड़ेंगे. पूर्वांचली और मुस्लिम बहुल उत्तरी-पूर्वी दिल्ली सीट पर पहली बार दो पूर्वांचलियों के बीच चुनावी मुकाबला होने जा रहा. ऐसे में अब देखना है कि बीजेपी और कांग्रेस में कौन किस पर भारी पड़ता है?
बीजेपी ने दिल्ली की सभी सातों सांसदों में से छह का टिकट काटकर उनकी जगह नए चेहरों को उतारा है जबकि मनोज तिवारी इकलौते सांसद हैं, जिन पर पार्टी ने भरोसा जताया है. उत्तरी-पूर्वी सीट पर कांग्रेस के जेपी अग्रवाल और शीला दीक्षित जैसे दिग्गज नेताओं मनोज तिवारी मात दे चुके हैं. ऐसे में आम आदमी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन से चुनावी मैदान में उतरने जा रहे कन्हैया कुमार उत्तरी-पूर्वी सीट पर मनोज तिवारी को क्या चुनौती दे पाएंगे?
उत्तरी-पूर्वी सीट का समीकरण
उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट के तहत 10 विधानसभा सीटें आती हैं. इसमें बुराड़ी, तिमारपुर, सीमापुरी, रोहतास नगर, सीलमपुर, घोंडा, बाबरपुर, गोकलपुर, मुस्तफाबाद और करावल नगर सीट शामिल है. इन 10 विधानसभा सीटों में रोहतास नगर, घोंडा और करावल नगर में बीजेपी के विधायक हैं जबकि बाकी सात विधायक आम आदमी पार्टी के हैं. हालांकि, लोकसभा और विधानसभा चुनाव का वोटिंग पैटर्न काफी अलग होता है, जिसके चलते 2024 का मुकाबला काफी रोचक होने जा रहा है.
जातीय गणित से तय होगी जीत
उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश की सीमा से लगी हुई है. राजधानी में पूर्वांचली और मुस्लिम मतदाता सबसे ज्यादा उत्तर उत्तरी-पूर्वी सीट पर है. इस सीट पर दलित वोटर 16 फीसदी, मुस्लिम 23 फीसदी, ब्राह्मण 11 फीसदी, वैश्य (बनिया) 4.50 फीसदी, पंजाबी 4 फीसदी, गुर्जर 7.50 फीसदी और ओबीसी 20 फीसदी के करीब है. उत्तरी-पूर्वी सीट पर पूर्वांचली मतदाता करीब 28 फीसदी है यानि बिहार और पूर्वी यूपी के मतदाता बड़ी संख्या में है. इसके अलावा 23 फीसदी मुस्लिम वोटर काफी अहम और निर्णायक है.
मनोज तिवारी पूर्वांचली चेहरा बने
उत्तर पूर्वी दिल्ली के डायनेमिक पॉलिटिकल नजरिए में काफी अहम बदलाव नजर आए हैं. 2009 के लोकसभा चुनावों में जेपी अग्रवाल ने जीत दर्ज की थी. बीजेपी ने पूर्वांचली वोटरों की भूमिका को देखते हुए 2014 में भोजपुरी गायक मनोज तिवारी पर दांव लगाया, जो सफल रहा. 2019 में भी मनोज तिवारी जीतकर सांसद बने. कांग्रेस की दिग्गज नेता व पूर्व सीएम शीला दीक्षित को हराकर दिल्ली की सियासत में बड़ा चेहरे बनकर उभरे तो बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी. पूर्वांचली वोटर्स के बीच मनोज तिवारी ने अपनी मजबूत पकड़ बना रखी है, जिसका नतीजा है कि दिल्ली के 8 में से तीन विधायक उनके क्षेत्र से हैं.
कांग्रेस ने कन्हैया पर खेला दांव
उत्तरी-पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट पर पूर्वांचल और मुस्लिम वोटों के सियासी गणित को देखते हुए कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को उम्मीदवार बनाया है. बीजेपी के पूर्वांचल नेता मनोज तिवारी को कोई पूर्वांचली नेता ही टक्कर दे सकता है, जिसके इसलिए कन्हैया के नाम पर मुहर लगी. मनोज तिवारी की तरह कन्हैया कुमार भी बिहार से आते हैं और पूर्वांचली वोटों के लिए दोनों के बीच कांटे का मुकाबला होगा. जेएनयू की छात्र राजनीति से सियासी पारी की शुरुआत करने वाले कन्हैया कुमार को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है.
