असली बाजीगर साबित हुए नीतीश कुमार, 2024 की सरकार के बनेंगे किंगमेकर

नीतीश कुमार ने तमाम राजनीतिक पंडितों को एक बार फिर गलत साबित कर दिया है. एग्जिट पोल का अनुमान हो या फिर तमाम राजनीतिक पंडितों का बयान, वो नीतीश कुमार के लिए गलत ही साबित हुआ है. ऐसे में 16 में से 15 सीटों पर लगभग जीत चुके नीतीश कुमार का कद केंद्र की राजनीति में परिणाम के बाद छलांग लगा चुका है. यही वजह है कि आरजेडी के मनोज झा हों या एनसीपी के शरद पवार, दोनों नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन के पाले में लाने के लिए अलग-अलग तरीके का ऑफर देना शुरू कर चुके हैं. जाहिर है पिछले 15 साल से बिहार की सत्ता के सिरमौर रहे नीतीश का कद इस कदर बढ़ गया है कि केंद्र सरकार का रिमोट अब उनके हाथों में रहने वाला है, ये तय माना जा रहा है.
हारी बाजी पलटकर बाजीगर क्यों दिख रहे हैं नीतीश?
लोकसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी 4 से 5 सीटों पर सिमट जाएगी, ऐसा बयान देकर प्रशांत किशोर खासे चर्चा में आए थे. कहा जाने लगा था कि बार-बार पाला बदलकर नीतीश अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं लेकिन लोकसभा चुनाव का परिणाम उन्हें बड़े बाजीगर के तौर पदस्थापित कर रहा है. नीतीश के फैसले शुरुआती तौर पर भले ही गलत दिखते हों लेकिन अंततोगत्वा नीतीश विनर के तौर पर बाहर निकलते हैं, ये नीतीश ने फिर साबित किया है.
एग्जिट पोल में भी बिहार में होने वाले नुकसान के लिए नीतीश कुमार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा था. राजनीतिक पंडित जेडीयू की वजह से एनडीए को नुकसान होता देख रहे थे लेकिन चुनावी परिणाम में किशनगंज सीट पर कांग्रेस आगे चल रही है. साल 2019 में एकमात्र सीट किशनगंज से कांग्रेस पार्टी की जीत हुई थी. वैसे जेडीयू जहानाबाद गंवाती हुई दिख रही है लेकिन 16 में से 15 सीटों पर जेडीयू की जीत को बेहतरीन स्ट्राइक रेट माना जा रहा है.
लोग अब नीतीश की असली ताकत का लोहा मानने लगे हैं
इसलिए नीतीश कुमार को राजनीतिक अवसान की ओर बढ़ने को लेकर ताना मारने वाले लोग अब नीतीश की असली ताकत का लोहा मानने लगे हैं. नीतीश की पार्टी के एक बड़े मंत्री मदन साहनी ने नीतीश के बड़े क्रिटिक को ये कहते हुए जवाब दिया है कि बिहार में नीतीश की वजह से यूपी की कहानी नहीं दोहरा सकी वरना बिहार भी यूपी की तरह एनडीए की करारी हार से बच नहीं पाता. बार-बार बुरे वक्तों में फंसने के बावजूद नीतीश ताकतवर बनकर कैसे निकलते हैं?
साल 2020 में नीतीश कुमार की पार्टी को महज 43 सीटें मिली थीं. उसके बाद से लगातार नीतीश कुमार की ताकत को कम आंका जाने लगा था. कहा जा रहा था कि नीतीश कुमार के इधर-उधर जाने की वजह से उनकी विश्वसनीयता में खासी गिरावट आई है लेकिन जनता की अदालत में नीतीश कुमार एक बार फिर ताकतवर नेता के रूप में उभरे हैं, इससे अब कोई इनकार नहीं कर सकता है.
नीतीश ने केंद्र सरकार के खिलाफ इंडिया गठबंधन की नींव रखी थी
साल 2015 में आरजेडी के साथ मिलकर बीजेपी को धूल चटाने वाले नीतीश साल 2017 में एनडीए में वापस आ गए थे. इस वजह से साल 2019 में एनडीए 40 में से 39 सीटें जीतने में सफल रही थी. साल 2022 में नीतीश एक बार फिर आरजेडी के साथ मिलकर बिहार में सरकार चलाने के लिए साथ आ गए थे. इस बार नीतीश ने केंद्र सरकार के खिलाफ इंडिया गठबंधन की नींव भी रखी थी लेकिन साल 2023 बीतते-बीतते नीतीश कुमार का मोहभंग महागठबंधन से हो चुका था. इसलिए वो वापस एनडीए में आ चुके हैं.