पीएम मोदी और बीजेपी पर आक्रमक तरीके से हमला करने के चलते कन्हैया कुमार की अपनी लोकप्रियता है.कांग्रेस ने पूर्वांचली और मुस्लिम वोटों के सहारे कन्हैया कुमार की जीत का गणित बिठाने का दांव चलेंगे. इसके अलावा आम आदमी पार्टी और कांग्रेस मिलकर चुनावी मैदान में उतरी हैं, जिसके चलते मनोज तिवारी के लिए चिंता का सबब बन सकते हैं.
हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव उत्तरी-पूर्वी दिल्ली सीट पर बीजेपी मनोज तिवारी ने 787799 मत मिले थे. कांग्रेस प्रत्याशी शीला दीक्षित को 421697 वोट मिले थे और आम आदमी पार्टी के दिलीप पांडेय को 190856 मत हासिल हुए थे. कांग्रेस और आप प्रत्याशी के मिलने वाले वोटों को अगर मिला देते हैं तो मनोज तिवारी का पल्ला भारी नजर आ रहा, लेकिन दस साल से वो सांसद है और क्षेत्र में उनके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर मानी जा रही है. कन्हैया कुमार ने मनोज तिवारी के दस साल के कामकाज को लेकर सवाल उठाना शुरू कर दिया है और पूछा कि बताएं कि उन्होंने उत्तरी-पूर्वी दिल्ली सीट के लिए किया किया है.
कन्हैया की ताकत और कमजोरी
कन्हैया कुमार पूर्वांचल से आते हैं और युवा हैं. इसके अलावा अच्छे वक्ता हैं, जिसके चलते राजनीतिक सुर्खियों में रहते हैं. 2019 का लोकसभा चुनाव बिहार से हारने के बावजूद चर्चा में रहे. इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी होने से अल्पसंख्यक वोटरों को आकर्षित कर सकते हैं. युवाओं में भी पहचान है. कमजोर पक्ष देखें तो कन्हैया कुमार दिल्ली की सियासत में सक्रिय नहीं रहे हैं. पैराशूट प्रत्याशी के रूप में देखा जा रहा है व जमीनी कार्यकर्ता नहीं है. वामपंथी दल से ताल्लुक रहा है और जेएनयू में उनके छात्र संघ अध्यक्ष रहते हुए नारेबाजी हुई थी, जिसके चलते बीजेपी उनको टुकड़े-टुकड़े गैंग का सरगना कहती रही है.
मनोज का मजबूत-कमजोर पक्ष
मनोज तिवारी उत्तरी-पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से दो बार भारी मतो से जीत चुके हैं. पूर्वांचली मतदाताओं के बीच उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है. मनोज तिवारी भी अच्छे वक्ता है और लोगों को अपने भाषण से आकृषित करने की ताकत रखते हैं. इसके बावजूद उनके सामने कई चुनौतियां भी है, राजधानी में उत्तरी-पूर्वी दिल्ली विकास क्षेत्र में सबसे ज्यादा पिछड़ा है. दस साल से सांसद होने के चलते एंटी इनकंबसी फैक्टर का भी सामना करना पड़ सकता है.अल्पसंख्यक व गुर्जर वोटरों की संख्या ज्यादा, जिनकी नाराजगी उन्हें चुनाव में महंगा पड़ सकती है.
उत्तरी-पूर्वी सीट पर कौन भारी?
कन्हैया कुमार और मनोज तिवारी में जो भी नेता उत्तरी-पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण और अनधिकृत कालोनियों को साधने में कामयाब रहेगा, उसके हाथ जीत लगेगीय इस सीट पर जो मतदाता हैं उनमें से अधिकतर लोग उत्तरप्रदेश और बिहार से सटे पूर्वांचल इलाके के हैं और यहां मुसलमान भी बड़ी तादाद में हैं. इन लोगों की चुनावी जीत में अहम भूमिका है. कांग्रेस को भरोसा है कि उसका परंपरागत वोट बैंक मुसलमान, दलित और कम आय समूह उसकी झोली वोटों से भर देगा तो बीजेपी पूर्वांचली और बहुसंख्यक वोटों के सहारे मनोज तिवारी जीत की हैट्रिक लगाना चाहते हैं. देखना है कि किसका पल्ला भारी रहता है?