इस बार एनडीए में नीतीश आकर एक बार फिर महागठबंधन को पटखनी देते हुए दिखाई पड़ रहे हैं. इतना ही नहीं 240 सीटों के आस-पास सिमटती दिख रही बीजेपी को अब सरकार चलाने के लिए नीतीश कुमार की जरूरत साफ दिख रही है. इसलिए कहा जा सकता है कि नीतीश जिधर का रुख करेंगे, पलड़ा उधर का भारी दिखेगा. यही वजह है कि बिहार की राजनीति में पिछले 18 सालों से एकछत्र राज करने वाले नीतीश अब केंद्र सरकार पर भी मजबूत पकड़ बनाए दिखेंगे. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है.
नीतीश पाला बदलकर केंद्र सरकार में बड़ी भूमिका में दिखेंगे?
नीतीश एनडीए में बने रहेंगे या फिर से पाला बदलकर केंद्र सरकार में बड़ी भूमिका में दिखेंगे? शरद पवार द्वारा मिलने वाला आमंत्रण सियासी गलियारों में कौतुहल का विषय बना हुआ है. वहीं सूत्रों द्वारा ये भी खबर सामने आई है कि कांग्रेस नीतीश और आंध्र प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू के साथ संपर्क साधकर उन्हें इंडिया गठबंधन में आने का न्योता दे सकती है. जाहिर है केंद्र में सरकार बनने को लेकर नीतीश हों या चंद्र बाबू नायडू दोनों की भूमिका अहम होती दिख रही है.
दोनों मिलाकर तकरीबन 30 सांसद हो रहे हैं जो एनडीए या इंडिया गठबंधन के लिए जरूरी बताए जा रहे हैं. नीतीश कुमार के हाथ एक सुनहरा अवसर लगा है, जिसे वो अपने पक्ष में जोरदार तरीके से भुनाना चाहेंगे. ऐसे में मौजूदा स्वरूप में नीतीश की महत्ता का बढ़ना लाजमी है और बिहार से लेकर केंद्र तक की सरकार में उनका दखल पुरजोर होगा, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है.
नीतीश बिहार की सत्ता संभालेंगे या केंद्र का करेंगे रुख?
वैसे जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा हों या फिर राष्ट्रीय प्रवक्ता और नीतीश कुमार के एडवाइजर के सी त्यागी, दोनों एनडीए में बने रहने को लेकर बयान दे चुके हैं. इसलिए नीतीश अगर एनडीए में भी रहते हैं तो जेडीयू की भूमिका केंद्र सरकार में बड़ी रहने वाली है. जाहिर है इसी वजह से बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी नीतीश कुमार से मिलने उनके आवास पर पहुंच चुके हैं. पीएम मोदी ने टीडीपी के नेता चंद्रबाबू से संपर्क साधकर उन्हें एनडीए के पाले में बनाए रखने का प्रयास तेज कर दिया है.
इंडिया गठबंधन की तरफ से नीतीश कुमार को डिप्टी पीएम का पद ऑफर किया जा चुका है. वहीं बीजेपी कल एनडीए की बैठक बुला चुकी है. जाहिर है ऐसे में ये नीतीश को ही तय करना है कि वो किस ओर रहेंगे और बिहार से निकलकर केंद्र में नई भूमिका की तलाश करेंगे लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि नीतीश कुमार की पार्टी को केंद्र में अहम मंत्रालय दिया सकता है. इस बार सांकेतिक नहीं बल्कि अनुपातिक आधार में जेडीयू केंद्र की सत्ता में शामिल होगी, ये साफ प्रतीत हो रहा है. इसलिए संजय झा, ललन सिंह, संतोष कुशवाहा मंत्री बन सकते हैं, इसकी संभावना बढ़ गई है.
इतना ही नहीं नीतीश के एजेंडे में बिहार को विशेष राज्य दिलाने का भी रहा है. इसलिए नीतीश विशेष राज्य की मांग मनवाकर साल 2025 के विधानसभा चुनाव को अपनी ओर मोड़ने का भरपूर प्रयास करेंगे, ऐसा तय माना जा रहा है. ज़ाहिर है मेजॉरिटी से दूर रहने वाली बीजेपी के लिए नीतीश अब इतने अहम हो गए हैं कि उनके बगैर एनडीए की सरकार चला पाना मुश्किल सा दिख रहा है.

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